आदित्य देवता: Difference between revisions
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*[[वायुपुराण]] में इन्हें प्रथम मरुद्गणों में से एक बताया गया है, ये सब भुवलोक के निवासी हैं।<ref>वायुपुराण 101.30</ref> | |||
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Revision as of 11:19, 20 September 2013
आदित्य सूर्य देव का ही एक अन्य नाम है। माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इनका नाम आदित्य पड़ा था। विश्वदेव वरुण, शिव और विष्णु के लिए भी आदित्य नाम का प्रयोग किया जाता है।[1] दैत्य तथा राक्षस अदिति के देवता पुत्रों से ईर्ष्या रखते थे, इसीलिए उनका सदैव देवताओं से संघर्ष होता रहता था। अदिति की प्रार्थना पर सूर्य देव ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और सभी असुरों को भस्म कर दिया।
कश्यप तथा दक्ष कन्याएँ
ब्रह्मा के मरीचि नामक पुत्र थे, जिनके पुत्र का नाम कश्यप था। कश्यप का विवाह दक्ष की तेरह कन्याओं से हुआ था। प्रत्येक कन्या से विशिष्ट वर्ग की संतति हुई। उदाहरण के लिए अदिति ने देवताओं को जन्म दिया तथा दिति ने दैत्यों को। इसी प्रकार दनु से दानव; विनता से गरुड़ और अरुण; कद्रू से नाग, मुनि तथा गंधर्व; रवसा से यक्ष और राक्षस; क्रोध से कुल्याएँ; अरिष्टा से अप्सराएं; इरा से ऐरावत हाथी; श्येनी से श्येन तथा भास, शुक आदि पक्षी उत्पन्न हुए।
अदिति की प्रार्थना
दैत्य, दानव और राक्षस विमाता (अदिति) पुत्र देवताओं से ईर्ष्या को अनुभव करते थे। अत: उन लोगों का परस्पर संघर्ष होता रहता था। एक बार वर्षों तक पारस्परिक युद्ध के उपरांत देवता पराजित हो गये। अदिति ने दुखी होकर सूर्य की आराधना की। सूर्य ने सहस्त्र अंशों सहित अदिति के गर्भ से जन्म लेकर असुरों को परास्त कर देवताओं को त्रिलोक का राज्य पुन: दिलाने का आश्वासन दिया। अदिति गर्भकाल में भी पूजा-पाठ और व्रत में लगी रहती थी। एक बार कश्यप ने रुष्ट होकर कहा-'यह व्रत रखकर तुम गर्भस्थ अंडे को मार डालना चाहती हो क्या?' इस कारण से सूर्य 'मार्तंड' कहलाये।
असुरों का नाश
'कालांतर में सूर्य ने अदिति की कोख से जन्म लिया, इस कारण से उनका एक नाम 'आदित्य' भी पड़ गया।' सूर्य की क्रूर दृष्टि के तेज से दग्ध होकर असुर भस्म हो गये। देवताओं को उनका खोया हुआ राज्य पुन: प्राप्त हो गया। विश्वकर्मा ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य (विवस्वान) से कर दिया।[2]
आदित्यगण
देवमाता अदिति और कश्यप के पुत्रों को 'आदित्यगण' कहा जाता है, जो पहले चाक्षुष मन्वन्तर में बैकुंठ नामक साध्यगण हुए थे।[3] वैवस्वत मन्वन्तर आने पर अदिति द्वारा आराधित आदित्यों ने एकमत होकर कहा- 'हम योगबल से आधे तेज वाले होकर इसी के पुत्र हैं'।[4] आदित्यगण प्रथम त्रेता युगारंभ के वैवस्वत काल के देवता हैं, जिन्हें 'जयदेव' कहा जाता है।[5] चाक्षुष युग में बारह आदित्यगणों को 'तुषितगण' कहते थे।[6] इन बारह आदित्यों के नाम इस प्रकार हैं-
- इन्द्र
- धातृ
- भग
- त्वष्टा
- मित्र
- वरुण
- अर्यमन्
- विवस्वत्
- सवितृ
- पूषन्
- अंशुमत्
- विष्णु[7]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, अनुशासनपर्व।
- ↑ वैवस्वत मनु मा. पु., 99-102
- ↑ पौराणिक कोश |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संपादन: राणा प्रसाद शर्मा |पृष्ठ संख्या: 44 |
- ↑ ब्रह्मांडपुराण 2.38.3; 3.1.61; 3.57.61; 67-8; 4.34; मत्स्यपुराण 171.55; वायुपुराण 30.83,99, 1,187, 268; विष्णुपुराण 1.15-128-131
- ↑ भागवतपुराण 8.13.4; 6.7.2; 10.17; मत्स्यपुराण 9.29
- ↑ वायुपुराण 67.44; मत्स्यपुराण 6.3; विष्णुपुराण 1.15.134
- ↑ भागवतपुराण 12.11.30-45; ब्रह्मांडपुराण 2.24.33-4, 75; मत्स्यपुराण 132.3; 247.10; विष्णुपुराण 1.15.13.-3
- ↑ वायुपुराण 101.30
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