कात्यायन: Difference between revisions

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#कात्यायन गृह कारिका  
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#वृषोत्सगं पद्धति  
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#आतुर सन्यास विधि  
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#गृह्यसूत्र  
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#शुक्ल यजुःप्रातिशाख्य
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Revision as of 12:04, 2 May 2015

प्राचीन साहित्य में ‘कात्यायन’ के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं-

  1. ’कात्यायन’ विश्वामित्र कलोत्पन्न एक प्राचीन ॠषि थे। उन्होंने 'श्रौतसूत्र', 'गृह्यसूत्र' आदि की रचना की थी।
  2. गोमिल नामक एक प्राचीन ॠशि के पुत्र का नाम कात्यायन था। इनके रचे हुए तीन ग्रन्थ कहे जाते हैं- ‘ग्रह्य-संग्रह’, ‘छन्दःपरिशिष्ट’ और ‘कर्म प्रदीप’।
  3. ‘कात्यायन’ एक बौद्ध आचार्य थे जिन्होंने ‘अभिधर्म ज्ञान प्रस्थान’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इनका समय बुद्ध से 45 वर्ष उपरान्त माना जाता है।
  4. एक अन्य बौद्ध आचार्य थे जिन्होंने ‘पालि व्याकरण’ की रचना की थी और जो पालि में ‘कच्चयान’ नाम से प्रसिद्ध हैं।
  5. प्रसिद्ध महर्षि तथा व्याकरण शास्त्र के प्रणेता जिन्होंने पाणिनीय अष्टाध्यायी का परिशोधन कर उस पर वार्तिक लिखा था। कुछ लोग ‘प्राकृत प्रकाश’ के रचनाकार वररुचि को इनसे अभिन्न मानते हैं।
  • कात्यायान के समय के प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
  • कात्यायन का समय मैक्समूलर के अनुसार चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तथा बेबर के अनुसार ईसा के जन्म के 25 वर्ष पूर्व है।
  • व्याकरण के अतिरिक्त ‘श्रोत सूत्रों’ और ‘यजुर्वेद प्रातिशाख्य’ के भी रचयिता कात्यायन ही माने जाते हैं।
  • बेबर ने इनके सूत्रों का सम्पादन किया है। कात्यायन को एक स्मृति का भी रचनाकार कहा जाता है।
  • कथा सरित्सागर के अनुसार ये पुष्पदन्त नामक गन्धर्व के अवतार थे।
  • कात्यायन के नाम से प्राप्त प्रसिद्ध ग्रन्थों की सूची इस प्रकार हैं-
  1. श्रौत सूत्र
  2. इष्टि पद्धति
  3. गृह परिशिष्ट
  4. कर्म प्रदीप
  5. श्राद्ध कल्प सूत्र
  6. पशु बन्ध सूत्र
  7. प्रतिहार सूत्र
  8. भ्राजश्लोक
  9. रुद्रिविधान
  10. वार्तिक पाठ
  11. कात्यायनी शांति
  12. कात्यायनी शिक्षा
  13. स्नान विधि
  14. कात्यायन कारिका
  15. कात्यायन प्रयोग
  16. कात्यायन वेद प्राप्ति
  17. कात्यायन शाखा भाष्य
  18. कात्यायन स्मृति
  19. कात्यायनोपनिषद
  20. कात्यायन गृह कारिका
  21. वृषोत्सगं पद्धति
  22. आतुर सन्न्यास विधि
  23. गृह्यसूत्र
  24. शुक्ल यजुःप्रातिशाख्य
  25. प्राकत प्रकाश
  26. अभिधर्म ज्ञान प्रस्थान।
  • भ्रमवश ये सभी ग्रंथ वररुचि कात्यायन के माने जाते हैं किन्तु यह उचित ज्ञात नहीं होता। इनमें से अनेक ग्रन्थ अप्राप्य हैं।


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