जोधराज

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जोधराज
पूरा नाम जोधराज
अभिभावक पिता- बालकृष्ण
मुख्य रचनाएँ 'हम्मीररासो'
भाषा फ़ारसी, अरबी, ब्रजभाषा
प्रसिद्धि कवि
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख पृथ्वीराजरासो, रामचरितमानस' रामचन्द्र शुक्ल, श्यामसुन्दर दास, मुहावरों, चौहानवंशीय, छन्दों, अलाउद्दीन
अन्य जानकारी जोधराज को काव्य-कला और ज्योतिष-शास्त्र का पूर्ण ज्ञान था।
अद्यतन‎ 04:58, 30 जून 2017 (IST)

जोधराज वीर-रस के उत्कृष्ट कोटि के कवि थे तथा इन्हें काव्य-कला और ज्योतिष-शास्त्र का पूर्ण ज्ञान था। यह अत्रिगोत्रीय गौड़ वंशोत्पन्न ब्राह्मण थे। इनकी रचना पर पौराणिक आख्यानों, 'पृथ्वीराजरासो' तथा 'रामचरितमानस' का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है।

परिचय

जोधराज नीमराणा अलवर, राजस्थान के चौहानवंशीय राजा चन्द्रभाण के आश्रित थे। इनके पिता का नाम बालकृष्ण था। इनका निवास स्थान बीजवार ग्राम था। यह अत्रिगोत्रीय गौड़ वंशोत्पन्न ब्राह्मण थे। जोधराज काव्य-कला और ज्योतिष-शास्त्र के पूर्ण पण्डित थे। इन्होंने अपने आश्रयदाता की आज्ञा से 'सम्मीररासो' लिखा था।[1]

रचनाएँ

जोधराज ने इसकी रचना-तिथि इस प्रकार दी है- "चन्द्र नाग वसु पंचगिनि संवत माधव मास। शुल्क सुतृतीया जीव जुत ता दिन ग्रंथ प्रकास।"(छन्द 168) नाग को सात का पर्यायवाची मानने से 'हम्मीररासो' की रचना-तिथि संवत 1785 विक्रम, वैशाख शुक्ल 3, जीव (गुरुवार) ठहरती है। गणना करने पर ज्ञात होता है कि 1785 विक्रम में वैशाख शुक्ल तृतीय को गुरुवार नहीं पड़ा था। नाग का अर्थ आठ लेने से जोधराज कथित तिथि 1885 विक्रम वैशाख शुक्ल तृतीया वृहस्पतिवार आती है। यह तिथि गणना करने पर खरी उतरती है। अतएव जोधराज ने 'हम्मीररासो' की रचना संवत 1885 विक्रम, वैशाख शुक्ल 3, वृहस्पतिवार तदनुसार 17 अप्रैल, 1828 ई. को की थी। मिश्रबन्धओं, श्यामसुन्दरदास आदि विद्वानों ने इसकी रचना-तिथि 1785 विक्रम (1728 ई.) तथा रामचन्द्र शुक्ल ने 1875 विक्रम (1818 ई.) मानी है पर ये मत भ्रामक हैं।

'हम्मीररासो' में 969 छन्द हैं। ग्रंथ के आरम्भ में कवि ने गणेश और सरस्वती की स्तुति, आश्रयदाता तथा अपना परिचय देने के पश्चात् सृष्टि-रचना, चन्द्र-सूर्य-वंश-उत्पत्ति, अग्नि-कुल-जन्म आदि का वर्णन किया है। तदनंतर रणथम्भौर के राव हम्मीर और अलाउद्दीन के युद्ध का विस्तारपूर्वक चित्रण किया गया है।[2]

भाषा शैली

जोधराज की रचना पर पौराणिक आख्यानों, 'पृथ्वीराजरासो' तथा 'रामचरितमानस' का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। इन्होंने ऐतिहासिक तथ्यनिरूपण में असावधानी से काम लिया है। इस काव्य में वीर-रस का सफल चित्रण किया गया है। साथ ही इसमें श्रृंगार, रौद्र और वीभत्स आदि रसों का भी अच्छा निर्वाह हुआ है और दोहरा, मोतीदाम, नाराच, कवित्त, छप्पन आदि विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है। हम्मीर के प्रतिद्वान्द्वी अलाउद्दीन के द्वारा आखूत (चूहा) को मरवाकर उसके चरित्र को उपहासास्पद बना दिया गया है। इसमें ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप के दर्शन होते हैं, पर कहीं-कहीं पर उसने बोलचाल का रूप धारण कर लिया है। फ़ारसी, अरबी आदि के अद्भुत प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। मुहावरों के प्रयोग द्वारा जोधराज ने अपनी भाषा को अधिक सवल, व्यापक और प्रौढ़ बनाया है। इस प्रकार जोधराज वीर-रस के उत्कृष्ट कोटि के कवि हैं।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'मम्मीररासो' छन्द 5-13
  2. हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 222 |
  3. सहायक ग्रंथ- हि. वी; हि. सा. इ.; हि. सा. (भा. 2)।

बाहरी कड़ियाँ

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