Difference between revisions of "सुमित्रानंदन पंत"

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|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि   
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|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], [[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]], [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन]], [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि   
 
|विषय=गीत, कविताएँ
 
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|भाषा=[[हिन्दी]]
 
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|शीर्षक 1=आंदोलन
 
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'''सुमित्रानंदन पंत''' [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत उस नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए। सुमित्रानंदन पंत का जन्म [[20 मई]] [[1900]] में [[कौसानी]], [[उत्तराखण्ड]], [[भारत]] में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त।
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'''सुमित्रानंदन पंत''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sumitranandan Pant'',  जन्म: [[20 मई]] [[1900]] - मृत्यु:  [[28 दिसंबर]], [[1977]]) [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए।
==शिक्षा==
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==जीवन परिचय==
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सुमित्रानंदन पंत का जन्म [[20 मई]] [[1900]] में [[कौसानी]], [[उत्तराखण्ड]], [[भारत]] में हुआ था। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के सुकुमार कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा [[कौसानी]] गांव के स्कूल में हुई, फिर वह [[वाराणसी]] आ गए और जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा पाई, इसके बाद उन्होंने [[इलाहाबाद]] में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही 1921 में [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गए।
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==स्वतंत्रता संग्राम में योगदान ==
 
[[चित्र:Pant.jpg|left|thumb|250px|[[कौसानी]] में महाकवि का दुर्लभ चित्र]]  
 
[[चित्र:Pant.jpg|left|thumb|250px|[[कौसानी]] में महाकवि का दुर्लभ चित्र]]  
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के सुकुमार कवि पंत की प्रारंभिक शिक्षा [[कौसानी]] गांव के स्कूल में हुई, फिर वह [[वाराणसी]] आ गए और जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा पाई, इसके बाद उन्होंने [[इलाहाबाद]] में म्योर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही 1921 में [[असहयोग आंदोलन]] में शामिल हो गए।
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[[1921]] के [[असहयोग आंदोलन]] में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के [[स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन|स्वतंत्रता संग्राम]] की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान [[1930]] के [[नमक सत्याग्रह]] के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके [[हृदय]] में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]] (1938) और [[ग्राम्या -सुमित्रनन्दन पंत|ग्राम्या]] (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग के जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। [[स्वर्णकिरण -सुमित्रनन्दन पंत|स्वर्णकिरण]] तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।  
==स्वतंत्रता संग्राम ==
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==काव्य एवं साहित्य की साधना==
1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के [[नमक सत्याग्रह]] के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]] (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग के जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।  
+
पंत संघर्षों के एक लंबे दौर से गुज़रे, जिसके दौरान स्वयं को काव्य एवं साहित्य की साधना में लगाने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास किया। बहुत पहले ही उन्होंने यह समझ लिया था कि उनके जीवन का लक्ष्य और कार्य यदि कोई है, तो वह काव्य साधना ही है। पंत की भाव-चेतना महाकवि [[रबींद्रनाथ ठाकुर]], [[महात्मा गांधी]] और श्री [[अरबिंदो घोष]] की रचनाओं से प्रभावित हुई। साथ ही कुछ मित्रों ने मार्क्सवाद के अध्ययन की ओर भी उन्हें प्रवृत किया और उसके विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पक्षों को उन्होंने गहराई से देखा व समझा। [[1950]] में रेडियो विभाग से जुड़ने से उनके जीवन में एक ओर मोड़ आया। सात वर्ष उन्होंने हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया और उसके बाद साहित्य सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
==कुशल कवि==
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====युग प्रवर्तक कवि====
[[चित्र:Pant amitabh.jpg|left|thumb|250px|[[हरिवंशराय बच्चन]] और सदी के महानायक [[अमिताभ बच्चन]] के साथ महाकवि सुमित्रानंदन पंत ]]
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[[चित्र:Pant amitabh.jpg|left|thumb|250px|[[हरिवंशराय बच्चन]] और सदी के महानायक [[अमिताभ बच्चन]] के साथ महाकवि सुमित्रानंदन पंत]]
 
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के एक युग प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी। पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
 
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के एक युग प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी। पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
 
==काव्य एवं साहित्य की साधना==
 
पंत फिर संघर्षों के एक लंबे दौर से गुज़रे, जिसके दौरान स्वयं को काव्य एवं साहित्य की साधना में लगाने के लिए उन्होंने अपनी आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास किया। बहुत पहले ही उन्होंने यह समझ लिया था कि उनके जीवन का लक्ष्य और कार्य यदि कोई है, तो वह काव्य साधना ही है। पंत की भाव-चेतना महाकवि [[रबींद्रनाथ ठाकुर]], [[महात्मा गांधी]] और श्री [[अरबिंदो घोष]] की रचनाओं से प्रभावित हुई। साथ ही कुछ मित्रों ने मार्क्सवाद के अध्ययन की ओर भी उन्हें प्रवृत किया और उसके विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पक्षों को उन्होंने गहराई से देखा व समझा। [[1950]] में रेडियो विभाग से जुड़ने से उनके जीवन में एक ओर मोड़ आया। सात वर्ष उन्होंने हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया और उसके बाद साहित्य सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
 
 
 
==रचनाकाल==
 
==रचनाकाल==
 
पंत का [[पल्लव पंत|पल्लव]], ज्योत्सना तथा गुंजन का रचनाकाल काल (1926-33) उनकी सौंदर्य एवं कला-साधना का काल रहा है। वह मुख्यत: भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आदर्शवादिता से अनुप्राणिक थे। किंतु युगांत (1937) तक आते-आते बहिर्जीवन के खिंचाव से उनके भावात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन आए। पन्तजी की रचनाओं का क्षेत्र बहुविध और बहुआयामी है। आपकी रचनाओं सा संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
 
पंत का [[पल्लव पंत|पल्लव]], ज्योत्सना तथा गुंजन का रचनाकाल काल (1926-33) उनकी सौंदर्य एवं कला-साधना का काल रहा है। वह मुख्यत: भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आदर्शवादिता से अनुप्राणिक थे। किंतु युगांत (1937) तक आते-आते बहिर्जीवन के खिंचाव से उनके भावात्मक दृष्टिकोण में परिवर्तन आए। पन्तजी की रचनाओं का क्षेत्र बहुविध और बहुआयामी है। आपकी रचनाओं सा संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
 
====महाकाव्य====
 
====महाकाव्य====
'[[लोकायतन]]' कवि पन्त का महाकाव्य है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर कवि को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
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'[[लोकायतन]]' कवि पन्त का [[महाकाव्य]] है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता इस रचना में अभिव्यक्त हुई है। इस पर [[कवि]] को सोवियत रूस तथा [[उत्तर प्रदेश]] शासन से पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
 
====काव्य-संग्रह====
 
====काव्य-संग्रह====
'[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]]', '[[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]]' तथा '[[गुंजन -सुमित्रानन्दन पंत|गुंजन]]' छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है। '[[युगांत -सुमित्रानन्दन पंत|युगान्त]]', [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]]' तथा '[[ग्राम्या -सुमित्रानन्दन पंत|ग्राम्या]]' में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है। '[[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्ण-किरण]]', 'स्वर्ण-धूलि', '[[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]]', 'उत्तरा', 'अतिमा', तथा 'रजत-रश्मि' संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनके अतिरिक्त 'कला' और बूढ़ा चाँद' तथा 'चिदम्बरा' भी आपकी सम्मानित रचनाएँ हैं। पन्तजी की अन्तर्दृष्टि तथा संवेदनशीलता ने जहाँ उनके भाव-पक्ष को गहराई और विविधता प्रदान की हैं, वहीं उनकी कल्पना-प्रबलता और अभिव्यक्ति-कौशल ने उनके कला-पक्ष को सँवारा है।
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'[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]]', '[[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]]' तथा '[[गुंजन -सुमित्रानन्दन पंत|गुंजन]]' छायावादी शैली में सौन्दर्य और प्रेम की प्रस्तुति है। '[[युगांत -सुमित्रानन्दन पंत|युगान्त]]', [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]]' तथा '[[ग्राम्या -सुमित्रानन्दन पंत|ग्राम्या]]' में पन्तजी के प्रगतिवादी और यथार्थपरक भावों का प्रकाशन हुआ है। '[[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्ण-किरण]]', '[[स्वर्णधूलि -सुमित्रनन्दन पंत|स्वर्ण-धूलि]]', '[[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]]', '[[उत्तरा -सुमित्रनन्दन पंत|उत्तरा]]', 'अतिमा', तथा 'रजत-रश्मि' संग्रहों में अरविन्द-दर्शन का प्रभाव परिलक्षित होता है। इनके अतिरिक्त 'कला और बूढ़ा चाँद' तथा '[[चिदम्बरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदम्बरा]]' भी आपकी सम्मानित रचनाएँ हैं। पन्तजी की अन्तर्दृष्टि तथा संवेदनशीलता ने जहाँ उनके भाव-पक्ष को गहराई और विविधता प्रदान की हैं, वहीं उनकी कल्पना-प्रबलता और अभिव्यक्ति-कौशल ने उनके कला-पक्ष को सँवारा है।
====रचनाएं====
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==रचनाएँ==
 
[[चित्र:Sumitranandan.jpg|thumb|सुमित्रानंदन पंत]]
 
[[चित्र:Sumitranandan.jpg|thumb|सुमित्रानंदन पंत]]
चिदंबरा 1958 का प्रकाशन है। इसमें युगवाणी ([[1937]]-38) से अतिमा ([[1948]]) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई 196 कविताएं संकलित हैं। एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमें सम्मिलित है, जो वाणी ([[1957]]) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है। प्रमुख रचनाएं इस प्रकार  है:-  
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[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]] [[1958]] का प्रकाशन है। इसमें [[युगवाणी -सुमित्रनन्दन पंत|युगवाणी]] ([[1937]]-38) से अतिमा ([[1948]]) तक कवि की 10 कृतियों से चुनी हुई 196 कविताएं संकलित हैं। एक लंबी आत्मकथात्मक कविता आत्मिका भी इसमें सम्मिलित है, जो वाणी ([[1957]]) से ली गई है। चिदंबरा पंत की काव्य चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायक है। प्रमुख रचनाएं इस प्रकार  है:-  
 
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{| class="bharattable-green"
'''कविताएं'''-  
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*[[वीणा पंत|वीणा]] ([[1919]]),
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*[[ग्रंथि पंत|ग्रंथि]]  ([[1920]]),
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; कविताएं   
*[[पल्लव पंत|पल्लव]] ([[1926]]),
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*[[वीणा पंत|वीणा]] ([[1919]])
*[[गुंजन पंत|गुंजन]] ([[1932]]),
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*[[ग्रंथि पंत|ग्रंथि]]  ([[1920]])
*[[युगांत]] ([[1937]]),
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*[[पल्लव पंत|पल्लव]] ([[1926]])
*[[युगवाणी पंत|युगवाणी]] ([[1938]]),
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*[[गुंजन पंत|गुंजन]] ([[1932]])
*[[ग्राम्या पंत|ग्राम्या]] ([[1940]]),
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*[[युगांत]] ([[1937]])
*[[स्वर्णकिरण पंत|स्वर्णकिरण]] ([[1947]]),
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*[[युगवाणी पंत|युगवाणी]] ([[1938]])
*[[स्वर्णधूलि पंत|स्वर्णधूलि]] ([[1947]]),
+
*[[ग्राम्या पंत|ग्राम्या]] ([[1940]])
*युगांतर ([[1948]]),
+
*[[स्वर्णकिरण पंत|स्वर्णकिरण]] ([[1947]])
*[[उत्तरा पंत|उत्तरा]] ([[1949]]),
+
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*[[युगपथ पंत|युगपथ]] ([[1949]]),
+
; कविताएं 
*चिदंबरा ([[1958]]),
+
*[[स्वर्णधूलि पंत|स्वर्णधूलि]] ([[1947]])
*कला और बूढ़ा चांद ([[1959]]),
+
*[[उत्तरा पंत|उत्तरा]] ([[1949]])
*[[लोकायतन]] ([[1964]]),
+
*[[युगपथ पंत|युगपथ]] ([[1949]])
 +
*[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]] ([[1958]])
 +
*कला और बूढ़ा चांद ([[1959]])
 +
*[[लोकायतन]] ([[1964]])
 
*गीतहंस ([[1969]])।
 
*गीतहंस ([[1969]])।
'''कहानियाँ'''-
+
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*पाँच कहानियाँ (1938),
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; कहानियाँ  
*उपन्यास- हार (1960),  
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*पाँच कहानियाँ (1938)
*आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष : एक रेखांकन ([[1963]])।
+
; उपन्यास
 
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* हार (1960),  
==भाव पक्ष==
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; आत्मकथात्मक संस्मरण
पन्तजी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है। कौसानी की सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को रूपायित किया था। प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं के बहुत बड़े भाग को प्रभावित किए हुए है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं। वह मानवी-कृता सहेली है, भावोद्दीपिका है, अभिव्यक्ति का आलम्बन है और अलंकृता प्रकृति-वधू भी है। इसके अतिरिक्त प्रकृति कवि पन्त के लिए उपदेशिका और दार्शनिक चिन्तन का आधार भी बनी है।
+
* साठ वर्ष : एक रेखांकन ([[1963]])।
कवि पन्त को सामान्यतया कोमल-कान्त भावनाओं और सौन्दर्य का कवि समझा जाता है किन्तु जीवन के यथार्थों से सामना होने पर कवि में जीवन के प्रति यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास होता गया है। सर्वप्रथम पन्त मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव उनकी 'युगान्त', 'युगवाणी' आदि रचनाओं में परिलक्षित होता है। गाँधीवाद से भी आप प्रभावित दिखते हैं। '[[लोकायतन]]' में यह प्रभाव विद्यमान है। [[महर्षि अरविन्द]] की विचारधारा का भी आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। 'गीत-विहग' रचना इसका उदाहरण है। सौन्दर्य और उल्लास के कवि पन्त को जीवन का निराशामय विरूप-पक्ष भी भोगना पड़ा और इसकी प्रतिक्रिया 'परिवर्तन' नामक रचना में दृष्टिगत होती है-
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==साहित्यिक विशेषताएँ==
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====भाव पक्ष====
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[[चित्र:Pant malyarpan.jpg|thumb|left|राजकीय संग्रहालय [[कौसानी]] में स्थापित महाकवि की मूर्ति]]
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पन्तजी के भाव-पक्ष का एक प्रमुख तत्त्व उनका मनोहारी प्रकृति चित्रण है। [[कौसानी]] की सौन्दर्यमयी प्राकृतिक छटा के बीच पन्तजी ने अपनी बाल-कल्पनाओं को रूपायित किया था। प्रकृति के प्रति उनका सहज आकर्षण उनकी रचनाओं के बहुत बड़े भाग को प्रभावित किए हुए है। प्रकृति के विविध आयामों और भंगिमाओं को हम पन्त के काव्य में रूपांकित देखते हैं। वह मानवी-कृता सहेली है, भावोद्दीपिका है, अभिव्यक्ति का आलम्बन है और अलंकृता प्रकृति-वधू भी है। इसके अतिरिक्त प्रकृति कवि पन्त के लिए उपदेशिका और दार्शनिक चिन्तन का आधार भी बनी है। कवि पन्त को सामान्यतया कोमल-कान्त भावनाओं और सौन्दर्य का कवि समझा जाता है किन्तु जीवन के यथार्थों से सामना होने पर कवि में जीवन के प्रति यथार्थपरक और दार्शनिक दृष्टिकोण का विकास होता गया है। सर्वप्रथम पन्त मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव उनकी 'युगान्त', 'युगवाणी' आदि रचनाओं में परिलक्षित होता है। गाँधीवाद से भी आप प्रभावित दिखते हैं। '[[लोकायतन]]' में यह प्रभाव विद्यमान है। [[महर्षि अरविन्द]] की विचारधारा का भी आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। 'गीत-विहग' रचना इसका उदाहरण है। सौन्दर्य और उल्लास के कवि पन्त को जीवन का निराशामय विरूप-पक्ष भी भोगना पड़ा और इसकी प्रतिक्रिया 'परिवर्तन' नामक रचना में दृष्टिगत होती है-
 
<blockquote>अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलते कंकाल,<br />
 
<blockquote>अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलते कंकाल,<br />
   
 
 
खोलता इधर जन्म लोचन मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण।</blockquote>
 
खोलता इधर जन्म लोचन मूँदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण।</blockquote>
पन्तजी के काव्य में मानवतावादी दृष्टि को भी सम्मानित स्थान प्राप्त है। वह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हैं। 'द्रुमों की छाया' और 'प्रकृति की माया' को छोड़कर जो पन्त 'बाला के बाल-जाल' में 'लोचन उलझाने' को प्रस्तुत नहीं थे, वही मानव को विधाता की सुन्दरतम कृति स्वीकार करते हैं-
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पन्तजी के [[काव्य]] में मानवतावादी दृष्टि को भी सम्मानित स्थान प्राप्त है। वह मानवीय प्रतिष्ठा और मानव-जाति के भावी विकास में दृढ़ विश्वास रखते हैं। 'द्रुमों की छाया' और 'प्रकृति की माया' को छोड़कर जो पन्त 'बाला के बाल-जाल' में 'लोचन उलझाने' को प्रस्तुत नहीं थे, वही मानव को विधाता की सुन्दरतम कृति स्वीकार करते हैं-
 
<blockquote>सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।<br />
 
<blockquote>सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।<br />
 
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो-मानव।</blockquote>
 
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो-मानव।</blockquote>
 
+
====भाषा-शैली====
==कला पक्ष==
+
कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है। भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है। यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है। पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है। प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है। विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है। सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।
====भाषा====
 
कवि पन्त का भाषा पर असाधारण अधिकार है। भाव और विषय के अनुकूल मार्मिक शब्दावली उनकी लेखनी से सहज प्रवाहित होती है। यद्यपि पन्त की भाषा का एक विशिष्ट स्तर है फिर भी वह विषयानुसार परिवर्तित होती है।
 
 
 
====शैली====
 
पन्तजी के काव्य में एकाधिक शैलियों का प्रयोग हुआ है। प्रकृति-चित्रण में भावात्मक, आलंकारिक तथा दृश्य विधायनी शैली का प्रयोग हुआ है। विचार-प्रधान तथा दार्शनिक विषयों की शैली विचारात्मक एवं विश्लेषणात्मक भी हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रतीक-शैली का प्रयोग भी हुआ है। सजीव बिम्ब-विधान तथा ध्वन्यात्मकता भी आपकी रचना-शैली की विशेषताएँ हैं।
 
 
====अलंकरण====
 
====अलंकरण====
पन्तजी ने परम्परागत एवं नवीन, दोनों ही प्रकार के अलंकारों का भव्यता से प्रयोग किया है। बिम्बों की मौलिकता तथा उपमानों की मार्मिकता हृदयहारिणी है। रूपक, उपमा, सांगरूपक, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय तथा ध्वन्यर्थ-व्यंजना का आकर्षक प्रयोग आपने किया है।
+
पन्तजी ने परम्परागत एवं नवीन, दोनों ही प्रकार के अलंकारों का भव्यता से प्रयोग किया है। बिम्बों की मौलिकता तथा उपमानों की मार्मिकता हृदयहारिणी है। [[रूपक अलंकार|रूपक]], [[उपमा अलंकार|उपमा]], सांगरूपक, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय तथा ध्वन्यर्थ-व्यंजना का आकर्षक प्रयोग आपने किया है।
 
====छंद====
 
====छंद====
पन्तजी ने परम्परागत छन्दों के साथ-साथ नवीन छंदों की भी रचना की है। आपने गेयता और ध्वनि-प्रभाव पर ही बल दिया है, मात्राओं और वर्णों के क्रम तथा संख्या पर नहीं। प्रकृति के चितेरे तथा छायावादी कवि के रूप में पन्तजी का स्थान निश्चय ही विशिष्ट है। हिन्दी की लालित्यपूर्ण और संस्कारित खड़ी-बोली भी पन्तजी की देन है। पन्तजी विश्व-साहित्य में भी अपना स्थान बना गए हैं।
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पन्तजी ने परम्परागत [[छन्द|छन्दों]] के साथ-साथ नवीन छंदों की भी रचना की है। आपने गेयता और ध्वनि-प्रभाव पर ही बल दिया है, मात्राओं और वर्णों के क्रम तथा संख्या पर नहीं। प्रकृति के चितेरे तथा छायावादी कवि के रूप में पन्तजी का स्थान निश्चय ही विशिष्ट है। [[हिन्दी]] की लालित्यपूर्ण और संस्कारित [[खड़ी बोली]] भी पन्तजी की देन है। पन्तजी विश्व-साहित्य में भी अपना स्थान बना गए हैं।
 
==पुरस्कार==
 
==पुरस्कार==
सुमित्रानंदन पंत को अन्य पुरस्कारों के अलावा [[पद्म भूषण]] (1961) और [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] (1968) से सम्मानित किया गया। '''कला और बूढ़ा चाँद''' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, '''लोकायतन''' पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं '''चिदंबरा''' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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[[चित्र:Pant_sagrahalay.jpg|right|thumb|250px|महाकवि की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय]]
 
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सुमित्रानंदन पंत को [[पद्म भूषण]] ([[1961]]) और [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1968]]) से सम्मानित किया गया। '''कला और बूढ़ा चाँद''' के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], '''[[लोकायतन -सुमित्रनन्दन पंत|लोकायतन]]''' पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं '[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]]' पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
[[चित्र:Pant malyarpan.jpg|left|thumb|250px|राजकीय संग्रहालय [[कौसानी]] में स्थापित महाकवि की मूर्ति]] [[चित्र:Pant_sagrahalay.jpg|right|thumb|250px|महाकवि की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय]]
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[[कौसानी]] चाय बागान के व्यवस्थापक के परिवार में जन्मे महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु [[28 दिसम्बर]], [[1977]] को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हो गयी थी। [[उत्तराखंड]] राज्य के कौसानी में महाकवि की जन्म स्थली को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है जिसकी देखरेख एक स्थानीय व्यक्ति करता है। इस स्थल के प्रवेश द्वार से लगे भवन की छत पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष [[1990]] में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनांद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस [[20 मई]] को किया गया था। महाकवि सुमित्रानंदन पंत का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शाल, दीपक, पुस्तकों की आलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित है।
[[कौसानी]] चाय बागान के व्यवस्थापक के परिवार में जन्मे महाकवि सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु [[28 दिसम्बर]], [[1977]] को [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हो गयी थी। [[उत्तराखंड]] राज्य के कौसानी में महाकवि की जन्म स्थली को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर उनके नाम पर एक राजकीय संग्रहालय बनाया गया है जिसकी देखरेख एक स्थानीय व्यक्ति करता है। इस स्थल के प्रवेश द्वार से लगे भवन की छत पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष [[1990]] में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनांद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस [[20 मई]] को किया गया था। महाकवि सुमित्रानंदन पंत का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शाल, दीपक, पुस्तकों की आलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ ऐक सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित हैं।
 
 
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारत के कवि}}{{सुमित्रानन्दन पंत}}
 
{{भारत के कवि}}{{सुमित्रानन्दन पंत}}

Revision as of 09:40, 13 September 2013

sumitranandan pant
poora nam sumitranandan pant
any nam gusaee datt
janm 20 mee 1900
janm bhoomi kausani, uttarakhand, bharat
mrityu 28 disanbar, 1977
mrityu sthan ilahabad, uttar pradesh, bharat
karm bhoomi ilahabad
karm-kshetr adhyapak, lekhak, kavi
mukhy rachanaean vina, pallav, chidanbara, yugavani, lokayatan, yugapath, svarnakiran, kala aur boodha chaand adi
vishay git, kavitaean
bhasha hindi
vidyalay jayanarayan haeeskool, myor seantral k aaulej
puraskar-upadhi jnanapith puraskar, padm bhooshan, sahity akadami puraskar, lokayatan par soviyat laiand neharu puraskar
nagarikata bharatiy
aandolan rahasyavad v pragativad
inhean bhi dekhean kavi soochi, sahityakar soochi
sumitranandan pant ki rachanaean
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sumitranandan pant (aangrezi: Sumitranandan Pant, janm: 20 mee 1900 - mrityu: 28 disanbar, 1977) hindi sahity mean chhayavadi yug ke char stanbhoan mean se ek haian. sumitranandan pant naye yug ke pravartak ke roop mean adhunik hindi sahity mean udit hue.

jivan parichay

sumitranandan pant ka janm 20 mee 1900 mean kausani, uttarakhand, bharat mean hua tha. janm ke chhah ghante bad hi maan ko kroor mrityu ne chhin liya. shishu ko usaki dadi ne pala posa. shishu ka nam rakha gaya gusaee datt. jnanapith puraskar se sammanit hindi ke sukumar kavi pant ki praranbhik shiksha kausani gaanv ke skool mean huee, phir vah varanasi a ge aur jayanarayan haeeskool mean shiksha paee, isake bad unhoanne ilahabad mean myor seantral k aaulej mean pravesh liya, par iantaramidiet ki pariksha mean baithane se pahale hi 1921 mean asahayog aandolan mean shamil ho ge.

svatantrata sangram mean yogadan

[[chitr:Pant.jpg|left|thumb|250px|kausani mean mahakavi ka durlabh chitr]] 1921 ke asahayog aandolan mean unhoanne k aaulej chho d diya tha, par desh ke svatantrata sangram ki ganbhirata ke prati unaka dhyan 1930 ke namak satyagrah ke samay se adhik keandrit hone laga, inhian dinoan sanyogavash unhean kalakaankar mean gram jivan ke adhik nikat sanpark mean ane ka avasar mila. us gram jivan ki prishthabhoomi mean jo sanvedan unake hriday mean aankit hone lage, unhean vani dene ka prayatn unhoanne yugavani (1938) aur gramya (1940) mean kiya. yahaan se unaka kavy, yug ke jivan-sangharsh tatha nee chetana ka darpan ban jata hai. svarnakiran tatha usake bad ki rachanaoan mean unhoanne kisi adhyatmik ya darshanik saty ko vani n dekar vyapak manaviy saanskritik tattv ko abhivyakti di, jisamean ann pran, man atma, adi manav-jivan ke sabhi svaroan ki chetana ko sanyojit karane ka prayatn kiya gaya.

kavy evan sahity ki sadhana

pant sangharshoan ke ek lanbe daur se guzare, jisake dauran svayan ko kavy evan sahity ki sadhana mean lagane ke lie unhoanne apani ajivika sunishchit karane ka prayas kiya. bahut pahale hi unhoanne yah samajh liya tha ki unake jivan ka lakshy aur kary yadi koee hai, to vah kavy sadhana hi hai. pant ki bhav-chetana mahakavi rabiandranath thakur, mahatma gaandhi aur shri arabiando ghosh ki rachanaoan se prabhavit huee. sath hi kuchh mitroan ne marksavad ke adhyayan ki or bhi unhean pravrit kiya aur usake vibhinn samajik-arthik pakshoan ko unhoanne gaharaee se dekha v samajha. 1950 mean rediyo vibhag se ju dane se unake jivan mean ek or mo d aya. sat varsh unhoanne hindi chif prodyoosar ke pad par kary kiya aur usake bad sahity salahakar ke roop mean karyarat rahe.

yug pravartak kavi

[[chitr:Pant amitabh.jpg|left|thumb|250px|harivansharay bachchan aur sadi ke mahanayak amitabh bachchan ke sath mahakavi sumitranandan pant]] sumitranandan pant adhunik hindi sahity ke ek yug pravartak kavi haian. unhoanne bhasha ko nikhar aur sanskar dene, usaki samarthy ko udghatit karane ke atirikt navin vichar v bhavoan ki samriddhi di. pant sada hi atyant sashakt aur oorjavan kavi rahe haian. sumitranandan pant ko mukhyat: prakriti ka kavi mana jane laga. lekin pant vastav mean manav-sauandary aur adhyatmik chetana ke bhi kushal kavi the.

rachanakal

pant ka pallav, jyotsana tatha guanjan ka rachanakal kal (1926-33) unaki sauandary evan kala-sadhana ka kal raha hai. vah mukhyat: bharatiy saanskritik punarjagaran ki adarshavadita se anupranik the. kiantu yugaant (1937) tak ate-ate bahirjivan ke khianchav se unake bhavatmak drishtikon mean parivartan ae. pantaji ki rachanaoan ka kshetr bahuvidh aur bahuayami hai. apaki rachanaoan sa sankshipt parichay is prakar hai-

mahakavy

'lokayatan' kavi pant ka mahakavy hai. kavi ki vicharadhara aur lok-jivan ke prati usaki pratibaddhata is rachana mean abhivyakt huee hai. is par kavi ko soviyat roos tatha uttar pradesh shasan se puraskar prapt hua hai.

kavy-sangrah

'vina', 'pallav' tatha 'guanjan' chhayavadi shaili mean saundary aur prem ki prastuti hai. 'yugant', yugavani' tatha 'gramya' mean pantaji ke pragativadi aur yatharthaparak bhavoan ka prakashan hua hai. 'svarn-kiran', 'svarn-dhooli', 'yugapath', 'uttara', 'atima', tatha 'rajat-rashmi' sangrahoan mean aravind-darshan ka prabhav parilakshit hota hai. inake atirikt 'kala aur boodha chaand' tatha 'chidambara' bhi apaki sammanit rachanaean haian. pantaji ki antardrishti tatha sanvedanashilata ne jahaan unake bhav-paksh ko gaharaee aur vividhata pradan ki haian, vahian unaki kalpana-prabalata aur abhivyakti-kaushal ne unake kala-paksh ko sanvara hai.

rachanaean

thumb|sumitranandan pant chidanbara 1958 ka prakashan hai. isamean yugavani (1937-38) se atima (1948) tak kavi ki 10 kritiyoan se chuni huee 196 kavitaean sankalit haian. ek lanbi atmakathatmak kavita atmika bhi isamean sammilit hai, jo vani (1957) se li gee hai. chidanbara pant ki kavy chetana ke dvitiy utthan ki parichayak hai. pramukh rachanaean is prakar hai:-

kavitaean
kavitaean
kahaniyaan
  • paanch kahaniyaan (1938)
upanyas
  • har (1960),
atmakathatmak sansmaran
  • sath varsh : ek rekhaankan (1963).

sahityik visheshataean

bhav paksh

[[chitr:Pant malyarpan.jpg|thumb|left|rajakiy sangrahalay kausani mean sthapit mahakavi ki moorti]] pantaji ke bhav-paksh ka ek pramukh tattv unaka manohari prakriti chitran hai. kausani ki saundaryamayi prakritik chhata ke bich pantaji ne apani bal-kalpanaoan ko roopayit kiya tha. prakriti ke prati unaka sahaj akarshan unaki rachanaoan ke bahut b de bhag ko prabhavit kie hue hai. prakriti ke vividh ayamoan aur bhangimaoan ko ham pant ke kavy mean roopaankit dekhate haian. vah manavi-krita saheli hai, bhavoddipika hai, abhivyakti ka alamban hai aur alankrita prakriti-vadhoo bhi hai. isake atirikt prakriti kavi pant ke lie upadeshika aur darshanik chintan ka adhar bhi bani hai. kavi pant ko samanyataya komal-kant bhavanaoan aur saundary ka kavi samajha jata hai kintu jivan ke yatharthoan se samana hone par kavi mean jivan ke prati yatharthaparak aur darshanik drishtikon ka vikas hota gaya hai. sarvapratham pant marksavadi vicharadhara se prabhavit hue, jisaka prabhav unaki 'yugant', 'yugavani' adi rachanaoan mean parilakshit hota hai. gaandhivad se bhi ap prabhavit dikhate haian. 'lokayatan' mean yah prabhav vidyaman hai. maharshi aravind ki vicharadhara ka bhi ap par gahara prabhav p da. 'git-vihag' rachana isaka udaharan hai. saundary aur ullas ke kavi pant ko jivan ka nirashamay viroop-paksh bhi bhogana p da aur isaki pratikriya 'parivartan' namak rachana mean drishtigat hoti hai-

akhil yauvan ke rang ubhar haddiyoan ke hilate kankal,
kholata idhar janm lochan mooandati udhar mrityu kshan-kshan.

pantaji ke kavy mean manavatavadi drishti ko bhi sammanit sthan prapt hai. vah manaviy pratishtha aur manav-jati ke bhavi vikas mean dridh vishvas rakhate haian. 'drumoan ki chhaya' aur 'prakriti ki maya' ko chho dakar jo pant 'bala ke bal-jal' mean 'lochan ulajhane' ko prastut nahian the, vahi manav ko vidhata ki sundaratam kriti svikar karate haian-

sundar hai vihag suman sundar, manav tum sabase sundaratam.
vah chahate haian ki desh, jati aur vargoan mean vibhajit manushy ki keval ek hi pahachan ho-manav.

bhasha-shaili

kavi pant ka bhasha par asadharan adhikar hai. bhav aur vishay ke anukool marmik shabdavali unaki lekhani se sahaj pravahit hoti hai. yadyapi pant ki bhasha ka ek vishisht star hai phir bhi vah vishayanusar parivartit hoti hai. pantaji ke kavy mean ekadhik shailiyoan ka prayog hua hai. prakriti-chitran mean bhavatmak, alankarik tatha drishy vidhayani shaili ka prayog hua hai. vichar-pradhan tatha darshanik vishayoan ki shaili vicharatmak evan vishleshanatmak bhi ho gee hai. isake atirikt pratik-shaili ka prayog bhi hua hai. sajiv bimb-vidhan tatha dhvanyatmakata bhi apaki rachana-shaili ki visheshataean haian.

alankaran

pantaji ne paramparagat evan navin, donoan hi prakar ke alankaroan ka bhavyata se prayog kiya hai. bimboan ki maulikata tatha upamanoan ki marmikata hridayaharini hai. roopak, upama, saangaroopak, manavikaran, visheshan-viparyay tatha dhvanyarth-vyanjana ka akarshak prayog apane kiya hai.

chhand

pantaji ne paramparagat chhandoan ke sath-sath navin chhandoan ki bhi rachana ki hai. apane geyata aur dhvani-prabhav par hi bal diya hai, matraoan aur varnoan ke kram tatha sankhya par nahian. prakriti ke chitere tatha chhayavadi kavi ke roop mean pantaji ka sthan nishchay hi vishisht hai. hindi ki lalityapoorn aur sanskarit kh di boli bhi pantaji ki den hai. pantaji vishv-sahity mean bhi apana sthan bana ge haian.

puraskar

right|thumb|250px|mahakavi ki smritiyoan ko sanjota rajakiy sangrahalay sumitranandan pant ko padm bhooshan (1961) aur jnanapith puraskar (1968) se sammanit kiya gaya. kala aur boodha chaand ke lie sahity akadami puraskar, lokayatan par 'soviyat laiand neharu puraskar' evan 'chidanbara' par inhean bharatiy jnanapith puraskar prapt hua.

mrityu

kausani chay bagan ke vyavasthapak ke parivar mean janme mahakavi sumitranandan pant ki mrityu 28 disambar, 1977 ko ilahabad, uttar pradesh mean ho gayi thi. uttarakhand rajy ke kausani mean mahakavi ki janm sthali ko sarakari taur par adhigrahit kar unake nam par ek rajakiy sangrahalay banaya gaya hai jisaki dekharekh ek sthaniy vyakti karata hai. is sthal ke pravesh dvar se lage bhavan ki chhat par mahakavi ki moorti sthapit hai. varsh 1990 mean sthapit is moorti ka ka anavaran vayovriddh sahityakar tatha itihasavetta pandit nityanaand mishr dvara unake janm divas 20 mee ko kiya gaya tha. mahakavi sumitranandan pant ka paitrak gram yahaan se kuchh hi doori par hai parantu vah aj bhi anajana tatha tiraskrit hai. sangrahalay mean mahakavi dvara upayog mean layi gayi dainik vastuyean yatha shal, dipak, pustakoan ki alamari tatha mahakavi ko samarpit kuchh samman-patr evan pustakean tatha hastalipi surakshit hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

bahari k diyaan

sanbandhit lekh

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