केशी: Difference between revisions
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कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी उसे दे दी। अब मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का वध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ। उसने महाराज कंस से सुन रखा था कि जिसके सिर पर मोरपंख, हाथों में मुरली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण रूप में सजे हुए मधुमंगल को देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया। [[कृष्ण]] ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया। इसके | कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी उसे दे दी। अब मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का वध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ। उसने महाराज कंस से सुन रखा था कि जिसके सिर पर मोरपंख, हाथों में मुरली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण रूप में सजे हुए मधुमंगल को देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया। [[कृष्ण]] ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया। इसके पश्चात् केशी दैत्य का वध किया। मधुमंगल को केशी दैत्य के पिछले पैरों की चोट तो नहीं लगी, किन्तु उसकी हवा से ही उसके होश उड़ गये। | ||
केशी वध के | केशी वध के पश्चात् मधुमंगल सहमा हुआ तथा लज्जित होता हुआ कृष्ण के पास गया तथा उनकी [[बाँसुरी|मुरली]], मयूरमुकुट, पीताम्बर लौटाते हुए बोला- "मुझे लड्डू नहीं चाहिए। प्राण बचे तो लाखों पाये।" ग्वाल-बाल हँसने लगे। आज भी [[मथुरा]] स्थित [[केशी घाट वृन्दावन|केशीघाट]] इस लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है। | ||
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चित्र:Disamb2.jpg केशी | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- केशी (बहुविकल्पी) |
केशी एक दानव था, जो मथुरा के राजा कंस का अनुचर था। वह कश्यप की पत्नी दक्ष की कन्या दनु के गर्भ से उत्पन्न सभी दानवों में अधिक प्रतापी था। 'महाभारत' के अनुसार केशी ने प्रजापति की कन्या दैत्यसेना का हरण करके उससे विवाह कर लिया था। इसका वध श्रीकृष्ण के हाथों हुआ।
- पौराणिक प्रसंग
एक समय सखाओं के साथ कृष्ण गोचारण कर रहे थे। सखा मधुमंगल ने हँसते हुए श्रीकृष्ण से कहा- "प्यारे सखा! यदि तुम अपना मोरमुकुट, मधुर मुरलिया और पीतवस्त्र मुझे दे दो तो सभी गोप-गोपियाँ मुझे ही प्यार करेंगी तथा रसीले लड्डू मुझे ही खिलाएँगी। तुम्हें कोई पूछेगा भी नहीं।"
कृष्ण ने हँसकर अपना मोरपंख, पीताम्बर, मुरली और लकुटी उसे दे दी। अब मधुमंगल इठलाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। इतने में ही महापराक्रमी केशी दैत्य विशाल घोड़े का रूप धारण कर कृष्ण का वध करने के लिए हिनहिनाता हुआ वहाँ उपस्थित हुआ। उसने महाराज कंस से सुन रखा था कि जिसके सिर पर मोरपंख, हाथों में मुरली, अंगों पर पीतवसन देखो, उसे कृष्ण समझकर अवश्य मार डालना। उसने कृष्ण रूप में सजे हुए मधुमंगल को देखकर अपने दोनों पिछले पैरों से आक्रमण किया। कृष्ण ने झपटकर पहले मधुमंगल को बचा लिया। इसके पश्चात् केशी दैत्य का वध किया। मधुमंगल को केशी दैत्य के पिछले पैरों की चोट तो नहीं लगी, किन्तु उसकी हवा से ही उसके होश उड़ गये।
केशी वध के पश्चात् मधुमंगल सहमा हुआ तथा लज्जित होता हुआ कृष्ण के पास गया तथा उनकी मुरली, मयूरमुकुट, पीताम्बर लौटाते हुए बोला- "मुझे लड्डू नहीं चाहिए। प्राण बचे तो लाखों पाये।" ग्वाल-बाल हँसने लगे। आज भी मथुरा स्थित केशीघाट इस लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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