तुंगविद्या सखी
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तुंगविद्या राधाजी की सर्वप्रमुख अष्टसखियों में से एक हैं। ये इस प्रकार महकती हैं, जैसे चंदन की लकड़ी के साथ कपूर। सखी तुंगविद्या राधा-कृष्ण के युगल दरबार में नृत्य तथा गायन करती हैं। ये वीणा बजाने में सिद्ध हैं। इन्हें गौरी माँ पार्वती का अवतार माना जाता है।
- तुंगविद्या गोपी 18 वेद विद्याओं की ज्ञाता है, गान विद्या, नाट्यशास्त्र में कुशल है, रसशास्त्र में कुशल है। उसके गान की प्रकृति को 'मार्गी संगीत' कहा गया है। मार्गी का एक अर्थ तो यह हो सकता है कि इससे जीवन में मार्ग का निर्धारण किया जा सकता है। दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि इसके द्वारा मार्जन करना है, लोकभाषा में यह मांजना है। तीसरा अर्थ यह हो सकता है कि यह संगीत मृग की अवस्था है। यह मृग इस संसार में अपने लिए भोग आदि की खोज करता रहता है।[1]
- तुंग शिखर को कहते हैं। ऐसा हो सकता है कि तुंगविद्या अपने संशय को 18 वेद विद्याओं को जानने के पश्चात् नष्ट करती हो।
- तुंगविद्या को यदि तुञ्जविद्या कहा जाए तो वेदों के अनुसार इसकी व्याख्या करना संभव हो जाता है। वैदिक निघण्टु में तुञ्ज शब्द का वर्गीकरण वज्र नामों के अन्तर्गत किया गया है। इसका अर्थ होगा कि अपने निश्चय को वज्र जैसा दृढ संकल्प बनाना है, जिसमें संशय का कोई स्थान न हो। तुञ्जति शब्द का वर्गीकरण दानकर्मा शब्दों के अन्तर्गत किया गया है।
तुङ्ग विद्या सब विद्या माही। अति प्रवीन नीके अवगाही॥
जहां लगि बाजे सबै बजावै। रागरागिनी प्रगट दिखावै॥
गुन की अवधि कहत नहिं आवै। छिन-छिन लाडिली लाल लडावै॥
गौर बरन छबि हरन मन, पंडुर बसन अनूप।
कैसे बरन्यो जात है, यह रसना करि रूप॥
मंजु मेधा अरु मेधिका, तन मध्या मृदु बैंन।
गुनचूडा बारूंगदा, मधुरा मधुमय ऐंन॥
मधु अस्पन्दा अति सुखद, मधुरेच्छना प्रवीन।
निसि दिन तौ ये सब सखी, रहत प्रेम रस लीन॥[2]
अन्य सखियाँ
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
- उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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