दयाराम: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "संगृहीत" to "संग्रहीत")
m (Text replacement - " मां " to " माँ ")
 
Line 44: Line 44:
[[भक्ति]] का वह तीव्र भावावेग एवं अनन्य समर्पणमयी निष्ठा जो [[नरसी मेहता|नरसी]] और [[मीरा]] के काव्य में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, उनकी रचनाओं में उस रूप में प्राप्त नहीं होती। उसके स्थान पर मानवीय प्रेम और विलासिता का समावेश हो जाता है। यद्यपि बाह्य रूप परंपरागत [[गोपी]]-[[कृष्ण]] की लीलाओं का ही रहता है। इसी संक्रमणकालीन स्थिति को लक्षित करते हुए [[गुजरात]] के प्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार के.एम. मुंशी ने अपना अभिमत व्यक्त किया कि-
[[भक्ति]] का वह तीव्र भावावेग एवं अनन्य समर्पणमयी निष्ठा जो [[नरसी मेहता|नरसी]] और [[मीरा]] के काव्य में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, उनकी रचनाओं में उस रूप में प्राप्त नहीं होती। उसके स्थान पर मानवीय प्रेम और विलासिता का समावेश हो जाता है। यद्यपि बाह्य रूप परंपरागत [[गोपी]]-[[कृष्ण]] की लीलाओं का ही रहता है। इसी संक्रमणकालीन स्थिति को लक्षित करते हुए [[गुजरात]] के प्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार के.एम. मुंशी ने अपना अभिमत व्यक्त किया कि-


::'दयारामनुं' भक्तकवियों मां स्थान न थी, प्रणयना अमर कवियोमां छे।
::'दयारामनुं' भक्तकवियों माँ स्थान न थी, प्रणयना अमर कवियोमां छे।


यह कथन अत्युक्तिपूर्ण होते हुए भी दयाराम के काव्य की आंतरिक वास्तविकता की ओर स्पष्ट इंगित करता है।
यह कथन अत्युक्तिपूर्ण होते हुए भी दयाराम के काव्य की आंतरिक वास्तविकता की ओर स्पष्ट इंगित करता है।

Latest revision as of 14:06, 2 June 2017

दयाराम
पूरा नाम दयाराम
अन्य नाम दयाशंकर, दयासखी
जन्म 1767 ई.
जन्म भूमि चांदोद ग्राम, गुजरात
मृत्यु 1852 ई.
अभिभावक प्रभुराम नागर
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र कृष्ण भक्ति-काव्य
मुख्य रचनाएँ 'वल्लभ नो परिवार', 'चौरासी वैष्णवमनु ढोला', 'पुष्टिपथ रहस्य', 'भक्ति-पोषण', 'रसिकवल्लभ', 'नीतिभक्ति ना पदो' तथा 'सतसैया'।
भाषा गुजराती
प्रसिद्धि वैष्णव कवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी बड़ौदा के धनिक गोपालदास की ओर से प्राप्त 'गणपतिवंदना' के प्रस्ताव को दयाराम ने 'एक वयों गोपीजनवल्लभ, नहिं स्वामी बीजो रे' लिखकर वापस कर दिया था, जो कृष्ण के प्रति उनके अनन्य भाव का परिचायक है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

दयाराम (अंग्रेज़ी: Dayaram, जन्म- 1767 ई., गुजरात; मृत्यु- 1852 ई.) मध्यकालीन गुजराती भक्ति-काव्य परंपरा के अंतिम महत्वपूर्ण वैष्णव कवि थे। उनके अवसान के साथ मध्य काल और कृष्ण भक्ति-काव्य दोनों का पर्यवसान हो गया। इस युग परिवर्तन के चिह्न कुछ-कुछ दयाराम के काव्य में ही लक्षित होते हैं।

जन्म

दयाराम जी का जन्म 1767 ई. में नर्मदा नदी के तटवर्ती साठोदरा के चांदोद नामक ग्राम में प्रभुराम नागर के घर हुआ था। बाल्यकाल में ही अनाथ हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन अस्त-व्यस्ता में बीता। पहले वे केशवानंद संन्यासी के शिष्य हुए, फिर इच्छाराम भट्ट के, जो 'पुष्टिमार्गीय वैष्णव' थे।[1]

ब्रजयात्रा

दयाराम ने अनेक बार तीर्थयात्रा के उद्देश्य से भारत भ्रमण किया। मथुरा वृंदावन की कृष्णभक्ति तथा 'अष्टछाप के कवियों' के ब्रज साहित्य ने उन्हें विशेष आकर्षित किया। ब्रज में ही उन्होंने 'वल्लभ संप्रदाय' के तत्कालीन गोस्वामी श्री वल्लभलाल जी से दीक्षा ग्रहण की तथा आजीवन पुष्टिमार्गीय बने रहे।

नंददास के अवतार

'अनुभवमंजरी' नामक अपनी रचना में दयाराम ने स्वयं को नंददास का अवतार माना है। उनमें मित्रप्रेमी नंददास जैसी रसिकता यथेष्ट मात्रा में थी, इसमें संदेह नहीं; क्योंकि उन्होंने भी बालविधवा रतनबाई के प्रति अपने लौकिक प्रेम को आध्यात्मिक उपासना का विरोधी नहीं माना और उसके गुरु का समर्थन तक प्राप्त किया। वे अष्टछाप के कवियों की तरह स्वयं संगीतज्ञ भी थे तथा उन्होंने गोपी प्रेम से परिप्लावित बहुतसंख्य पद (गरबी) रचे हैं। भावसमृद्धि की दृष्टि से उनका 'गरबी साहित्य' गुराज में विशेष लोकप्रिय एवं समादृत रहा है।[1]

दयाशंकर से दयाराम

बड़ौदा के धनिक गोपालदास की ओर से प्राप्त गणपतिवंदना के प्रस्ताव को उन्होंने 'एक वयों गोपीजनवल्लभ, नहिं स्वामी बीजो रे' लिखकर वापस कर दिया था, जो कृष्ण के प्रति उनके अनन्य भाव का परिचायक है। संप्रदाय-संबंध होने पर उनका नाम दयाशंकर से दयाराम हो गया, जो 'सखीभाव' के अपनाने पर 'दयासखी' बन गया। अंतिम रूप उनकी भक्ति की स्त्रैण प्रकृति का परिचायक है। संतों की तरह कहीं-कहीं उन्होंने कर्मकांड के बाह्य साधनों का खंडन भी किया है और अपनी भक्ति को प्रेमभक्ति की संज्ञा प्रदान की है।

भक्ति भाव एवं निष्ठा

भक्ति का वह तीव्र भावावेग एवं अनन्य समर्पणमयी निष्ठा जो नरसी और मीरा के काव्य में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, उनकी रचनाओं में उस रूप में प्राप्त नहीं होती। उसके स्थान पर मानवीय प्रेम और विलासिता का समावेश हो जाता है। यद्यपि बाह्य रूप परंपरागत गोपी-कृष्ण की लीलाओं का ही रहता है। इसी संक्रमणकालीन स्थिति को लक्षित करते हुए गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार के.एम. मुंशी ने अपना अभिमत व्यक्त किया कि-

'दयारामनुं' भक्तकवियों माँ स्थान न थी, प्रणयना अमर कवियोमां छे।

यह कथन अत्युक्तिपूर्ण होते हुए भी दयाराम के काव्य की आंतरिक वास्तविकता की ओर स्पष्ट इंगित करता है।

कृतियाँ

दयाराम की कृतियों में 'वल्लभ नो परिवार', 'चौरासी वैष्णवमनु ढोला', 'पुष्टिपथ रहस्य' तथा 'भक्ति-पोषण' उनके पुष्टिमार्गीय होने का विशेष परिचय देती हैं। 'रसिकवल्लभ', 'नीतिभक्ति ना पदो' तथा 'सतसैया' (ब्रजभाषा में लिखित) से कवि के धार्मिक, दार्शनिक विचारों का परिचय मिलता है। 'अजामिलाख्या', 'वृत्तासुराख्यान', 'सत्याभामाख्यान', 'ओखाहरण', आख्यानपरंपरा के पौराणिक काव्य हैं। भागवतपुराण पर आधारित 'दशमलीला' तथा 'रासपंचाध्यायी आदि लीलाकाव्य अन्य पौराणिक आख्यानों से कुछ भिन्न हैं और उनमें भक्तिभाव की प्रचुरता है। 'नरसिंह मेहता नी हंडी' नरसी के जीवन से संबद्ध है। 'षडऋतु वर्णन' वर्णनात्मक प्रकृतिकाव्य है। इनके अतिरिक्त 'गरबी संग्रह' में दयाराम के 'ऊर्मिगीत' अर्थात्‌ भावात्मक गेय पद संग्रहीत हैं। 'प्रश्नोत्तरमालिका' जैसे कुछ अन्य छोटे काव्य भी उन्होंने रचे हैं।[1]

बहुभाषाविज्ञ

दयाराम बहुभाषाविज्ञ थे और उन्होंने संस्कृत, मराठी, पंजाबी, ब्रज और उर्दू में भी काव्य रचना की है। उनकी अधिकांश रचनाएँ 'बृहत्‌ काव्यदोहन' में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा अनेक के स्वतंत्र संस्करण भी छपे हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 दयाराम (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2015।

संबंधित लेख