अरुणा आसफ़ अली: Difference between revisions
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thumb|अरुणा आसफ़ अली भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का नाम इतिहास में नामित है। श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ने सन 1942 ई. के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों अंग्रेजों से संघर्ष करती रही थीं।
जन्म
अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।[1]
विवाह
अरुणा जी ने सन 1928 ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह सुविख्यात वकील आसिफ़ अली से कर लिया था। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसिफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं।
स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग
परतंत्रता में भारत की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने महात्मा गांधी और मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस 'सोशलिस्ट पार्टी' से संबद्ध हो गईं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार गिरफ्तार होकर जेल गईं। अरुणा जी सन 1932 ई. और सन 1941 ई. में भी अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेजी गई थीं। अंग्रेजी सरकार उनसे बहुत परेशान थी, क्योंकि उनकी गणना खतरनाक क्रांतिकारियों में होती थी। ब्रिटिश सरकार उन्हें जेल में बंद रखना चाहती थी।
भूमिगत जीवन
सन 1942 ई. बंबई के 'ग्वालिया टैंक मैदान' में प्रशासन को चुनौती देकर अरुणा आसफ़ अली ने निर्भीक होकर साहसपूर्वक तिरंगा झंडा फहराया और तुरंत बाद वे भूमिगत हो गई थीं। ब्रिटिश सरकार पता लगाते-लगाते परेशान होती रही पर श्रीमती अरुणा आसफ़ अली उनके हाथ नहीं लगीं।
कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष
दो वर्ष के अंतराल के बाद सन 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।
कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में
सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मजदूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।
भाकपा में
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।
दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर (Mayor) चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने यथेष्ट सुधार किए।
संगठनों से सम्बंध
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया।
पुरस्कार
श्रीमती अरुणा आसफअली को सन 1964 में ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन 1991 में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', 1992 में 'पद्म विभूषण' और ‘इंदिरा गांधी अवार्ड’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था।
भारत रत्न
1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
डाक टिकट
1998 में उन पर एक डाक है। टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसिफ अली मार्ग' रखा गया
आठवें दशक में
अरुणा आसफ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी दिल्ली में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए खाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए खाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।' यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
समाचारपत्र पेट्रियट
दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।
निधन
वे वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। मैं उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुला नहीं सकता। वास्तव में वे महान देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती अरुणा आसफअली 87 वर्ष की आयु में दिनांक 29 जुलाई, सन 1996 ई. को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अरुणा आसफ अली : दिल्ली की पहली महापौर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 6 अप्रॅल, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- भारत रत्न सम्मानित व्यक्तित्व सूची, भारत सरकार
- भारत रत्न, भारत सरकार
- Those who said no to top awards, Times Of India
- भारत की गरिमामयी नारियाँ
- अरुणा आसफ अली
- अरुणा आसफ अली
- अरुणा आसफ अली
- भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद
- पद्म विभूषण पुरस्कार
- अरुणा आसफ अली : दिल्ली की पहली महापौर
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