सूरदास का ऐतिहासिक उल्लेख: Difference between revisions
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Revision as of 12:39, 21 April 2017
[[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-19.jpg|सूरदास की प्रतिमा, सूरकुटी, सूर सरोवर, आगरा|thumb|250px]] सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिन्दी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिन्दी कविता 'कामिनी' के इस कमनीय कांत ने हिन्दी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण भक्ति उपशाखा के महान कवि थे।
- सूरदास के बारे में 'भक्तमाल' और 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल जाती है।
- 'आईना-ए-अकबरी' और 'मुंशियात अब्बुल फ़ज़ल' में भी किसी संत सूरदास का उल्लेख है, किन्तु वे काशी (वर्तमान बनारस) के कोई और सूरदास प्रतीत होते हैं। जनुश्रुति यह अवश्य है कि अकबर बादशाह सूरदास का यश सुनकर उनसे मिलने आए थे।
- 'भक्तमाल' में सूरदास की भक्ति, कविता एवं गुणों की प्रशंसा है तथा उनकी अंधता का उल्लेख है।
- 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के अनुसार सूरदास आगरा और मथुरा के बीच साधु के रूप में रहते थे। वे वल्लभाचार्य के दर्शन को गए और उनसे लीला गान का उपदेश पाकर कृष्ण के चरित विषयक पदों की रचना करने लगे। कालांतर में श्रीनाथ जी के मंदिर का निर्माण होने पर महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उन्हें यहाँ कीर्तन का कार्य सौंपा।
- सूरदास के विषय में कहा जाता है कि वे जन्मांध थे। उन्होंने अपने को ‘जन्म को आँधर’ कहा भी है, किन्तु इसके शब्दार्थ पर अधिक नहीं जाना चाहिए।
- सूर के काव्य में प्रकृतियाँ और जीवन का जो सूक्ष्म सौन्दर्य चित्रित है, उससे यह नहीं लगता कि वे जन्मांध थे। उनके विषय में ऐसी कहानी भी मिलती है कि तीव्र अंतर्द्वन्द्व के किसी क्षण में उन्होंने अपनी आँखें फोड़ ली थीं। उचित यही मालूम पड़ता है कि वे जन्मांध नहीं थे। कालांतर में अपनी आँखों की ज्योति खो बैठे थे।
- भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सूरदास अब अंधों को कहते हैं। यह परम्परा सूरदास के अंधे होने से चली है।
- सूर का आशय ‘शूर’ से है। शूर और सती मध्यकालीन भक्त साधकों के आदर्श थे।
- प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत 1540 (1483 ई.) विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत 1620 (1563 ई.) के आसपास मानी जाती है।
- 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के आधार पर सूरदास का जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान ज़िला आगरा के अन्तर्गत) में हुआ था। मथुरा और आगरा के बीच गऊघाट पर वे निवास करते थे। बल्लभाचार्य से उनकी भेंट वहीं पर हुई थी।
- 'भावप्रकाश' में सूरदास का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है। वे सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्म के अंधे थे।
- 'आइना-ए-अकबरी' में तथा 'मुतखबुत-तवारीख' के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों में माना गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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