शुन:शेप: Difference between revisions

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==ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार==
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Revision as of 14:03, 6 August 2014

शुन:शेप रामायण के अनुसार महर्षि ऋचीक (अजीगर्त) के पुत्र, जो एक प्रसिद्ध ऋषि थे। ये महाराज हरिश्चन्द्र के यज्ञ में पशु रूप में बलि देने के लिए लाये गये थे। इन्होंने विश्वामित्र की बतलायी अग्नि की स्तुति की, जिससे अग्निदेव इतने प्रसन्न हुये कि आग से इनका बाल भी बाँका नहीं हुआ और ये अग्नि कुण्ड से बाहर निकल आये। इसके पश्चात यह विश्वामित्र के यहाँ रहने लगे, जहाँ इनका नाम 'देवरात' रख दिया गया था।

ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार

ऐतरेय ब्राह्मण में यही कथा कुछ दूसरी तरह से है:-

राजा हरिशचन्द्र निःसन्तान थे। उन्होंने प्रथम पुत्र वरुण देव को अर्पन करने का प्रण किया। सौभाग्य से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रोहित रखा गया। कुछ दिनों तक बलि प्रदान की बात टलती गयी और अन्त में रोहित ने अपने को बलि देना अस्वीकार किया और जंगल में भाग गया। जंगल में अजीगर्त ऋषि के दूसरे पुत्र शुन:शेप को रोहित ने ऋषि से ख़रीद लिया। वरुण देव ने भी रोहित के बदले शुन:शेप की बलि स्वीकार की। ठीक समय पर शुन:शेप भिन्न-भिन्न देव-देवियों की स्तुति का पाठ करने लगा, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने शुन:शेप के प्राण की रक्षा की। इसके पश्चात वह विश्वामित्र के साथ रहने लगा।

महाभारत और पुराणों में यही कथा दी गई है, पर सब एक-दूसरे से कुछ न कुछ भिन्न हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अजीगर्त (भागवत पुराण 9.7.20-21;9.16.32

संबंधित लेख