कुमारव्यास

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कुमारव्यास कन्नड़ भाषा के एक लोकप्रिय कवि थे। इनका मूल नाम 'नाराणप्प' था। उन्होंने महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 'महाभारत' के आधार पर एक प्रबंध काव्य रचा था और वेदव्यास के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के हेतु अपने काव्य का नाम 'कुमारव्यास भारत' रखा। सभंवत इसी कारण नारणप्प कुमारव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए थे।[1]

जन्म

कुमारव्यास का जन्म 15वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कर्नाटक के गदुगु प्रांत के कोलिवाड नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम लक्करसय्या अथवा लक्ष्मणदेव था। कहा जाता है कि लक्करसय्या विजयनगर साम्राज्य के राजा देवराय प्रथम के यहाँ कुछ समय तक सचिव भी थे। कुमारव्यास भागवत संप्रदाय के अनुयायी थे और गदुगु के वीरनारायण उनके आराध्य देवता थे।

ग्रंथ रचना

कुमारव्यास ने 'महाभारत' तथा 'एरावत' नामक दो काव्य ग्रंथ रचे थे। इनमें 'कन्नड भारत' अथवा 'गदुगिन भारत' उनकी अचल कीर्ति का आधार स्तंभ है। इनमे व्यास रचित महाभारत के प्रथम दस पर्वों की कथा भामिनिषट्पदि देशी छंद मे कही गई है। इसमें उन्होंने महाभारत के मर्मस्पर्शी प्रसंगों का सजीव चित्र प्रस्तुत करने में पूरा कौशल दिखाया है। पाण्डव मरण, द्रौपदी-मान-भंग, कीचक वध, कर्ण-अर्जुन युद्ध आदि प्रसंगों के वर्णन में कुमारव्यास की सहृदयता का परिचय मिलता है। कुमारव्यास कविता शक्ति कथा संविधान की अपेक्षा पात्र निरूपण में अधिक रमी और निखरी है।

काव्य सौंदर्य

कृष्ण, कर्ण, अर्जुन, भीम, द्रौपदी, अभिमन्यु, उत्तर कुमार, दुर्योधन, द्रोणाचार्य, विदुर आदि पात्रों ने कुमारव्यास के काव्य मे अमर होकर कलियुग में पदार्पण किया है। किसी आलोचक ने कहा है- "कुमारव्यास के पात्र सचेतन ही विचरते हैं। जिस पात्र का स्पर्श कीजिए, वही बोल उठता है। कुमारव्यास का भारत सर्वत्र भगवद्भक्ति की विमल प्रभा से आलोकित है। इसमें मानव जीवन की जटिल कथा तथा भगवच्छक्ति की लीला की महिमा का सुंदर समन्वय हुआ है। यही कुमारव्यास की विशेष सम्यक्‌ दार्शनिक दृष्टि है। इसकी भाषा मध्यकालीन कन्नड़ है, जो अत्यंत सुगठित और सरस है। भामिनिषट्पदि छंद शैली मनोहर है। अलंकार योजना में कुमारव्यास सिद्धहस्त हैं। वीर, अदभुत, हास्य आदि इसके प्रधान रस हैं। कुमारव्यास के 'भारत' में कन्नड़ भाषियों का जीवन दर्शन पूर्ण रूप से प्रतिबिंबित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुमारव्यास (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 फ़रवरी, 2014।

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