चित्रा सखी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 30: | Line 30: | ||
#[[चम्पकलता सखी|चम्पकलता]] | #[[चम्पकलता सखी|चम्पकलता]] | ||
#[[चित्रा सखी|चित्रा]] | #[[चित्रा सखी|चित्रा]] | ||
#[[तुंगविद्या सखी|तुंगविद्या]] | #[[तुंगविद्या सखी|तुंगविद्या]] | ||
#[[इन्दुलेखा सखी|इन्दुलेखा]] | #[[इन्दुलेखा सखी|इन्दुलेखा]] |
Latest revision as of 11:36, 3 February 2018
thumb|200px|चित्रा सखी चित्रा राधाजी की सर्वश्रेष्ठ अष्टसखियों में से एक हैं। ये राधारानी की अति मन भावँती सखी हैं। इनका बरसाने में चिकसौली नामक गाँव में निवास माना जाता है।
पुराणों में दक्षिण दिशा में पद्मा गोपी की स्थिति कही गई है जबकि वृन्दावन की परम्परा में इस दिशा में चित्रा सखी को स्थान दिया गया है। तैत्तिरीय ब्राह्मण में कहा गया है कि आकाश में जैसे नक्षत्र हैं, वैसे ही इस पृथिवी पर चित्र-विचित्र रूप हैं। कोई अच्छा रूप है, कोई खराब रूप है। आवश्यकता इस बात की है, इन चित्र रूपों को विकसित करके इन्हें पुनः आकाश के नक्षत्रों का रूप दिया जाए। दक्षिण दिशा यम की, पितरों की और दक्षता प्राप्त करने की दिशा है।[1]
पुराणों में सार्वत्रिक रूप से एक कथा में पद्मा को राजा अनरण्य की कन्या कहा गया है। आत्मा अरण्य है, जंगल है जिससे ऊपर की स्थिति अन्-अरण्य की, परमात्मा की है।[2] इस अनरण्य को पद्म में स्थित अंगुष्ठ पुरुष की बहुत चाह है, लेकिन वह केवल कन्या रूप में पद्मा को, प्रकृति को ही प्राप्त कर पाता है। फिर इस पद्मा को पत्नी रूप में पाने वाला पैप्पलाद बनता है। पैप्पलाद ऋषि वह है जिसका पालन पिप्पलों के भक्षण से, इस पृथिवी के भोगों के सेवन द्वारा हुआ है। इस पद्मा को धर्म भी पत्नी रूप में प्राप्त करना चाहता है, लेकिन उसे पद्मा के शाप से चार युगों में चार पाद वाला बनना पड़ा। पद्मा शब्द की निरुक्ति इसी आधार पर की जा सकती है कि जगत में प्राणियों को पाद प्रदान करे, उनमें चलने की शक्ति दे, जैसे सूर्योदय पर सारे प्राणी चलने लगते हैं। लक्ष्मीनारायण संहिता में उल्लेख आता है कि पद्मा गोपी कृष्ण के पादयुगल में अलक्तक लगाती है। दूसरी ओर पद्मा गोपी द्वारा कृष्ण को भालतिलक बिन्दी लगाने का भी उल्लेख है। इसकी व्याख्या कैसे की जा सकती है, यह भविष्य में अपेक्षित है।
चित्रा का चित्रण पुराणों में यम-पत्नी के रूप में किया गया है। एक वेश्या के रूप में भी चित्रा का चित्रण किया गया है जो अपने किन्हीं सत्कार्यों के कारण अगले जन्म में दिव्या देवी बनती है। पुराणों में पिंगला को भी वेश्या कहा जाता है जो सदा इस आशा में जीती है कि उसे उसका प्रियतम मिलेगा। जब वह आशा का त्याग कर देती है, तभी उसे चैन मिलता है। श्रीसूक्त में दक्षिण दिशा में जिस ऋचा का विनियोग है, वह है-
"कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥"
अर्थात् मैं उस श्री का आह्वान करता हूं जो कामनाओं की पूर्ति करती है, सोस्मिता अर्थात् मुस्कराने वाली है, जिसके चारों ओर हिरण्य का घेरा है, जो आर्द्रा है, करुणा से आर्द्र है, ज्वलन्ती है, पापों को जला डालती है, तृप्त है, पिंगला वेश्या की तरह अतृप्त नहीं है, तृप्त करने वाली है, इत्यादि।
चित्रा सखी दुहुँनि मन भावै। जल सुगंध लै आनि पिवावै॥
जहां लगि रस पीवे के आही। मेलि सुगंध बनावै ताही॥
जेहि छिन जैसी रुचि पहिचानै। तब ही आनि करावत पानै॥
कुंकुम कौसौ बरन तन, कनक बसन परिधान।
रूप चतुरई कहा कहौं, नाहिन कोऊ समान॥
सखी रसालिका तिलकनी, अरु सुगंधिका नाम।
सौर सैन अरु नागरी, रामिलका अभिराम॥
नागबेंनिका नागरी, परी सबै सुख रंग।
हित सौं ये सेवा करैं, श्री चित्रा के संग॥[3]
अन्य सखियाँ
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
- उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।
|
|
|
|
|