अप्पय दीक्षित: Difference between revisions

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*इनके पौत्र नीलकंट दीक्षित के अनूसार ये 72 [[वर्ष]] तक जीवित रहे थे।
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*1626 में [[शैव|शैवों]] और [[वैष्णव|वैष्णवों]] का झगड़ा निपटाने ये [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य देश]] गए बताए जाते हैं।
*1626 में [[शैव|शैवों]] और [[वैष्णव|वैष्णवों]] का झगड़ा निपटाने ये [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य देश]] गए बताए जाते हैं।
*सुप्रसिद्ध वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित इनके शिष्य थे। इनके करीब 400 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है।
*सुप्रसिद्ध वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित इनके शिष्य थे। इनके क़रीब 400 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है।
*शंकरानुसारी अद्वैत वेदांत का प्रतिपादन करने के अलावा इन्होंने 'ब्रह्मसूत्र' के शैव भाष्य पर भी [[शिव]] की 'मणिदीपिका' नामक 'शैव संप्रदायानूसारी' टीका लिखी थी।
*शंकरानुसारी अद्वैत वेदांत का प्रतिपादन करने के अलावा इन्होंने 'ब्रह्मसूत्र' के शैव भाष्य पर भी [[शिव]] की 'मणिदीपिका' नामक 'शैव संप्रदायानूसारी' टीका लिखी थी।
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Revision as of 14:08, 16 November 2014

अप्पय दीक्षित (1525-1598 ई.) संस्कृत के काव्यशास्त्री, दार्शनिक और व्याख्याकार थे। 'अद्वैतवादी' होते हुए भी 'शैवमत' की ओर इनका विशेष झुकाव था। इन्होंने कई ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें 'कुवलयानन्द', 'चित्रमीमांसा' इत्यादि प्रसिद्ध हैं।

  • तमिलनाडु में कांची के समीप एक ग्राम में अप्पय दीक्षित का जन्म हुआ था।
  • इनके पौत्र नीलकंट दीक्षित के अनूसार ये 72 वर्ष तक जीवित रहे थे।
  • 1626 में शैवों और वैष्णवों का झगड़ा निपटाने ये पांड्य देश गए बताए जाते हैं।
  • सुप्रसिद्ध वैयाकरण भट्टोजि दीक्षित इनके शिष्य थे। इनके क़रीब 400 ग्रंथों का उल्लेख मिलता है।
  • शंकरानुसारी अद्वैत वेदांत का प्रतिपादन करने के अलावा इन्होंने 'ब्रह्मसूत्र' के शैव भाष्य पर भी शिव की 'मणिदीपिका' नामक 'शैव संप्रदायानूसारी' टीका लिखी थी।
  • अप्पय दीक्षित 'अद्वैतवाद' के समर्थक थे, फिर भी 'शैवमत' के प्रति इनका विशेष अनुराग था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अप्पय दीक्षित (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2014।

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