वज्रकर्ण: Difference between revisions

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'''वज्रकर्ण''' [[हिन्दू]] मान्यताओं तथा धार्मिक ग्रंथानुसार [[रामायण]] कालीन एक राजा था।
'''वज्रकर्ण''' [[हिन्दू]] मान्यताओं तथा धार्मिक ग्रंथानुसार [[रामायण]] कालीन एक राजा था।


*दक्षिणापथ की ओर बढ़ते हुए [[राम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] एक निर्जन तथा धनहीन प्रदेश में पहुँचे। वहाँ एक शीघ्रगामी व्यक्ति भी मिला, जिसने बताया कि उस नगरी के राजा का नाम वज्रकर्ण है।
*अपने वनवास काल में दक्षिणापथ की ओर बढ़ते हुए [[राम]], [[सीता]] और [[लक्ष्मण]] एक निर्जन तथा धनहीन प्रदेश में पहुँचे। वहाँ एक शीघ्रगामी व्यक्ति मिला, जिसने बताया कि उस नगरी के राजा का नाम वज्रकर्ण है।
*वज्रकर्ण ने सुव्रत, मुनि का उपदेश ग्रहण करके निश्चय किया था कि जिन मुनियों के अतिरिक्त किसी के सम्मुख नमन नहीं करेगा। उसने अपने दाहिने अँगूठे में सुव्रत की दृष्टि से अंकित मुद्रिका धारण कर ली है। इस बात से रुष्ट होकर राजा सिंहोदर ने उसे मार डालने का निश्चय किया।
*वज्रकर्ण ने सुव्रत, मुनि का उपदेश ग्रहण करके निश्चय किया था कि 'जिन' मुनियों के अतिरिक्त किसी के सम्मुख नमन नहीं करेगा। उसने अपने दाहिने अँगूठे में सुव्रत की दृष्टि से अंकित मुद्रिका धारण कर ली थी। इस बात से रुष्ट होकर राजा सिंहोदर ने उसे मार डालने का निश्चय किया था।
*सिंहोदर रात्रि में अपना निश्चय अपनी पत्नी को बता रहे थे। वहाँ पर चोरी करने के उद्देश्य से पहुँचे एक विद्युदंग ने वार्तालाप सुन लिया। चोरी करना छोड़ वह दौड़ता हुआ वज्रकर्ण के पास गया तथा उसे सब समाचार दिया। वज्रकर्ण ने अपनी नगरी को घेर लेने वाले सिंहोदर से कहा कि वह धन, ऐश्वर्य, सैनिक सब ले ले, किन्तु वह (वज्रकर्ण) जिनेश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी को भी प्रणाम नहीं करेगा। तभी से वह प्रदेश जन तथा ऐश्वर्यशून्य हो गया है।
*सिंहोदर रात्रि में अपना निश्चय अपनी पत्नी को बता रहा था। वहाँ पर चोरी करने के उद्देश्य से पहुँचे एक विद्युदंग ने वार्तालाप सुन लिया। चोरी करना छोड़ वह दौड़ता हुआ वज्रकर्ण के पास गया तथा उसे सब समाचार दे दिया।
*वज्रकर्ण ने अपनी नगरी को घेर लेने वाले सिंहोदर से कहा कि वह धन, ऐश्वर्य, सैनिक सब ले ले, किन्तु वह (वज्रकर्ण) जिनेश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी को भी प्रणाम नहीं करेगा।
*[[राम]], [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] ने जिन मन्दिर में प्रवेश किया। वज्रकर्ण ने अपनी नगरी में आये तीनों अतिथियों का स्वागत किया। अत: प्रसन्न होकर लक्ष्मण, राम की प्रेरणा से सिंहोदर के पास गए। उसे युद्ध में परास्त करके लक्ष्मण ने वज्रकर्ण से मैत्री स्थापित करवायी। वज्रकर्ण ने लक्ष्मण से अनुरोध किया कि वह सिंहोदर की हिंसा न करें।<ref>पउम चरित, 33|</ref>
*[[राम]], [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] ने जिन मन्दिर में प्रवेश किया। वज्रकर्ण ने अपनी नगरी में आये तीनों अतिथियों का स्वागत किया। अत: प्रसन्न होकर लक्ष्मण, राम की प्रेरणा से सिंहोदर के पास गए। उसे युद्ध में परास्त करके लक्ष्मण ने वज्रकर्ण से मैत्री स्थापित करवायी। वज्रकर्ण ने लक्ष्मण से अनुरोध किया कि वह सिंहोदर की हिंसा न करें।<ref>पउम चरित, 33|</ref>



Latest revision as of 12:43, 10 July 2016

वज्रकर्ण हिन्दू मान्यताओं तथा धार्मिक ग्रंथानुसार रामायण कालीन एक राजा था।

  • अपने वनवास काल में दक्षिणापथ की ओर बढ़ते हुए राम, सीता और लक्ष्मण एक निर्जन तथा धनहीन प्रदेश में पहुँचे। वहाँ एक शीघ्रगामी व्यक्ति मिला, जिसने बताया कि उस नगरी के राजा का नाम वज्रकर्ण है।
  • वज्रकर्ण ने सुव्रत, मुनि का उपदेश ग्रहण करके निश्चय किया था कि 'जिन' मुनियों के अतिरिक्त किसी के सम्मुख नमन नहीं करेगा। उसने अपने दाहिने अँगूठे में सुव्रत की दृष्टि से अंकित मुद्रिका धारण कर ली थी। इस बात से रुष्ट होकर राजा सिंहोदर ने उसे मार डालने का निश्चय किया था।
  • सिंहोदर रात्रि में अपना निश्चय अपनी पत्नी को बता रहा था। वहाँ पर चोरी करने के उद्देश्य से पहुँचे एक विद्युदंग ने वार्तालाप सुन लिया। चोरी करना छोड़ वह दौड़ता हुआ वज्रकर्ण के पास गया तथा उसे सब समाचार दे दिया।
  • वज्रकर्ण ने अपनी नगरी को घेर लेने वाले सिंहोदर से कहा कि वह धन, ऐश्वर्य, सैनिक सब ले ले, किन्तु वह (वज्रकर्ण) जिनेश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी को भी प्रणाम नहीं करेगा।
  • राम, सीता तथा लक्ष्मण ने जिन मन्दिर में प्रवेश किया। वज्रकर्ण ने अपनी नगरी में आये तीनों अतिथियों का स्वागत किया। अत: प्रसन्न होकर लक्ष्मण, राम की प्रेरणा से सिंहोदर के पास गए। उसे युद्ध में परास्त करके लक्ष्मण ने वज्रकर्ण से मैत्री स्थापित करवायी। वज्रकर्ण ने लक्ष्मण से अनुरोध किया कि वह सिंहोदर की हिंसा न करें।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पउम चरित, 33|

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