अमीर मीनाई: Difference between revisions

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{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
 
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|चित्र का नाम=अमीर मीनाई
|पूरा नाम=मुंशी अमीर अहमद 'मीनाई'
|अन्य नाम=अमीर
|जन्म=[[21 फ़रवरी]], [[1829]]
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}}'''मुंशी अमीर अहमद 'मीनाई' ''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Amir Meenai'', जन्म- [[21 फ़रवरी]], [[1829]]; मृत्यु- [[13 अक्टूबर]], [[1900]]) [[उर्दू]] के प्रसिद्ध भारतीय थे। सन [[1857]] की क्रान्ति के बाद ये रामपुर चले आए और 43 वर्षों तक वहाँ रहे। सन [[1900]] में [[हैदराबाद]] जाने के बाद अमीर मीनाई की मृत्यु हो गई थी। अमीर मीनाई ने 22 किताबें लिखीं, जिसमें चार ग़ज़ल संग्रह हैं।<br />
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*मिनाई परिवार शाह मीना के मकबरे के आसपास के इलाके में सदियों से [[लखनऊ]] में रहा था, जिसे मीना बाज़ार या मोहल्ला-ए मिनियां (मिनाई का क्वार्टर) के नाम से जाना जाता है।
*मिनाई परिवार शाह मीना के मकबरे के आसपास के इलाके में सदियों से [[लखनऊ]] में रहा था, जिसे मीना बाज़ार या मोहल्ला-ए मिनियां (मिनाई का क्वार्टर) के नाम से जाना जाता है।
*अमीर मीनाई की शिक्षा लखनऊ के प्राथमिक शिक्षण संस्थान फरंगी महल में हुई थी।
*अमीर मीनाई की शिक्षा लखनऊ के प्राथमिक शिक्षण संस्थान फरंगी महल में हुई थी।

Latest revision as of 08:36, 25 November 2021

अमीर मीनाई
पूरा नाम मुंशी अमीर अहमद 'मीनाई'
अन्य नाम अमीर
जन्म 21 फ़रवरी, 1829
जन्म भूमि लखनऊ, आज़ादी पूर्व
मृत्यु 13 अक्टूबर, 1900
मृत्यु स्थान हैदराबाद, आज़ादी पूर्व
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र ग़ज़ल, नज़्म, शायरी आदि।
प्रसिद्धि उर्दू शायर
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अमीर मीनाई अपनी ग़ज़ल 'सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता' के लिए प्रसिद्ध हैं।

मुंशी अमीर अहमद 'मीनाई' (अंग्रेज़ी: Amir Meenai, जन्म- 21 फ़रवरी, 1829; मृत्यु- 13 अक्टूबर, 1900) उर्दू के प्रसिद्ध भारतीय थे। सन 1857 की क्रान्ति के बाद ये रामपुर चले आए और 43 वर्षों तक वहाँ रहे। सन 1900 में हैदराबाद जाने के बाद अमीर मीनाई की मृत्यु हो गई थी। अमीर मीनाई ने 22 किताबें लिखीं, जिसमें चार ग़ज़ल संग्रह हैं।


  • मिनाई परिवार शाह मीना के मकबरे के आसपास के इलाके में सदियों से लखनऊ में रहा था, जिसे मीना बाज़ार या मोहल्ला-ए मिनियां (मिनाई का क्वार्टर) के नाम से जाना जाता है।
  • अमीर मीनाई की शिक्षा लखनऊ के प्राथमिक शिक्षण संस्थान फरंगी महल में हुई थी।
  • दाग़ देहलवी के समकालीन अमीर मीनाई अपनी ग़ज़ल 'सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता' के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • अमीर मीनाई का नाम उर्दू अदब के मकबूल और बेहतरीन शायरों में शुमार किया जाता है।[1]
  • 10 बेतरीन शेर-

हंस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूं तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी

आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा
फूंकों से ये चराग़ बुझाया न जाएगा

अभी आए अभी जाते हो...

अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
न छोड़ूंगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो

किस ढिठाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर'
वो मेरा घर है रहे जिसमें मोहब्बत मेरी

... तड़पते हैं हम 'अमीर'

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किसका है
सीना किसका है मेरी जान जिगर किसका है

इस तरह सोए हैं सर रख के...

इस तरह सोए हैं सर रख के मेरे ज़ानू पर
अपनी सोई हुई क़िस्मत को जगा भी न सकूं

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता

इन हसीनों की जो तारीफ़ करो...

इन हसीनों की जो तारीफ़ करो चिढ़ते हैं
सच तो ये है कि बुरा है उन्हें अच्छा कहना

पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश
मुद्दत हुई ग़रीब वतन से निकल गया


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माध्यमिक
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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अमीर मीनाई के 10 बड़े शेर.... (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 25 नवंबर, 2021।

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