निमि: Difference between revisions
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Revision as of 10:34, 28 December 2010
- ये महाराज इक्ष्वाकु के पुत्र थे और महर्षि गौतम के आश्रम के समीप वैजयन्त नामक नगर बसाकर वहाँ का राज्य करते थे।
- एक बार निमि जी एक सहस्त्र वर्षीय यज्ञ करने के लिये श्री वसिष्ठ जी को वरण किया। लेकिन उस समय श्री वसिष्ठ जी इन्द्र का यज्ञ कर रहे थे। निमि जी क्षण भंगुर शरीर विचार करके गौतमादि अन्य होताओं को पुनः वरण करके यज्ञ करने लगे जब श्री वसिष्ठ जी को पता चला कि दूसरों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाप दे दिया कि ये शरीर से रहित हो जांय।
- लोभ-वश वसिष्ठ जी ने श्राप दिया है ऐसा जानकर निमि जी ने भी वसिष्ठ जी को देह से रहित होने का श्राप दे दिया। परिणामत: दोनों ही भस्म हो गये।
- यज्ञ समाप्ति पर देवताओं ने प्रसन्न होकर निमि जी को पुनः जीवित होने का वरदान दे रहे थे लेकिन नश्वर शरीर होने के कारण निमि जी ने कहा मैं पलकों में निवास करूँ ऐसा वरदान मांगा। तभी से पलकें गिरने लगीं।
- ऋषियों ने एक विशेष उपचार से यज्ञ समाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा।
- निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अतएव ऋषियों ने अरणि से उनका शरीर मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
- जन्म लेने के कारण ‘जनक’ विदेह होने के कारण ‘बैदेह’ और मन्थन से उत्पन्न होने के कारण उसी बालक का नाम ‘मिथिल’ हुआ। उसी ने मिथिलापुरी बसाईं। इसी कुल में श्री शीरध्वज जनक के यहाँ आदि शक्ति सीता ने अवतार लिया था।
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