उर्मिला: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==") |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 6: | Line 6: | ||
*'साकेत' के नवम सर्ग में उर्मिला के विरही जीवन के बड़े ही मर्मस्पर्शी चित्र मिलते हैं। गुप्त जी ने इस चित्रांकन में प्राचीन कवियों के वर्णनों और उक्तियों का प्रयोग कर अपने काव्यानुशीलन का भी परिचय दिया है। 'साकेत' के अन्तिम सर्ग में [[लक्ष्मण]] और उर्मिला का पुनर्मिलन वैसा ही हृदयावर्जक है, जैसा कि प्रथम सर्ग में वर्णित उनका संयोगसुख आहलादकारी है। | *'साकेत' के नवम सर्ग में उर्मिला के विरही जीवन के बड़े ही मर्मस्पर्शी चित्र मिलते हैं। गुप्त जी ने इस चित्रांकन में प्राचीन कवियों के वर्णनों और उक्तियों का प्रयोग कर अपने काव्यानुशीलन का भी परिचय दिया है। 'साकेत' के अन्तिम सर्ग में [[लक्ष्मण]] और उर्मिला का पुनर्मिलन वैसा ही हृदयावर्जक है, जैसा कि प्रथम सर्ग में वर्णित उनका संयोगसुख आहलादकारी है। | ||
*उर्मिला विषयक कुछ अन्य रचनाएँ भी हुई जिसमें बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन' का 'उर्मिला' शीर्षक खण्डकाव्य विशेष उल्लेखनीय है। इस खण्डकाव्य में केवल उर्मिला विषयक घटना प्रसंगों को लेने के कारण कवि कथानक की एकात्मकता और स्वतन्त्रता को अधिक सुरक्षित रख सका है। | *उर्मिला विषयक कुछ अन्य रचनाएँ भी हुई जिसमें बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन' का 'उर्मिला' शीर्षक खण्डकाव्य विशेष उल्लेखनीय है। इस खण्डकाव्य में केवल उर्मिला विषयक घटना प्रसंगों को लेने के कारण कवि कथानक की एकात्मकता और स्वतन्त्रता को अधिक सुरक्षित रख सका है। | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
Line 13: | Line 12: | ||
'उर्मिला'; बालकृष्ण शर्मा 'नवीन)। | 'उर्मिला'; बालकृष्ण शर्मा 'नवीन)। | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{रामायण}} | {{रामायण}}{{पौराणिक चरित्र}} | ||
[[Category:पौराणिक चरित्र]] | |||
[[Category:पौराणिक कोश]] | [[Category:पौराणिक कोश]] | ||
[[Category:रामायण]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | [[Category:रामायण]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 07:54, 28 December 2010
वाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण की पत्नी के रूप में उर्मिला का नामोल्लेख मिलता है। महाभारत, पुराण तथा काव्य में भी इससे अधिक उर्मिला का कोई परिचय नहीं मिलता। केवल आधुनिक काल में उर्मिला के विषय में विशेष सहानुभूति प्रकट की गयी है। युग की भावना से प्रेरित होकर आधुनिक युग में दलितों, पतितों और उपेक्षितों के उद्वार के जो प्रयत्न किये गये हैं उनमें प्राचीन काव्यों के विस्मृत और उपेक्षित पात्रों, विशेषकर स्त्री पात्रों का भी उच्चतम स्थान है।
- सर्वप्रथम महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने एक निबन्ध में अत्यन्त भावुकतापूर्ण शैली में उपेक्षिता उर्मिला का स्मरण किया और आदिकवि वाल्मीकि तथा अन्य परवर्ती कवियों की उर्मिला-विषयक उदासीनता की आलोचना की।
- उसी लेख से प्रेरणा लेकर आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' में एक लेख लिखा और कवियों को उर्मिला का उद्धार करने का आह्वान किया।
- मैथिलीशरण गुप्त ने द्विवेदी जी के लेख से प्रेरणा लेकर 'उर्मिला-उत्ताप' रचना प्रारम्भ की। 'उर्मिला-उत्ताप' के चार सर्ग सन 1920 के पहले ही रचे जा चुके थे किन्तु बाद में गुप्त जी ने अपनी रचना को सम्पूर्ण रामकथा का रूप देने का विचार किया और इसे 'साकेत' के नाम से रचकर प्रकाशित किया।
- राम कथा में उर्मिला जैसे एक गौण पात्र को जितनी प्रमुखता दी जा सकती थी, गुप्त जी ने उसे देने का भरपूर प्रयत्न किया। उन्होंने उर्मिला के अल्पकालीन संयोग का मनोहर चित्र देकर उसके दीर्घ और दारूण वियोग का अत्यन्त मार्मिक और प्रभावशाली चित्र देने में सफलता प्राप्त की।
- 'साकेत' के नवम सर्ग में उर्मिला के विरही जीवन के बड़े ही मर्मस्पर्शी चित्र मिलते हैं। गुप्त जी ने इस चित्रांकन में प्राचीन कवियों के वर्णनों और उक्तियों का प्रयोग कर अपने काव्यानुशीलन का भी परिचय दिया है। 'साकेत' के अन्तिम सर्ग में लक्ष्मण और उर्मिला का पुनर्मिलन वैसा ही हृदयावर्जक है, जैसा कि प्रथम सर्ग में वर्णित उनका संयोगसुख आहलादकारी है।
- उर्मिला विषयक कुछ अन्य रचनाएँ भी हुई जिसमें बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन' का 'उर्मिला' शीर्षक खण्डकाव्य विशेष उल्लेखनीय है। इस खण्डकाव्य में केवल उर्मिला विषयक घटना प्रसंगों को लेने के कारण कवि कथानक की एकात्मकता और स्वतन्त्रता को अधिक सुरक्षित रख सका है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
'साकेत'; मैथिलीशरण गुप्त: 'उर्मिला'; बालकृष्ण शर्मा 'नवीन)।