सारण (गुप्तचर): Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
नवनीत कुमार (talk | contribs) No edit summary |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=सारण|लेख का नाम=सारण (बहुविकल्पी)}} | |||
'''सारण''' [[लंका]] के राजा [[रावण]] का दरबारी मंत्री था। [[श्रीराम]] की वानर सेना द्वारा [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लेने के बाद रावण ने '[[शुक (गुप्तचर)|शुक]]' और 'सारण' नामक अपने मंत्रियों को राम की सेना में भेद लेने के लिए गुप्तचर बनाकर भेजा, किंतु ये दोनों गुप्तचर [[विभीषण]] की दृष्टि से बच नहीं पाये और पहचाने जाने पर पकड़ लिये गए। | '''सारण''' [[लंका]] के राजा [[रावण]] का दरबारी मंत्री था। [[श्रीराम]] की वानर सेना द्वारा [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लेने के बाद रावण ने '[[शुक (गुप्तचर)|शुक]]' और 'सारण' नामक अपने मंत्रियों को राम की सेना में भेद लेने के लिए गुप्तचर बनाकर भेजा, किंतु ये दोनों गुप्तचर [[विभीषण]] की दृष्टि से बच नहीं पाये और पहचाने जाने पर पकड़ लिये गए। | ||
Latest revision as of 05:58, 6 April 2016
चित्र:Disamb2.jpg सारण | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सारण (बहुविकल्पी) |
सारण लंका के राजा रावण का दरबारी मंत्री था। श्रीराम की वानर सेना द्वारा समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लेने के बाद रावण ने 'शुक' और 'सारण' नामक अपने मंत्रियों को राम की सेना में भेद लेने के लिए गुप्तचर बनाकर भेजा, किंतु ये दोनों गुप्तचर विभीषण की दृष्टि से बच नहीं पाये और पहचाने जाने पर पकड़ लिये गए।
- रामायण में रावण के विभिन्न गुप्तचरों के नामों का जगह-जगह उल्लेख मिलता है। 'शुक', 'सारण', 'प्रभाष', 'सरभ' तथा 'शार्दुल' उसके प्रमुख गुप्तचर थे। शुक और सारण को ही युद्ध के समय वानर भेष में रामसेना का भेद लेते पकड़ा गया था। उधर विभीषण के लंका के बाहर रहने के बावजूद उनके गुप्तचर लंका में सक्रिय थे, जो समय-समय पर उन्हें रावण की गतिविधियों की जानकारी देते रहते थे।
- जब श्रीराम समुद्र पर सेतु बाँधकर लंका पहुँच गये, तब रावण ने 'शुक' और 'सारण' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा, "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।"
- रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी राक्षस वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे विभीषण की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके। विभीषण ने उन दोनों को पकड़कर राम के सम्मुख करते हुये कहा, "हे राघव! ये दोनों गुप्तचर रावण के मन्त्री 'शुक' और 'सारण' हैं, जो हमारे कटक में गुप्तचरी करते पकड़े गये हैं।"
- राम के सामने जाकर दोनों राक्षस थर-थर काँपते हुये बोले, "हे राजन्! हम राक्षसराज रावण के सेवक हैं। उन्हीं की आज्ञा से आपके बल का पता लगाने के लिये आये थे। हम उनकी आज्ञा के दास हैं, इसलिये उनका आदेश पालन करने के लिये विवश हैं। राजभक्ति के कारण हमें ऐसा करना पड़ा है। इसमें हमारा कोई दोष नहीं है।"
- दोनों गुप्तचरों के ये निश्चल वचन सुन कर रामचन्द्र बोले, "हे मन्त्रियों! हम तुम्हारे सत्य भाषण से बहुत प्रसन्न हैं। तुमने यदि हमारी शक्ति देख ली है, तो जाओ। यदि अभी कुछ और देखना शेष हो तो भली-भाँति देख लो। हम तुम्हें कोई दण्ड नहीं देंगे। आर्य लोग शस्त्रहीन व्यक्ति पर वार नहीं करते। अत: तुम अपना कार्य पूरा करके निर्भय हो लंका को लौट जाओ। तुम साधारण गुप्तचर नहीं, रावण के मन्त्री हो। इसलिये उससे कहना, जिस बल के भरोसे पर तुमने मेरी सीता का हरण किया है, उस बल का परिचय अपने भाइयों, पुत्रों तथा सेना के साथ हमें रणभूमि में देना। कल सूर्योदय होते ही अन्धकार की भाँति तुम्हारी सेना का विनाश भी आरम्भ हो जायेगा।
|
|
|
|
|