भारवि: Difference between revisions
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कालिदास के पश्चात् संस्कृत कवियों में 'भारवि' का ऊँचा स्थान है, जो लगभग कालिदास के ही समकालीन थे। उनमें कालिदास की शैली तथा प्रतिभा की कुछ छाप भी दिखाई देती है। भारवि की कीर्ति का आधार-स्तम्भ उनकी एकमात्र रचना ‘किरातार्जुनीयम्’ महाकाव्य है, जिसकी कथावस्तु महाभारत से ली गई है। इसमें अर्जुन तथा 'किरात' वेशधारी शिव के बीच युद्ध का वर्णन है। अन्ततोगत्वा शिव प्रसन्न होकर अर्जुन को 'पाशुपतास्त्र' प्रदान करते हैं।
- किरातार्जुनीयम्
किरातार्जुनीयम् एक वीर रस प्रधान महाकाव्य है। यह कृति अपने अर्थगौरव के लिए प्रसिद्ध है।[1] कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है।
- काव्य चातुर्य व भाषा
भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारवेरर्थगौरवम्
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख