शौक़ बहराइची: Difference between revisions

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'''शौक बहराइची''' का वास्तविक नाम 'रियासत हुसैन रिजवी' था। ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए नीचे दिया गया शेर देश में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है। पर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाला शायर शौक बहराइची थे।
'''शौक बहराइची''' का वास्तविक नाम 'रियासत हुसैन रिजवी' था। ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए नीचे दिया गया शेर देश में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है पर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले शायर का नाम 'शौक बहराइची' है।
<blockquote>‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है<br />
<blockquote>‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है<br />
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’</blockquote>  
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==ग़रीबी में बीता जीवन==
==ग़रीबी में बीता जीवन==
ताहिर नकवी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नकवी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे [[उर्दू]] में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक ने अपना वह मशहूर शेर [[बहराइच]] की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और [[1957]] के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नकवी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”
ताहिर नकवी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नकवी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे [[उर्दू]] में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक ने अपना वह मशहूर शेर [[बहराइच]] की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और [[1957]] के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नकवी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”<ref name="जनज्वार"/>
==गुमनाम शायर==
==गुमनाम शायर==
शौक बहराइची की मौत के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई सुध ना लेना एक मशहूर शायर को काफी गुमनाम मौत देने का जिम्मेदार [[साहित्य]] की दुनिया को माना जा सकता है। शौक की इस गुमनामियत पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है।
शौक बहराइची की मौत के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई सुध ना लेना एक मशहूर शायर को काफी गुमनाम मौत देने का जिम्मेदार [[साहित्य]] की दुनिया को माना जा सकता है। शौक की इस गुमनामियत पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है।
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<blockquote>“अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम, बेजर का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखो साले हैं”</blockquote>
<blockquote>“अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम, बेजर का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखो साले हैं”</blockquote>


शौक बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक की उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती रही। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया।
शौक बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक की उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती रही। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया।<ref name="जनज्वार"/>


<blockquote>“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी, दादे फानी से जब शौक उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”</blockquote>
<blockquote>“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी, दादे फानी से जब शौक उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”</blockquote>

Revision as of 07:54, 29 January 2013

शौक़ बहराइची
पूरा नाम रियासत हुसैन रिजवी
अन्य नाम शौक बहराइची
जन्म 6 जून, 1884
जन्म भूमि सैयदवाड़ा मोहल्ला, अयोध्या
मृत्यु 13 जनवरी, 1964
कर्म-क्षेत्र शायर
विषय उर्दू शायरी
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

शौक बहराइची का वास्तविक नाम 'रियासत हुसैन रिजवी' था। ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए नीचे दिया गया शेर देश में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है पर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले शायर का नाम 'शौक बहराइची' है।

‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’

जीवन परिचय

शौक बहराइची का जन्म 6 जून, 1884 को अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण मुस्लिम शिया परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम 'रियासत हुसैन रिजवी' था जो बाद में बहराइच में रहने के कारण बहराइची हुआ। यहीं पर उन्होंने ग़रीबी में भी शायरी से नाता जमाए रखा। रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’ के नाम से शायरी के नए आयाम गढ़ने लगे, जो काम 13 जनवरी, 1964 में हुई उनकी मौत तक बदस्तूर जारी रहा। उनके बारे में जो भी जानकारी प्रामाणिक रूप से मिली, वह उनकी मौत के तकरीबन 50 साल बाद बहराइच जनपद के निवासी व लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर ताहिर हुसैन नकवी के नौ वर्षों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने उनके शेरों को संकलित कर ‘तूफान’ किताब की शक्ल दी गयी है।[1]

ग़रीबी में बीता जीवन

ताहिर नकवी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नकवी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे उर्दू में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक ने अपना वह मशहूर शेर बहराइच की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और 1957 के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नकवी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”[1]

गुमनाम शायर

शौक बहराइची की मौत के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई सुध ना लेना एक मशहूर शायर को काफी गुमनाम मौत देने का जिम्मेदार साहित्य की दुनिया को माना जा सकता है। शौक की इस गुमनामियत पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है।

“अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम, बेजर का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखो साले हैं”

शौक बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक की उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती रही। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया।[1]

“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी, दादे फानी से जब शौक उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 शाही, हरिशंकर। मशहूर शेर का गुमनाम शायर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जनज्वार। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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