संस्कृत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Adding category Category:भाषा कोश (को हटा दिया गया हैं।))
Line 34: Line 34:
[[Category:भाषा और लिपि]]  
[[Category:भाषा और लिपि]]  
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:भाषा कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 08:53, 3 April 2014

[[चित्र:Sanskrit- sloka.jpg|thumb|संस्कृत भाषा मे श्लोक]] संस्कृत भारत की एक शास्त्रीय भाषा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषाओं में से एक है। संस्कृत हिन्दी-यूरोपीय भाषा परिवार की मुख्य शाखा हिन्दी-ईरानी भाषा की हिन्दी-आर्य उपशाखा की मुख्य भाषा है। आधुनिक भारतीय भाषाएँ हिन्दी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, बंगला, उड़िया, नेपाली, कश्मीरी, उर्दू आदि सभी भाषाएं इसी से उत्पन्न हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है।

विशेषताएँ

  • हिन्दू धर्म के लगभग सभी धर्मग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे हुए हैं। आज भी हिन्दू धर्म के यज्ञ और पूजा संस्कृत भाषा में ही होते हैं।
  • आधुनिक विद्वान मानते हैं कि संस्कृत भाषा पाँच हज़ार सालों से चलता आ रहा है। भारतवर्ष में यह आर्यभाषा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, व्यापक और संपन्न है। इसके द्वारा भारत की उत्कृष्टतम प्रतिभाएँ, अमूल्य चिंतन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सृजन और वैचारिक ज्ञान की अभिव्यक्ति हुई है।
  • आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा पुस्तक संरचना की धारा अबाध रूप से बह रही है। आज भी यह भाषा (अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सही) बोली, पढ़ी और लिखी जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषा भाषी योग्यजन इसका परस्पर वार्तालाप में भी प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़) से संस्कृत की स्थिति सर्वथा भिन्न है। यह अमर भाषा है।

संस्कृत का अर्थ है, संस्कार की हुई भाषा। इसकी गणना संसार की प्राचीनतम ज्ञात भाषाओं में होती है। संस्कृत को देववाणी भी कहते हैं।

  • ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। ऋग्वेद के मन्त्रों का विषय सामान्यत: यज्ञों में की जाने वाली देवताओं की स्तुति है और ये मन्त्र गीतात्मक काव्य हैं।
  • यजुर्वेद की शुक्ल और कृष्ण दो शाखाएं हैं। इसमें कर्मकांड के कुछ प्रमुख पद्यों का और कुछ गद्य का संग्रह है। ईशोपनिषद इसी का अंतिम भाग है।
  • सामवेद में, जिसका संकलन यज्ञों में वीणा आदि के साथ गाने के लिए किया गया है, 75 मौलिक मन्त्रों को छोड़कर शेष ऋग्वेद के मन्त्रों का ही संकलन है।
  • अथर्ववेद की भी शौनक और पैप्पलाद नामक दो शाखाएं हैं। इस वेद में जादू-टोना, वशीकरण आदि विषयक मन्त्रों के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के सूक्त भी मिलते हैं। यह प्रथम तीन वेदों से भिन्न तथा गृह्य और सामाजिक कार्यकलापों से संबंधित है।
  • संस्कृत भाषा के दो रूप माने जाते हैं वैदिक या छांदस और लौकिक। चार वेद संहिताओं की भाषा ही वैदिक या छांदस कहलाती है। इसके बाद के ग्रंथों को लौकिक कहा गया है।

ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों के कर्मकांड का विवेचन है। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण हैं। ऋग्वेद, के ब्राह्मण 'ऐतरेय' और 'कौषीतकी' यजुर्वेद का 'शतपथ और सामवेद का 'पंचविंश' है। ब्राह्मण ग्रंथों के बाद आख्यकों और उपनिषदों का क्रम आता हैं उपनिषदों का कर्मकांड से कोई संबंध नहीं है। ये ईश्वर, प्रकृति और उनके पारस्परिक संबंध की ब्राह्म विद्या की विवेचना करते हैं। उपनिषदों की कुल ज्ञात संख्या 18 है जिनमें ये दस प्रमुख हैं-ईश, बृहदारण्यक, ऐतरेय, कौषीतकी, केन, छांद्योग्य, तैत्तरीय, कठ, मंड्रक, और मांडूक्य। ये उपनिषद प्राचीन हैं। कुछ की रचना बहुत बाद तक होती रही है, जैसे 'अल्लोपनिषद' जो स्पष्टत: मुसलमानों के आगमन के बाद लिखा गया।

पौराणिक महत्त्व

हिन्दू समाज वेदों को अनादि और अपौरुषेय मानता आया है। पर आधुनिक विद्वानों के एक वर्ग ने वेदों का रचना काल 6000 ई.पू. से लेकर 2500 ई.पू. तक तथा ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों का समय इसके बाद का निर्धारित किया है। संस्कृत साहित्य में वैदिक वांड्मय के बाद व्यास रचित महाभारत और वाल्मीकि रचित रामायण प्रसिद्ध ग्रंथ है। महाभारत को उसके विस्तृतज्ञान-भंडार को देखते हुए पांचवां वेद भी कहा जाता है। विषय की दृष्टि से रामायण की कथा पहले की (त्रेता युग) की है और महाभारत की बाद (द्वापर युग) की। पर महाभारत का रचना-काल पहले का है। 18 पर्वों का यह ग्रंथ ई.पू. चौथी-तीसरी शताब्दी तक अपना मूल रूप ले चुका था। महाभारत से आख्यानों की परंपरा आरंभ होती है और रामायण से महाकाव्य और खंड काव्यों की; जिस परंपरा में कालिदास जैसे कवि हुए।

  • पुराणों का अपना महत्त्व है। ये सृष्टि, लय, मन्वंतरों, प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा राजवंशों के चरित्र पर प्रकाश डालते हैं। इनका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शताब्दी से आठवीं-नंवी शताब्दी तक माना जाता है। इनका महत्त्व तत्कालीन भारत की सभ्यता और संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से विशेष है। कुल पुराण 18 हैं-विष्णु, पद्म, ब्रह्म, शिव, भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, ब्रह्मांड और भविष्य
  • स्मृतियां, जिनमें 'मनुस्मृति', 'याज्ञवल्क्य स्मृति', 'नारद स्मृति' और 'पाराशर स्मृति' मुख्य हैं, दूसरी-तीसरी शताब्दी की रचनाएं मानी जाती हे। 'अमरकोश' की रचना चौथी –पांचवीं ईस्वी में हुई। कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' अपने विषय का एकमात्र ग्रंथ है जिसमें राज्य प्रबंध, राजनीति , समाजिक , आर्थिक संगठन की सांगोपांग विवेचना की गई है।
  • संस्कृत, तमिल को छोड़कर सभी भारतीय भाषाओं की माता है । इसकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गयी है या संस्कृत से प्रभावित है । पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी । इसे पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है ।
  • हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में ही हैं ।
  • हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है ।
  • हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत भाषा पर आधारित होते हैं ।
  • भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है ।
  • संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है ।
  • संस्कृत का प्राचीन साहित्य अत्यधिक प्राचीन, विशाल और विविधता से पूर्ण है । इसमें अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, और साहित्य की भरपूर सामग्री है । इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढावा मिलेगा । संस्कृत साहित्य विविध विषयों का भंडार है। इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के चिंतन पर पड़ा है। भारत की संस्कृति का यह एकमात्र सुदृढ़ आधार है। भारत की लगभग सभी भाषाएं अपने शब्द-भंडार के लिए आज भी संस्कृत पर आश्रित हैं। संस्कृत को कम्प्यूटर के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

श्रुतियाँ