ब्रह्माण्ड पुराण: Difference between revisions

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*इस पुराण के प्रारम्भ में बताया गया है कि गुरु अपना श्रेष्ठ ज्ञान सर्वप्रथम अपने सबसे योग्य शिष्य को देता है। यथा-[[ब्रह्मा]] ने यह ज्ञान [[वसिष्ठ]] को, वसिष्ठ ने अपने पौत्र [[पराशर]] को, पराशर ने [[जातुकर्ण्य]] ऋषि को, जातुकर्ण्य ने [[द्वैपायन]] को, द्वैपायन ऋषि ने इस पुराण को ज्ञान अपने पांच शिष्यों- [[जैमिनि]], [[सुमन्तु]], [[वैशम्पायन]], [[पेलव]] और [[लोमहर्षण]] को दिया। लोमहर्षण सूत जी ने इसे भगवान [[वेदव्यास]] से सुना। फिर [[नैमिषारण्य]] में एकत्रित ऋषि-मुनियों को सूत जी ने इस पुराण की कथा सुनाई।
*इस पुराण के प्रारम्भ में बताया गया है कि गुरु अपना श्रेष्ठ ज्ञान सर्वप्रथम अपने सबसे योग्य शिष्य को देता है। यथा-[[ब्रह्मा]] ने यह ज्ञान [[वसिष्ठ]] को, वसिष्ठ ने अपने पौत्र [[पराशर]] को, पराशर ने [[जातुकर्ण्य]] ऋषि को, जातुकर्ण्य ने [[द्वैपायन]] को, द्वैपायन ऋषि ने इस पुराण को ज्ञान अपने पांच शिष्यों- [[जैमिनि]], [[सुमन्तु]], [[वैशम्पायन]], [[पेलव]] और [[लोमहर्षण]] को दिया। लोमहर्षण सूत जी ने इसे भगवान [[वेदव्यास]] से सुना। फिर [[नैमिषारण्य]] में एकत्रित ऋषि-मुनियों को सूत जी ने इस पुराण की कथा सुनाई।
*पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। कहा जाता है कि इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।
*पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। कहा जाता है कि इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि [[जावा द्वीप]] वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।
[[चित्र:Ganga-Varanasi.jpg|thumb|[[वाराणसी]] में गंगा नदी के घाट<br /> Ghats of Ganga River in Varanasi]]
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*'ब्रह्माण्ड पुराण' में भारतवर्ष का वर्णन करते हुए पुराणकार इसे 'कर्मभूमि' कहकर सम्बोधित करता है। यह कर्मभूमि भागीरथी [[गंगा नदी|गंगा]] के उद्गम स्थल से कन्याकुमारी तक फैली हुई है, जिसका विस्तार नौ हज़ार [[योजन]] का है। इसके पूर्व में किरात जाति और पश्चिम में म्लेच्छ यवनों का वास है। मध्य भाग में चारों वर्णों के लोग रहते हैं। इसके सात पर्वत हैं। [[गंगा नदी|गंगा]], [[सिन्धु नदी|सिन्धु]], [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]], [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] आदि सैकड़ों पावन नदियां हैं। यह देश [[कुरु]], [[पांचाल]], [[कलिंग]], [[मगध]], [[शाल्व]], [[कौशल]], केरल, सौराष्ट्र आदि अनेकानेक जनपदों में विभाजित है। यह [[आर्य|आर्यों]] की ऋषिभूमि है।
*'ब्रह्माण्ड पुराण' में भारतवर्ष का वर्णन करते हुए पुराणकार इसे 'कर्मभूमि' कहकर सम्बोधित करता है। यह कर्मभूमि भागीरथी [[गंगा नदी|गंगा]] के उद्गम स्थल से कन्याकुमारी तक फैली हुई है, जिसका विस्तार नौ हज़ार [[योजन]] का है। इसके पूर्व में [[किरात]] जाति और पश्चिम में म्लेच्छ यवनों का वास है। मध्य भाग में चारों वर्णों के लोग रहते हैं। इसके सात पर्वत हैं। [[गंगा नदी|गंगा]], [[सिन्धु नदी|सिन्धु]], [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]], [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] आदि सैकड़ों पावन नदियां हैं। यह देश [[कुरु]], [[पांचाल]], [[कलिंग]], [[मगध]], [[शाल्व]], [[कौशल]], केरल, सौराष्ट्र आदि अनेकानेक जनपदों में विभाजित है। यह [[आर्य|आर्यों]] की ऋषिभूमि है।
*काल गणना का भी इस पुराण में उल्लेख है। इसके अलावा चारों युगों का वर्णन भी इसमें किया गया है। इसके पश्चात [[परशुराम|परशुराम अवतार]] की कथा विस्तार से दी गई है। राजवंशों का वर्णन भी अत्यन्त रोचक है। राजाओं के गुणों-अवगुणों का निष्पक्ष रूप से विवेचन किया गया है। राजा [[उत्तानपाद]] के पुत्र [[ध्रुव]] का चरित्र दृढ़ संकल्प और घोर संघर्ष द्वारा सफलता प्राप्त करने का दिग्दर्शन कराता है। [[गंगावतरण]] की कथा श्रम और विजय की अनुपम गाथा है। [[कश्यप]], [[पुलस्त्य]], [[अत्रि]], [[पराशर]] आदि ऋषियों का प्रसंग भी अत्यन्त रोचक है। [[विश्वामित्र]] और [[वसिष्ठ]] के उपाख्यान काफ़ी रोचक तथा शिक्षाप्रद हैं।
*काल गणना का भी इस पुराण में उल्लेख है। इसके अलावा चारों युगों का वर्णन भी इसमें किया गया है। इसके पश्चात् [[परशुराम|परशुराम अवतार]] की कथा विस्तार से दी गई है। राजवंशों का वर्णन भी अत्यन्त रोचक है। राजाओं के गुणों-अवगुणों का निष्पक्ष रूप से विवेचन किया गया है। राजा [[उत्तानपाद]] के पुत्र [[ध्रुव]] का चरित्र दृढ़ संकल्प और घोर संघर्ष द्वारा सफलता प्राप्त करने का दिग्दर्शन कराता है। [[गंगावतरण]] की कथा श्रम और विजय की अनुपम गाथा है। [[कश्यप]], [[पुलस्त्य]], [[अत्रि]], [[पराशर]] आदि ऋषियों का प्रसंग भी अत्यन्त रोचक है। [[विश्वामित्र]] और [[वसिष्ठ]] के उपाख्यान काफ़ी रोचक तथा शिक्षाप्रद हैं।
*'ब्रह्माण्ड पुराण' में चोरी करने को महापाप बताया गया है। कहा गया है कि देवताओं व ब्राह्मणों की धन-सम्पत्ति, रत्नाभूषणों आदि की चोरी करने वाले व्यक्ति को तत्काल मार डालना चाहिए।
*'ब्रह्माण्ड पुराण' में चोरी करने को महापाप बताया गया है। कहा गया है कि देवताओं व ब्राह्मणों की धन-सम्पत्ति, रत्नाभूषणों आदि की चोरी करने वाले व्यक्ति को तत्काल मार डालना चाहिए।


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Latest revision as of 07:52, 23 June 2017

समस्त महापुराणों में 'ब्रह्माण्ड पुराण' अन्तिम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समस्त ब्रह्माण्ड का सांगोपांग वर्णन इसमें प्राप्त होने के कारण ही इसे यह नाम दिया गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। विद्वानों ने 'ब्रह्माण्ड पुराण' को वेदों के समान माना है। छन्द शास्त्र की दृष्टि से भी यह उच्च कोटि का पुराण है। इस पुराण में वैदर्भी शैली का जगह-जगह प्रयोग हुआ है। उस शैली का प्रभाव प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास की रचनाओं में देखा जा सकता है। यह पुराण 'पूर्व', 'मध्य' और 'उत्तर'- तीन भागों में विभक्त है। पूर्व भाग में प्रक्रिया और अनुषंग नामक दो पाद हैं। मध्य भाग उपोद्घात पाद के रूप में है जबकि उत्तर भाग उपसंहार पाद प्रस्तुत करता है। इस पुराण में लगभग बारह हज़ार श्लोक और एक सौ छप्पन अध्याय हैं। [[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|कालिदास
Kalidasa|thumb]]

पूर्व भाग

पूर्व भाग में मुख्य रूप से नैमिषीयोपाख्यान, हिरण्यगर्भ-प्रादुर्भाव, देव-ऋषि की सृष्टि, कल्प, मन्वन्तर तथा कृतयुगादि के परिणाम, रुद्र सर्ग, अग्नि सर्ग, दक्ष तथा शंकर का परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और शाप, प्रियव्रत वंश, भुवनकोश, गंगावतरण तथा खगोल वर्णन में सूर्य आदि ग्रहों, नक्षत्रों, ताराओं एवं आकाशीय पिण्डों का विस्तार से विवेचन किया गया है। इस भाग में समुद्र मंथन, विष्णु द्वारा लिंगोत्पत्ति आख्यान, मन्त्रों के विविध भेद, वेद की शाखाएं और मन्वन्तरोपाख्यान का उल्लेख भी किया गया है।

मध्य भाग

[[चित्र:Parashurama.jpg|thumb|परशुराम
Parashurama]] मध्य भाग में श्राद्ध और पिण्ड दान सम्बन्धी विषयों का विस्तार के साथ वर्णन है। साथ ही परशुराम चरित्र की विस्तृत कथा, राजा सगर की वंश परम्परा, भगीरथ द्वारा गंगा की उपासना, शिवोपासना, गंगा को पृथ्वी पर लाने का व्यापक प्रसंग तथा सूर्य एवं चन्द्र वंश के राजाओं का चरित्र वर्णन प्राप्त होता है।

उत्तर भाग

  • उत्तर भाग में भावी मन्वन्तरों का विवेचन, त्रिपुर सुन्दरी के प्रसिद्ध आख्यान जिसे 'ललितोपाख्यान' कहा जाता है, का वर्णन, भंडासुर उद्भव कथा और उसके वंश के विनाश का वृत्तान्त आदि हैं।
  • 'ब्रह्माण्ड पुराण' और 'वायु पुराण' में अत्यधिक समानता प्राप्त होती है। इसलिए 'वायु पुराण' को महापुराणों में स्थान प्राप्त नहीं है।
  • 'ब्रह्माण्ड पुराण' का उपदेष्टा प्रजापति ब्रह्मा को माना जाता है। इस पुराण को पाप नाशक, पुण्य प्रदान करने वाला और सर्वाधिक पवित्र माना गया है। यह यश, आयु और श्रीवृद्धि करने वाला पुराण है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, पूजा-उपासना और ज्ञान-विज्ञान की महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।

[[चित्र:Mahabharat-Map.jpg|महाभारतकालीन भारत का मानचित्र|thumb|left]]

  • इस पुराण के प्रारम्भ में बताया गया है कि गुरु अपना श्रेष्ठ ज्ञान सर्वप्रथम अपने सबसे योग्य शिष्य को देता है। यथा-ब्रह्मा ने यह ज्ञान वसिष्ठ को, वसिष्ठ ने अपने पौत्र पराशर को, पराशर ने जातुकर्ण्य ऋषि को, जातुकर्ण्य ने द्वैपायन को, द्वैपायन ऋषि ने इस पुराण को ज्ञान अपने पांच शिष्यों- जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन, पेलव और लोमहर्षण को दिया। लोमहर्षण सूत जी ने इसे भगवान वेदव्यास से सुना। फिर नैमिषारण्य में एकत्रित ऋषि-मुनियों को सूत जी ने इस पुराण की कथा सुनाई।
  • पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। कहा जाता है कि इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।

[[चित्र:Ganga-Varanasi.jpg|thumb|वाराणसी में गंगा नदी के घाट
Ghats of Ganga River in Varanasi]]

  • 'ब्रह्माण्ड पुराण' में भारतवर्ष का वर्णन करते हुए पुराणकार इसे 'कर्मभूमि' कहकर सम्बोधित करता है। यह कर्मभूमि भागीरथी गंगा के उद्गम स्थल से कन्याकुमारी तक फैली हुई है, जिसका विस्तार नौ हज़ार योजन का है। इसके पूर्व में किरात जाति और पश्चिम में म्लेच्छ यवनों का वास है। मध्य भाग में चारों वर्णों के लोग रहते हैं। इसके सात पर्वत हैं। गंगा, सिन्धु, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी आदि सैकड़ों पावन नदियां हैं। यह देश कुरु, पांचाल, कलिंग, मगध, शाल्व, कौशल, केरल, सौराष्ट्र आदि अनेकानेक जनपदों में विभाजित है। यह आर्यों की ऋषिभूमि है।
  • काल गणना का भी इस पुराण में उल्लेख है। इसके अलावा चारों युगों का वर्णन भी इसमें किया गया है। इसके पश्चात् परशुराम अवतार की कथा विस्तार से दी गई है। राजवंशों का वर्णन भी अत्यन्त रोचक है। राजाओं के गुणों-अवगुणों का निष्पक्ष रूप से विवेचन किया गया है। राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का चरित्र दृढ़ संकल्प और घोर संघर्ष द्वारा सफलता प्राप्त करने का दिग्दर्शन कराता है। गंगावतरण की कथा श्रम और विजय की अनुपम गाथा है। कश्यप, पुलस्त्य, अत्रि, पराशर आदि ऋषियों का प्रसंग भी अत्यन्त रोचक है। विश्वामित्र और वसिष्ठ के उपाख्यान काफ़ी रोचक तथा शिक्षाप्रद हैं।
  • 'ब्रह्माण्ड पुराण' में चोरी करने को महापाप बताया गया है। कहा गया है कि देवताओं व ब्राह्मणों की धन-सम्पत्ति, रत्नाभूषणों आदि की चोरी करने वाले व्यक्ति को तत्काल मार डालना चाहिए।

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