ग़ालिब की रचनाएँ: Difference between revisions

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ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-
ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-



Revision as of 06:29, 3 November 2015

thumb|250px|'दीवान-ए-ग़ालिब' का आवरण पृष्ठ ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-

  1. 'उर्दू-ए-हिन्दी'
  2. 'उर्दू-ए-मुअल्ला'
  3. 'नाम-ए-ग़ालिब'
  4. 'लतायफे गैबी'
  5. 'दुवपशे कावेयानी' आदि।

इनकी रचनाओं में देश की तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति का वर्णन हुआ है।

दीवान-ए-ग़ालिब

उनकी ख़ूबसूरत शायरी का संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' के रूप में 10 भागों में प्रकाशित हुआ है। जिसका अनेक स्वदेशी तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

ग़ालिब की शायरी संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' से कुछ पंक्तियाँ[1]

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

निकलना ख़ुल्द[2] से आदम[3] का सुनते आये थे, लेकिन
बहुत बेआबरू[4] हो कर तिरे कूचे[5] से हम निकले

हुई जिनसे तवक़्क़ो[6], ख़स्तगी[7] की दाद[8] पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्त-ए-तेग़े-सितम[9] निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़, जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल[10] है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।

ईमां[11] मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र[12]
काबा[13] मेरे पीछे है कलीसा[14] मेरे आगे।

गो हाथ को जुम्बिश[15] नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे।

काव्यशैली में परिवर्तन

मिर्ज़ा ग़ालिब ने फ़ारसी भाषा में कविता करना प्रारंभ किया था और इसी फ़ारसी कविता पर ही इन्हें सदा अभिमान रहा। परंतु यह देव की कृपा है कि, इनकी प्रसिद्धि, सम्मान तथा सर्वप्रियता का आधार इनका छोटा-सा उर्दू का ‘दीवान-ए- ग़ालिब’ ही है। इन्होंने जब उर्दू में कविता करना आरंभ किया, उसमें फ़ारसी शब्दावली तथा योजनाएँ इतनी भरी रहती थीं कि, वह अत्यंत क्लिष्ट हो जाती थी। इनके भावों के विशेष उलझे होने से इनके शेर पहेली बन जाते थे। अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न एक नया मार्ग निकालने की धुन में यह नित्य नए प्रयोग कर रहे थे। किंतु इन्होंने शीघ्र ही समय की आवश्यकता को समझा और स्वयं ही अपनी काव्यशैली में परिवर्तन कर डाला तथा पहले की बहुत-सी कविताएँ नष्ट कर क्रमश: नई कविता में ऐसी सरलता ला दी कि, वह सबके समझने योग्य हो गई।

नए गद्य के प्रवर्तक

मिर्ज़ा ग़ालिब ने केवल कविता में ही नही, गद्यलेखन के लिये भी एक नया मार्ग निकाला था, जिस पर वर्तमान उर्दू गद्य की नींव रखी गई। सच तो यह है कि, ग़ालिब को नए गद्य का प्रवर्तक कहना चाहिए।' इनके दो पत्र-संग्रह, ‘उर्दु-ए-हिन्दी’ तथा ‘उर्दु-ए-मुअल्ला’ ऐसे ग्रंथ हैं कि, इनका उपयोग किए बिना आज कोई उर्दू गद्य लिखने का साहस नहीं कर सकता। इन पत्रों के द्वारा इन्होंने सरल उर्दू लिखने का ढंग निकाला और उसे फ़ारसी अरबी की क्लिष्ट शब्दावली तथा शैली से स्वतंत्र किया। इन पत्रों में तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विवरणों का अच्छा चित्र हैं। ग़ालिब की विनोदप्रियता भी इनमें दिखलाई पड़ती है। इनकी भाषा इतनी सरल, सुंदर तथा आकर्षक है कि, वैसी भाषा कोई उर्दू लेखक अब तक नहीं लिख सका। ग़ालिब की शैली इसलिये भी विशेष प्रिय है कि, उसमें अच्छाइयाँ भी हैं और कच्चाइयाँ भी, तथा पूर्णता और त्रुटियाँ भी हैं। यह पूर्णरूप से मनुष्य हैं और इसकी छाप इनके गद्य पद्य दोनों पर है।

बेहतरीन शायर

मिर्ज़ा असदउल्ला बेग ख़ान 'ग़ालिब' का स्थान उर्दू के चोटी के शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा। उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फ़ारसी के बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा अरब एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय हुए। ग़ालिब की शायरी में एक तड़प, एक चाहत और एक आशिक़ाना अंदाज़ पाया जाता है। जो सहज ही पाठक के मन को छू लेता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आनन्द, कलीम दीवान-ए-ग़ालिब, तृतीय संस्करण 2009 (हिन्दी), मनोज पब्लिकेशंस, 110।
  2. स्वर्ग
  3. पहला मानव
  4. अपमानित
  5. गली
  6. आशा
  7. बिखरना
  8. प्रशंसा
  9. अत्याचार की तलवार से घायल
  10. बच्चों का खेल
  11. धर्म
  12. अधर्म
  13. मुस्लिम धर्म स्थल
  14. कलीसा
  15. हिलना

बाहरी कड़ियाँ

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अंग्रेज़ी पाठ कड़ियाँ 
विडियो कड़ियाँ 
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