Difference between revisions of "शबरी"

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'''भक्तिमती शबरी / Shabri'''<br />
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[[चित्र:Shabare.jpg|thumb|300px|'''शबरी''']]
 
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'''शबरी''' का उल्लेख [[रामायण]] में भगवान श्री [[राम]] के वन-गमन के समय मिलता है। शबरी को श्री राम के प्रमुख भक्तों में गिना जाता है। अपनी वृद्धावस्था में शबरी हमेशा श्री राम के आने की प्रतीक्षा करती रहती थी। राम उसकी [[कुटिया]] में आयेंगे, इसी बात को ध्यान में रखते हुए वह अपनी कुटिया को सदैव साफ-सुथरा रखा करती थी। 'प्रभु आयेंगे', ये वाणी सदा ही उसके कानों में गूँजा करती थी। [[सीता]] की खोज करते हुए जब राम और [[लक्ष्मण]] शबरी की कुटिया में आये, तब शबरी ने बेर खिलाकर उनका आदर-सत्कार किया। यह सोचकर कि बेर खट्टे और कड़वे तो नहीं हैं, इसीलिए पहले वह स्वयं बेर चखकर देखती और फिर राम और लक्ष्मण को खाने को देती। शबरी की इस सच्ची भक्ती, निष्टा और सहृदयता से राम ने उसे स्वर्ग प्राप्ति का वरदान दिया। स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके शबरी सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गयी।
शबरी का जन्म भील कुल में हुआ था। वह भीलराज की एकमात्र कन्या थीं उसका विवाह एक पशु स्वभाव के क्रूर व्यक्ति से निश्चय हुआ। अपने विवाह के अवसर पर अनेक निरीह पशुओं को बलि के लिये लाया गया देखकर शबरी का हृदय दया से भर गया। उसके संस्कारों में दया, अहिंसा और भगवद्धक्ति थी। विवाह की रात्रि में शबरी पिता के अपयश की चिन्ता छोड़कर बिना किसी को बताये जंगल की ओर चल पड़ी। रात्रि भर वह जी-तोड़कर भागती रही और प्रात:काल महर्षि [[मतंग]] के आश्रम में पहुँची। त्रिकालदर्शी ऋषि ने उसे संस्कारी बालिका समझकर अपने आश्रम में स्थान दिया। उन्होंने शबरी को गुरुमन्त्र देकर नाम –जप की विधि भी समझायी।
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==पलायन==
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शबरी का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह [[भील]] समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखती थी। शबरी के [[पिता]] भीलों के राजा थे। शबरी जब [[विवाह]] के योग्य हुई तो उसके पिता ने एक दूसरे भील कुमार से उसका विवाह पक्का किया। विवाह के दिन निकट आये। सैकडों बकरे-भैंसे बलिदान के लिये इकट्ठे किये गये। इस पर शबरी ने अपने पिता से पूछा- 'ये सब जानवर क्यों इकट्ठे किये गये हैं?' पिता ने कहा- 'तुम्हारे विवाह के उपलक्ष में इन सब की बलि दी जायेगी।' यह सुनकर बालिका शबरी का सिर चकराने लगा कि यह किस प्रकार का विवाह है, जिसमें इतने प्राणियों का वध होगा। इससे तो विवाह न करना ही अच्छा है। ऐसा सोचकर वह रात्रि में उठकर जंगल में भाग गई।<ref>{{cite web |url=http://mamta.mywebdunia.com/2008/02/22/1203696840000.html |title=माता शबरी|accessmonthday=11 अप्रैल|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
महर्षि मतंग ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागता शबरी का त्याग नहीं किया। महर्षि का अन्त निकट था। उनके वियोग की कल्पना मात्र से शबरी व्याकुल हो गयी। महर्षि ने उसे निकट बुलाकर समझाया- बेटी! धैर्य से कष्ट सहन करती हुई साधना में लगी रहनां प्रभु [[राम]] एक दिन तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे। प्रभु की दृष्टि में कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है। वे तो भाव के भूखे हैं और अन्तर की प्रीति पर रीझते हैं।' शबरी का मन अप्रत्याशित आनन्द से भर गया और महर्षि की जीवन-लीला समाप्त हो गयी।
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==मतंग का आश्रय==
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[[दंडकारण्य]] में हज़ारों ऋषि-मुनि तपस्या किया करते थे। शबरी हीन जाति की और अशिक्षित बालिका थी। उसमें संसार की दृष्टि में भजन करने योग्य कोई गुण नहीं था, किन्तु उसके [[हृदय]] में प्रभु के लिये सच्ची चाह थी, जिसके होने से सभी गुण स्वत: ही आ जाते हैं। वह रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से [[ऋषि]] निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ़ करती। कँकरीली ज़मीन में बालू बिछा आती। जंगल में जाकर लकड़ी काटकर डाल आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले। यह कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। अन्त में [[मतंग|मतंग ऋषि]] ने उस पर कृपा की। महर्षि मतंग ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागता शबरी का त्याग नहीं किया। महर्षि का अन्त निकट था। उनके वियोग की कल्पना मात्र से ही शबरी व्याकुल हो गयी। महर्षि ने उसे निकट बुलाकर समझाया- 'बेटी! धैर्य से कष्ट सहन करती हुई साधना में लगी रहनां। प्रभु [[राम]] एक दिन तेरी [[कुटिया]] में अवश्य आयेंगे। प्रभु की दृष्टि में कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है। वे तो भाव के भूखे हैं और अन्तर की प्रीति पर रीझते हैं।' शबरी का मन अप्रत्याशित आनन्द से भर गया और महर्षि की जीवन-लीला समाप्त हो गयी।
शबरी अब वृद्धा हो गयी थी।'प्रभु आयेंगे' गुरुदेव की यह वाणी उसके कानों में गूँजती रहती थी और इसी विश्वास पर वह कर्मकाण्डी ऋषियों के अनाचार शान्ति से सहती हुई अपनी साधना में लगी रही। वह नित्य भगवान के दर्शन की लालसा से अपनी कुटिया को साफ करती, उनके भोग के लिये फल लाकर रखती। आख़िर शबरी की प्रतीक्षा पूरी हुई। अभी वह भगवान के भोग के लिये मीठे-मीठे फलों का चखकर और उन्हें धोकर दोनों में सजा ही रही थी कि अचानक एक वृद्ध ने उसे सूचना दी- 'शबरी! तेरे राम भ्राता सहित आ रहे हैं।' वृद्ध के शब्दों ने शबरी में नवीन चेतना का संचार कर दिया। वह बिना लकुट लिये हड़बड़ी में भागी। श्री राम को देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणों में लोट गयी। देह की सुध भूलकर वह श्री राम के चरणों को अपने अश्रुजल से धोने लगी। किसी तरह भगवान श्री राम ने उसे उठाया। अब वह आगे-आगे उन्हें मार्ग दिखाती अपनी कुटिया की ओर चलने लगी। कुटिया में पहुँच कर उसने भगवान का चरण धोकर उन्हें आसन पर बिठाया। फलों के दोने उनके सामने रखकर वह स्नेहसिक्त वाणी में बोली- 'प्रभु! मैं आपको अपने हाथों से फल खिलाऊँगी। खाओगे न भीलनी के हाथ के फल? वैसे तो नारी जाति ही अधम है और मैं तो अन्त्यज, मूढ और गँवार हूँ। 'कहते-कहते शबरी की वाणी रूक गयी और उसके नेत्रों से अश्रुजल छलक पड़े। <br />
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==राम का सत्कार==
श्री राम ने कहा-'बूढ़ी माँ! मैं तो एक भक्ति का ही नाता मानता हूँ। जाति-पाति, कुल, धर्म सब मेरे सामने गौण हैं। मुझे भूख लग रही है, जल्दी से मुझे फल खिलाकर तृप्त कर दो।' शबरी भगवान को फल खिलाती आती थी और वे बार-बार माँगकर खाते जाते थे। महर्षि मतंग की वाणी आज सत्य हो गयी और पूर्ण हो गयी शबरी की साधना। उसने भगवान को [[सीता]] की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी और स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गयी। श्री राम-भक्ति की अनुपम पात्र शबरी धन्य है।
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शबरी अब वृद्धा हो गयी थी। 'प्रभु आयेंगे' गुरुदेव की यह वाणी उसके कानों में गूँजती रहती थी और इसी विश्वास पर वह कर्मकाण्डी ऋषियों के अनाचार शान्ति से सहती हुई अपनी साधना में लगी रही। वह नित्य भगवान के दर्शन की लालसा से अपनी कुटिया को साफ़ करती, उनके भोग के लिये फल लाकर रखती। आख़िर शबरी की प्रतीक्षा पूरी हुई। अभी वह भगवान के भोग के लिये मीठे-मीठे फलों का चखकर और उन्हें धोकर दोनों में सज़ा ही रही थी कि अचानक एक वृद्ध ने उसे सूचना दी- 'शबरी! तेरे राम भ्राता सहित आ रहे हैं।' वृद्ध के शब्दों ने शबरी में नवीन चेतना का संचार कर दिया। वह बिना लकुट लिये हड़बड़ी में भागी। श्री राम को देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणों में लोट गयी। देह की सुध भूलकर वह श्री राम के चरणों को अपने अश्रुजल से धोने लगी। किसी तरह भगवान श्री राम ने उसे उठाया। अब वह आगे-आगे उन्हें मार्ग दिखाती अपनी कुटिया की ओर चलने लगी। कुटिया में पहुँचकर उसने भगवान का चरण धोकर उन्हें आसन पर बिठाया। फलों के दोने उनके सामने रखकर वह स्नेहसिक्त वाणी में बोली- 'प्रभु! मैं आपको अपने हाथों से फल खिलाऊँगी। खाओगे न भीलनी के हाथ के फल? वैसे तो नारी जाति ही अधम है और मैं तो अन्त्यज, मूढ और गँवार हूँ।' कहते-कहते शबरी की वाणी रूक गयी और उसके नेत्रों से अश्रुजल छलक पड़े।
==रामायण से==
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==मोक्ष प्राप्ति==
सीता को ढूंढ़ते हुए राम शबरी के आश्रम में पहुंचे। शबरी ने उनका आतिथ्य-सत्कार किया तथा कहा-'मैं जिन ऋषियों की सेवा करती थी, आपके [[चित्रकूट]] पर्वत पर पहुंचते ही वे सब असाधारण विमानों पर आरूढ़ होकर स्वर्ग चले गये तथा कह गये कि आप यहाँ पर आयेंगे और मैं आप लोगों का सत्कार करके अविनाशी लोक प्राप्त करूंगी। अत: मैंने यहाँ उत्पन्न होनेवाले फल-फूल आपके लिए एकत्र कर रखे हैं।' राम से आज्ञा प्राप्त करके शबरी ने अग्निकुण्ड में प्रवेश कर अपनी काया होम कर दी तथा स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान किया।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, अरण्य कांड, सर्ग 74, 11-35" style="color:blue">*</balloon>
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श्री राम ने कहा-'बूढ़ी माँ! मैं तो एक [[भक्ति]] का ही नाता मानता हूँ। जाति-पाति, कुल, [[धर्म]] सब मेरे सामने गौण हैं। मुझे भूख लग रही है, जल्दी से मुझे फल खिलाकर तृप्त कर दो।' शबरी भगवान को फल खिलाती जाती थी और वे बार-बार माँगकर खाते जाते थे। महर्षि मतंग की वाणी आज [[सत्य]] हो गयी और पूर्ण हो गयी शबरी की साधना। उसने भगवान को [[सीता]] की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी और स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गई और मोक्ष को प्राप्त किया।
 
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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[[Category:पौराणिक कोश]]  
 
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Latest revision as of 09:53, 24 February 2017

thumb|300px|shabari shabari ka ullekh ramayan mean bhagavan shri ram ke van-gaman ke samay milata hai. shabari ko shri ram ke pramukh bhaktoan mean gina jata hai. apani vriddhavastha mean shabari hamesha shri ram ke ane ki pratiksha karati rahati thi. ram usaki kutiya mean ayeange, isi bat ko dhyan mean rakhate hue vah apani kutiya ko sadaiv saph-suthara rakha karati thi. 'prabhu ayeange', ye vani sada hi usake kanoan mean gooanja karati thi. sita ki khoj karate hue jab ram aur lakshman shabari ki kutiya mean aye, tab shabari ne ber khilakar unaka adar-satkar kiya. yah sochakar ki ber khatte aur k dave to nahian haian, isilie pahale vah svayan ber chakhakar dekhati aur phir ram aur lakshman ko khane ko deti. shabari ki is sachchi bhakti, nishta aur sahridayata se ram ne use svarg prapti ka varadan diya. svayan ko yogagni mean bhasm karake shabari sada ke liye shri ram ke charanoan mean lin ho gayi.

palayan

shabari ka vastavik nam 'shramana' tha aur vah bhil samuday ki 'shabari' jati se sanbandh rakhati thi. shabari ke pita bhiloan ke raja the. shabari jab vivah ke yogy huee to usake pita ne ek doosare bhil kumar se usaka vivah pakka kiya. vivah ke din nikat aye. saikadoan bakare-bhaianse balidan ke liye ikatthe kiye gaye. is par shabari ne apane pita se poochha- 'ye sab janavar kyoan ikatthe kiye gaye haian?' pita ne kaha- 'tumhare vivah ke upalaksh mean in sab ki bali di jayegi.' yah sunakar balika shabari ka sir chakarane laga ki yah kis prakar ka vivah hai, jisamean itane praniyoan ka vadh hoga. isase to vivah n karana hi achchha hai. aisa sochakar vah ratri mean uthakar jangal mean bhag gee.[1]

matang ka ashray

dandakarany mean hazaroan rrishi-muni tapasya kiya karate the. shabari hin jati ki aur ashikshit balika thi. usamean sansar ki drishti mean bhajan karane yogy koee gun nahian tha, kintu usake hriday mean prabhu ke liye sachchi chah thi, jisake hone se sabhi gun svat: hi a jate haian. vah ratri mean jaldi uthakar, jidhar se rrishi nikalate, us raste ko nadi tak saf karati. kankarili zamin mean baloo bichha ati. jangal mean jakar lak di katakar dal ati. in sab kamoan ko vah itani tatparata se chhipakar karati ki koee rrishi dekh n le. yah kary vah kee varshoan tak karati rahi. ant mean matang rrishi ne us par kripa ki. maharshi matang ne samajik bahishkar svikar kiya, kintu sharanagata shabari ka tyag nahian kiya. maharshi ka ant nikat tha. unake viyog ki kalpana matr se hi shabari vyakul ho gayi. maharshi ne use nikat bulakar samajhaya- 'beti! dhairy se kasht sahan karati huee sadhana mean lagi rahanaan. prabhu ram ek din teri kutiya mean avashy ayeange. prabhu ki drishti mean koee din-hin aur asprishy nahian hai. ve to bhav ke bhookhe haian aur antar ki priti par rijhate haian.' shabari ka man apratyashit anand se bhar gaya aur maharshi ki jivan-lila samapt ho gayi.

ram ka satkar

shabari ab vriddha ho gayi thi. 'prabhu ayeange' gurudev ki yah vani usake kanoan mean gooanjati rahati thi aur isi vishvas par vah karmakandi rrishiyoan ke anachar shanti se sahati huee apani sadhana mean lagi rahi. vah nity bhagavan ke darshan ki lalasa se apani kutiya ko saf karati, unake bhog ke liye phal lakar rakhati. akhir shabari ki pratiksha poori huee. abhi vah bhagavan ke bhog ke liye mithe-mithe phaloan ka chakhakar aur unhean dhokar donoan mean saza hi rahi thi ki achanak ek vriddh ne use soochana di- 'shabari! tere ram bhrata sahit a rahe haian.' vriddh ke shabdoan ne shabari mean navin chetana ka sanchar kar diya. vah bina lakut liye h dab di mean bhagi. shri ram ko dekhate hi vah nihal ho gayi aur unake charanoan mean lot gayi. deh ki sudh bhoolakar vah shri ram ke charanoan ko apane ashrujal se dhone lagi. kisi tarah bhagavan shri ram ne use uthaya. ab vah age-age unhean marg dikhati apani kutiya ki or chalane lagi. kutiya mean pahuanchakar usane bhagavan ka charan dhokar unhean asan par bithaya. phaloan ke done unake samane rakhakar vah snehasikt vani mean boli- 'prabhu! maian apako apane hathoan se phal khilaooangi. khaoge n bhilani ke hath ke phal? vaise to nari jati hi adham hai aur maian to antyaj, moodh aur ganvar hooan.' kahate-kahate shabari ki vani rook gayi aur usake netroan se ashrujal chhalak p de.

moksh prapti

shri ram ne kaha-'boodhi maan! maian to ek bhakti ka hi nata manata hooan. jati-pati, kul, dharm sab mere samane gaun haian. mujhe bhookh lag rahi hai, jaldi se mujhe phal khilakar tript kar do.' shabari bhagavan ko phal khilati jati thi aur ve bar-bar maangakar khate jate the. maharshi matang ki vani aj saty ho gayi aur poorn ho gayi shabari ki sadhana. usane bhagavan ko sita ki khoj ke liye sugriv se mitrata karane ki salah di aur svayan ko yogagni mean bhasm karake sada ke liye shri ram ke charanoan mean lin ho gee aur moksh ko prapt kiya.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. mata shabari (hindi) (ech.ti.em.el.). . abhigaman tithi: 11 aprail, 2012.

sanbandhit lekh

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