कुबेर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " मां " to " माँ ")
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
*महर्षि [[पुलस्त्य]] के पुत्र महामुनि विश्रवा ने [[भारद्वाज]] जी की कन्या इलविला का पाणि ग्रहण किया। उसी से कुबेर की उत्पत्ति हुई।
[[चित्र:Kubera-The-God-Of-Wealth-Mathura-Museum-45.jpg|thumb|250px|कुबेर प्रतिमा, [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]]]
[[Image:Kubera-The-God-Of-Wealth-Mathura-Museum-45.jpg|thumb|250px|धनपति-कुबेर<br /> Kubera The God Of Wealth<br />[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]]]  
'''कुबेर''' [[पुलस्त्य|महर्षि पुलस्त्य]] के पुत्र [[विश्रवा|महामुनि विश्रवा]] के पुत्र थे। विश्रवा की पत्नी इलविला के गर्भ से कुबेर का जन्म हुआ था, जबकि उनकी दूसरी पत्नी [[कैकसी]] के गर्भ से [[रावण]], [[कुम्भकर्ण]], [[विभीषण]] और [[शूर्पणखा]] का जन्म हुआ था। इस प्रकार कुबेर रावण का भाई था।
*भगवान [[ब्रह्मा]] ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया।  
 
*भगवान [[ब्रह्मा]] ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया।
*ये तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल हुए।  
*ये तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल हुए।  
*कैलाश के समीप इनकी [[अलकापुरी]] है।  
*कैलाश के समीप इनकी [[अलकापुरी]] है।  
Line 19: Line 20:
*भगवान [[शंकर]] को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने [[हिमालय]] पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा [[पार्वती देवी|पार्वती]] दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य [[तेज]] से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया। वह घोर तप या तो शिव ने किया था या फिर कुबेर ने किया, अन्य कोई भी देवता उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-'तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के [[तेज]] से नष्ट हो गया, अत: तुम 'एकाक्षीपिंगल' कहलाओगे। <ref>रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13, श्लोक 20-39</ref>  
*भगवान [[शंकर]] को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने [[हिमालय]] पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा [[पार्वती देवी|पार्वती]] दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य [[तेज]] से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया। वह घोर तप या तो शिव ने किया था या फिर कुबेर ने किया, अन्य कोई भी देवता उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-'तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के [[तेज]] से नष्ट हो गया, अत: तुम 'एकाक्षीपिंगल' कहलाओगे। <ref>रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13, श्लोक 20-39</ref>  
*कुबेर ने [[रावण]] के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। रावण के नंदनवन उजाड़ने के कारण सब [[देवता]] उसके शत्रु बन गये हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी [[खड्ग]] से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर का यह सब जानकर बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका [[पुष्पक विमान]] ले लिया। <ref>बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13 से 15,</ref>  
*कुबेर ने [[रावण]] के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। रावण के नंदनवन उजाड़ने के कारण सब [[देवता]] उसके शत्रु बन गये हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी [[खड्ग]] से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर का यह सब जानकर बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका [[पुष्पक विमान]] ले लिया। <ref>बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13 से 15,</ref>  
*[[विश्रवा]] की दो पत्नियां थीं। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। शेष [[रावण]], [[कुंभकर्ण]] और [[विभीषण]] सौतेले भाई थे। उन्होंने अपनी मां से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान लेकर [[लंका|लंका पुरी]] तथा समस्त संपत्ति छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गये। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। गौतमी के तट का वह स्थल धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। <ref>ब्रह्म पुराण । 97</ref>
*[[विश्रवा]] की दो पत्नियां थीं। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। शेष [[रावण]], [[कुंभकर्ण]] और [[विभीषण]] सौतेले भाई थे। उन्होंने अपनी माँ से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान लेकर [[लंका|लंका पुरी]] तथा समस्त संपत्ति छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गये। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। गौतमी के तट का वह स्थल धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। <ref>ब्रह्म पुराण । 97</ref>


==वीथिका==
==वीथिका==
Line 29: Line 30:
</gallery>  
</gallery>  


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति  
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references />  
<references />  
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{रामायण}}{{पौराणिक चरित्र}}  
{{रामायण}}{{पौराणिक चरित्र}}  
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:रामायण]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:रामायण]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 14:09, 2 June 2017

[[चित्र:Kubera-The-God-Of-Wealth-Mathura-Museum-45.jpg|thumb|250px|कुबेर प्रतिमा, राजकीय संग्रहालय, मथुरा]] कुबेर महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा के पुत्र थे। विश्रवा की पत्नी इलविला के गर्भ से कुबेर का जन्म हुआ था, जबकि उनकी दूसरी पत्नी कैकसी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ था। इस प्रकार कुबेर रावण का भाई था।

  • भगवान ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया।
  • ये तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल हुए।
  • कैलाश के समीप इनकी अलकापुरी है।
  • श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं।
  • इनके पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं।
  • इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं।
  • प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते थे।
  • पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेर हैं।
  • इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू गर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है।
  • निधि-विद्या में निधि सजीव मानी गयी है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है।
  • पुण्यात्मा योग्य शासक के समय में मणि-रत्नादि स्वत: प्रकट होते हैं। आज तो अधिकांश मणि, रत्न लुप्त हो गये। कोई स्वत:प्रकाश रत्न विश्व में नहीं, आज का मानव उनको उपभोग्य जो मानता है। यज्ञ-दान के अवशेष का उपभोग हो, यह वृत्ति लुप्त हो गयी।
  • कुबेर जी मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं।
  • भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है।
  • प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है।

रामायण में कुबेर

आसवपायी कुबेर
Bacchanalian Group|thumb|250px

  • भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में शिव तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया। वह घोर तप या तो शिव ने किया था या फिर कुबेर ने किया, अन्य कोई भी देवता उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-'तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम 'एकाक्षीपिंगल' कहलाओगे। [1]
  • कुबेर ने रावण के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। रावण के नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गये हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर का यह सब जानकर बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका पुष्पक विमान ले लिया। [2]
  • विश्रवा की दो पत्नियां थीं। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। शेष रावण, कुंभकर्ण और विभीषण सौतेले भाई थे। उन्होंने अपनी माँ से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान लेकर लंका पुरी तथा समस्त संपत्ति छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गये। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। गौतमी के तट का वह स्थल धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। [3]

वीथिका


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13, श्लोक 20-39
  2. बाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 13 से 15,
  3. ब्रह्म पुराण । 97

संबंधित लेख