तपती: Difference between revisions

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'''तपती''' [[सूर्य देव]] की कन्या थी, जो अत्यन्त ही गुणवती तथा सौन्दर्य से परिपूर्ण परम सुन्दरी थी। जब [[संवरण|राजा संवरण]] शिकार की तलाश में भटक रहे थे, तब उन्होंने तपती को देखा और उसके समक्ष [[विवाह]] का प्रस्ताव रखा। किंतु तपती ने [[पिता]] सूर्य देव की आज्ञा के बिना विवाह करने से इंकार कर दिया। बाद में संवरण ने तपस्या से सूर्य देव को प्रसन्न किया और तपती को पत्नी रूप में पा लिया।


 
*[[सूर्य देवता]] अपनी परम रूपवती कन्या तपती के लिए कोई वर नहीं खोज पा रहे थे।
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*एक दिन जंगल में शिकार करते समय संवरण का घोड़ा मारा गया, अत: वे पैदल ही इधर-उधर भटक रहे थे। तभी उन्हें तपती दिखाई पड़ी।
*तपती के सौन्दर्य पर संवरण इतने आसक्त हो गये कि मूर्च्छा ने उन्हें घेर लिया।
*संवरण ने तपती के समक्ष [[विवाह]] का प्रस्ताव रखा, किंतु [[पिता]] की आज्ञा लिए बिना तपती उनके प्रेम-निवेदन का उत्तर देने को तैयार नहीं थी।
*राजा संवरण मूर्च्छित होकर वहीं गिर गये। राजा को उनके मंत्री आदि उठाकर राज्य में ले आये।
*चेतना जाग्रत होने पर संवरण भगवान [[सूर्य देव]] की उपासना में रत हो गए।
*सूर्य देव ने संवरण की परीक्षा ली और प्रसन्न होकर तपती से उनका विवाह कर दिया। विवाहोपरान्त यह युगल वहीं [[पर्वत]] पर निवास करने लगा।
*राजा संवरण अपनी पत्नी के साथ भोग-विलास में लिप्त हो गये। उनकी अनुपस्थिति में राज्य का कार्यभार मंत्रियों पर था।
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*संवरण के राज गुरु वसिष्ठ ने अपने तपोबल से नगर में [[वर्षा]] की तथा प्रवासी संवरण और तपती को नगर में ले आये। इंद्र ने पूर्ववत वर्षा प्रारम्भ कर दी।
*कुछ समय बाद [[संवरण]] तथा तपती से '[[कुरु]]' का जन्म हुआ, जिनसे '[[कुरु वंश]]' का सूत्रपात हुआ।


'''सूर्य की कन्या का नाम तपती था।''' वह अत्यन्त गुणवती तथा सुन्दरी थी। सूर्य उसके समान कोई वर नहीं खोज पा रहे थे। उन्हीं दिनों ऋक्ष के पुत्र राजा संवरण [[सूर्य]] की उपासना कर रहे थे। एक दिन जंगल में शिकार करते समय उनका [[घोड़ा]] मारा गया, अत: वे पैदल ही इधर-उधर भटक रहे थे। तभी उन्हें तपती दिखाई पड़ी। तपती के सौन्दर्य पर वे इतने आसक्त हो गये कि मूर्च्छा ने उन्हें घेर लिया। पिता की आज्ञा लिए बिना तपती उनके प्रेम-निवेदन का उत्तर देने को तैयार नहीं थी। मूर्च्छित राजा को उनके मंत्री आदि उठाकर राज्य में ले गये।
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वे पुन: सूर्य की उपासना में रत हो गए। वसिष्ठ ने सूर्य से जाकर सब कुछ कह सुनाया तथा तपती से संवरण का विवाह हो गया। '''विवाहोपरान्त''' उस युगल ने वहीं पर्वत पर बारह वर्ष तक विहार किया। उनकी अनुपस्थिति में राज्य का कार्यभार मंत्रियों पर था। बारह वर्ष तक इंद्र ने उनके राज्य में एक बूँद पानी भी नहीं बरसाया। अत: दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। वसिष्ठ ने अपने तपोबल से उस नगर में वर्षा की तथा प्रवासी संवरण और तपती को नगर में ले आये। इंद्र ने पूर्ववत् वर्षा प्रारम्भ कर दी। संवरण तथा तपती ने कुरु को जन्म दिया, जिससे कौरव वंश का '''सूत्रपात''' हुआ।
 
 
 
(पुस्तक 'भारतीय मिथक कोश') पृष्ठ संख्या-118
 
 
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Latest revision as of 10:46, 28 June 2015

तपती सूर्य देव की कन्या थी, जो अत्यन्त ही गुणवती तथा सौन्दर्य से परिपूर्ण परम सुन्दरी थी। जब राजा संवरण शिकार की तलाश में भटक रहे थे, तब उन्होंने तपती को देखा और उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। किंतु तपती ने पिता सूर्य देव की आज्ञा के बिना विवाह करने से इंकार कर दिया। बाद में संवरण ने तपस्या से सूर्य देव को प्रसन्न किया और तपती को पत्नी रूप में पा लिया।

  • सूर्य देवता अपनी परम रूपवती कन्या तपती के लिए कोई वर नहीं खोज पा रहे थे।
  • उन्हीं दिनों ऋक्ष के पुत्र राजा संवरण भी अपनी प्रजा परायणता और वीरता से ख्याति प्राप्त कर चुके थे। वे सूर्य की उपासना करते थे और उनके सच्चे भक्त थे।
  • एक दिन जंगल में शिकार करते समय संवरण का घोड़ा मारा गया, अत: वे पैदल ही इधर-उधर भटक रहे थे। तभी उन्हें तपती दिखाई पड़ी।
  • तपती के सौन्दर्य पर संवरण इतने आसक्त हो गये कि मूर्च्छा ने उन्हें घेर लिया।
  • संवरण ने तपती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, किंतु पिता की आज्ञा लिए बिना तपती उनके प्रेम-निवेदन का उत्तर देने को तैयार नहीं थी।
  • राजा संवरण मूर्च्छित होकर वहीं गिर गये। राजा को उनके मंत्री आदि उठाकर राज्य में ले आये।
  • चेतना जाग्रत होने पर संवरण भगवान सूर्य देव की उपासना में रत हो गए।
  • सूर्य देव ने संवरण की परीक्षा ली और प्रसन्न होकर तपती से उनका विवाह कर दिया। विवाहोपरान्त यह युगल वहीं पर्वत पर निवास करने लगा।
  • राजा संवरण अपनी पत्नी के साथ भोग-विलास में लिप्त हो गये। उनकी अनुपस्थिति में राज्य का कार्यभार मंत्रियों पर था।
  • बारह वर्ष तक इंद्र ने संवरण के राज्य में एक बूँद पानी भी नहीं बरसाया। अत: अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • संवरण के राज गुरु वसिष्ठ ने अपने तपोबल से नगर में वर्षा की तथा प्रवासी संवरण और तपती को नगर में ले आये। इंद्र ने पूर्ववत वर्षा प्रारम्भ कर दी।
  • कुछ समय बाद संवरण तथा तपती से 'कुरु' का जन्म हुआ, जिनसे 'कुरु वंश' का सूत्रपात हुआ।


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