ग़ालिब की रचनाएँ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('thumb|'दीवान-ए-ग़ालिब' का आवरण पृष्ठ ग़ाल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(5 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Diwan-E-Ghalib.jpg|thumb|'दीवान-ए-ग़ालिब' का आवरण पृष्ठ]]
{{ग़ालिब विषय सूची}}
ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-
[[चित्र:Diwan-E-Ghalib.jpg|thumb|250px|'दीवान-ए-ग़ालिब' का आवरण पृष्ठ]]
 
[[ग़ालिब]] [[उर्दू]]-[[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के प्रख्यात [[कवि]] तथा महान् शायर थे। ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। दिल्ली में ससुर तथा उनके प्रतिष्ठित साथियों एवं मित्रों के काव्य प्रेम का इन पर अच्छा असर हुआ। इलाहीबख़्श ख़ाँ पवित्र एवं रहस्यवादी प्रेम से पूर्ण काव्य-रचना करते थे। वह पवित्र विचारों के आदमी थे। उनके यहाँ सूफ़ियों तथा शायरों का जमघट रहता था। निश्चय ही ग़ालिब पर इन गोष्ठियों का अच्छा असर पड़ा।
==रचनाएँ ==
इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-
#'उर्दू-ए-हिन्दी'  
#'उर्दू-ए-हिन्दी'  
#'उर्दू-ए-मुअल्ला'
#'उर्दू-ए-मुअल्ला'
Line 39: Line 41:
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे।</poem>
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे।</poem>
|}
|}
==सर्व धर्मप्रिय व्यक्ति==
वैसे वह शिया [[मुसलमान]] थे, पर मज़हब की भावनाओं में बहुत उदार और स्वतंत्र चेता थे। इनकी मृत्यु के बाद ही [[आगरा]] से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘ज़ख़ीरा बालगोविन्द’ के मार्च, [[1869]] के अंक में इनकी मृत्यु पर जो सम्पादकीय लेख छपा था और जो शायद इनके सम्बन्ध में लिखा सबसे पुराना और पहला लेख है, उससे तो एक नई बात मालूम होती है कि यह बहुत पहले चुपचाप ‘फ़्रीमैसन’ हो गए थे और लोगों के बहुत पूछने पर भी उसकी गोपनीयता की अन्त तक रक्षा करते रहे। बहरहाल वह जो भी रहे हों, 'इतना तो तय है कि मज़हब की दासता उन्होंने कभी स्वीकार नहीं की। इनके मित्रों में हर जाति, धर्म और श्रेणी के लोग थे।
==विनोदप्रिय व मदिरा प्रेमी==
मिर्ज़ा ग़ालिब जीवन संघर्ष से भागते नहीं और न इनकी कविता में कहीं निराशा का नाम है। वह इस संघर्ष को जीवन का एक अंश तथा आवश्यक अंग समझते थे। मानव की उच्चता तथा मनुष्यत्व को सब कुछ मानकर उसके भावों तथा विचारों का वर्णन करने में वह अत्यन्त निपुण थे और यह वर्णनशैली ऐसे नए ढंग की है कि, इसे पढ़कर पाठक मुग्ध हो जाता है। ग़ालिब में जिस प्रकार शारीरिक सौंदर्य था, उसी प्रकार उनकी प्रकृति में विनोदप्रियता तथा वक्रता भी थी और ये सब विशेषताएँ उनकी कविता में यत्र-तत्र झलकती रहती हैं। वह मदिरा प्रेमी भी थे, इसलिये मदिरा के संबंध में इन्होंने जहाँ भाव प्रकट किए हैं, वे शेर ऐसे चुटीले तथा विनोदपूर्ण हैं कि, उनका जोड़ उर्दू कविता में अन्यत्र नहीं मिलता।
====ख़ुद का घर न होना====
ग़ालिब सदा किराये के मकानों में रहे, अपना मकान न बनवा सके। ऐसा मकान ज़्यादा पसंद करते थे, जिसमें बैठकख़ाना और अन्त:पुर अलग-अलग हों और उनके दरवाज़े भी अलग हों, जिससे यार-दोस्त बेझिझक आ-जा सकें। नौकर 4-4, 5-5 रखते थे। बुरे से बुरे दिनों में भी तीन से कम न रहे। यात्रा में भी 2-3 नौकर साथ रहते थे। इनके पुराने नौकरों में मदारी या मदार ख़ाँ, कल्लु और कल्यान बड़े वफ़ादार रहे। कल्लु तो अन्त तक साथ ही रहा। वह चौदह वर्ष की आयु में मिर्ज़ा के पास आया था और उनके परिवार का ही हो गया था। वह पाँव की आहट से पहिचान लेता था कि लड़कियाँ हैं, बहुएँ हैं या बुढ़िया हैं।
==काव्यशैली में परिवर्तन==
==काव्यशैली में परिवर्तन==
मिर्ज़ा ग़ालिब ने [[फ़ारसी भाषा]] में कविता करना प्रारंभ किया था और इसी फ़ारसी कविता पर ही इन्हें सदा [[अभिमान]] रहा। परंतु यह [[देवता|देव]] की कृपा है कि, इनकी प्रसिद्धि, सम्मान तथा सर्वप्रियता का आधार इनका छोटा-सा उर्दू का ‘दीवान-ए- ग़ालिब’ ही है। इन्होंने जब [[उर्दू]] में कविता करना आरंभ किया, उसमें फ़ारसी शब्दावली तथा योजनाएँ इतनी भरी रहती थीं कि, वह अत्यंत क्लिष्ट हो जाती थी। इनके भावों के विशेष उलझे होने से इनके शेर पहेली बन जाते थे। अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न एक नया मार्ग निकालने की धुन में यह नित्य नए प्रयोग कर रहे थे। किंतु इन्होंने शीघ्र ही समय की आवश्यकता को समझा और स्वयं ही अपनी काव्यशैली में परिवर्तन कर डाला तथा पहले की बहुत-सी कविताएँ नष्ट कर क्रमश: नई कविता में ऐसी सरलता ला दी कि, वह सबके समझने योग्य हो गई।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने [[फ़ारसी भाषा]] में कविता करना प्रारंभ किया था और इसी फ़ारसी कविता पर ही इन्हें सदा [[अभिमान]] रहा। परंतु यह [[देवता|देव]] की कृपा है कि, इनकी प्रसिद्धि, सम्मान तथा सर्वप्रियता का आधार इनका छोटा-सा उर्दू का ‘दीवान-ए- ग़ालिब’ ही है। इन्होंने जब [[उर्दू]] में कविता करना आरंभ किया, उसमें फ़ारसी शब्दावली तथा योजनाएँ इतनी भरी रहती थीं कि, वह अत्यंत क्लिष्ट हो जाती थी। इनके भावों के विशेष उलझे होने से इनके शेर पहेली बन जाते थे। अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न एक नया मार्ग निकालने की धुन में यह नित्य नए प्रयोग कर रहे थे। किंतु इन्होंने शीघ्र ही समय की आवश्यकता को समझा और स्वयं ही अपनी काव्यशैली में परिवर्तन कर डाला तथा पहले की बहुत-सी कविताएँ नष्ट कर क्रमश: नई कविता में ऐसी सरलता ला दी कि, वह सबके समझने योग्य हो गई।
Line 53: Line 47:
==बेहतरीन शायर==
==बेहतरीन शायर==
मिर्ज़ा असदउल्ला बेग ख़ान 'ग़ालिब' का स्थान उर्दू के चोटी के शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा। उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फ़ारसी के बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा [[अरब]] एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय हुए। ग़ालिब की शायरी में एक तड़प, एक चाहत और एक आशिक़ाना अंदाज़ पाया जाता है। जो सहज ही पाठक के मन को छू लेता है।  
मिर्ज़ा असदउल्ला बेग ख़ान 'ग़ालिब' का स्थान उर्दू के चोटी के शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा। उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फ़ारसी के बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा [[अरब]] एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय हुए। ग़ालिब की शायरी में एक तड़प, एक चाहत और एक आशिक़ाना अंदाज़ पाया जाता है। जो सहज ही पाठक के मन को छू लेता है।  
{{लेख क्रम2 |पिछला=ग़ालिब का दौर|पिछला शीर्षक=ग़ालिब का दौर|अगला शीर्षक=ग़ालिब|अगला=ग़ालिब}}


{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक3 |पूर्णता= |शोध=}}
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक3 |पूर्णता= |शोध=}}
Line 71: Line 67:
*[http://www.milansagar.com/kobi-mirzaghalib.html मिर्ज़ा ग़ालिब]
*[http://www.milansagar.com/kobi-mirzaghalib.html मिर्ज़ा ग़ालिब]
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/urdu/galibletters/ ग़ालिब के ख़त]
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/urdu/galibletters/ ग़ालिब के ख़त]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/125_ghalib_pix/index.shtml महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/125_ghalib_pix/index.shtml महान् शायर मिर्ज़ा ग़ालिब]
*[http://gunaahgar.blogspot.com/2007/12/blog-post_27.html मिर्ज़ा ग़ालिब हाज़िर हो]
*[http://gunaahgar.blogspot.com/2007/12/blog-post_27.html मिर्ज़ा ग़ालिब हाज़िर हो]
*[http://mirzagalibatribute.blogspot.com/ मिर्ज़ा ग़ालिब]
*[http://mirzagalibatribute.blogspot.com/ मिर्ज़ा ग़ालिब]

Latest revision as of 14:13, 30 June 2017

ग़ालिब विषय सूची

thumb|250px|'दीवान-ए-ग़ालिब' का आवरण पृष्ठ ग़ालिब उर्दू-फ़ारसी के प्रख्यात कवि तथा महान् शायर थे। ग़ालिब ने अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया है। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है। दिल्ली में ससुर तथा उनके प्रतिष्ठित साथियों एवं मित्रों के काव्य प्रेम का इन पर अच्छा असर हुआ। इलाहीबख़्श ख़ाँ पवित्र एवं रहस्यवादी प्रेम से पूर्ण काव्य-रचना करते थे। वह पवित्र विचारों के आदमी थे। उनके यहाँ सूफ़ियों तथा शायरों का जमघट रहता था। निश्चय ही ग़ालिब पर इन गोष्ठियों का अच्छा असर पड़ा।

रचनाएँ

इनकी अन्य रचनाएँ 'लतायफे गैबी', 'दुरपशे कावेयानी', 'नामाए ग़ालिब', 'मेह्नीम' आदि गद्य में हैं। फ़ारसी के कुलियात में फ़ारसी कविताओं का संग्रह हैं। दस्तंब में इन्होंने 1857 ई. के बलवे का आँखों देखा विवरण फ़ारसी गद्य में लिखा हैं। ग़ालिब ने निम्न रचनाएँ भी की हैं-

  1. 'उर्दू-ए-हिन्दी'
  2. 'उर्दू-ए-मुअल्ला'
  3. 'नाम-ए-ग़ालिब'
  4. 'लतायफे गैबी'
  5. 'दुवपशे कावेयानी' आदि।

इनकी रचनाओं में देश की तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति का वर्णन हुआ है।

दीवान-ए-ग़ालिब

उनकी ख़ूबसूरत शायरी का संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' के रूप में 10 भागों में प्रकाशित हुआ है। जिसका अनेक स्वदेशी तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

ग़ालिब की शायरी संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' से कुछ पंक्तियाँ[1]

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

निकलना ख़ुल्द[2] से आदम[3] का सुनते आये थे, लेकिन
बहुत बेआबरू[4] हो कर तिरे कूचे[5] से हम निकले

हुई जिनसे तवक़्क़ो[6], ख़स्तगी[7] की दाद[8] पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्त-ए-तेग़े-सितम[9] निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़, जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल[10] है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।

ईमां[11] मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र[12]
काबा[13] मेरे पीछे है कलीसा[14] मेरे आगे।

गो हाथ को जुम्बिश[15] नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे।

काव्यशैली में परिवर्तन

मिर्ज़ा ग़ालिब ने फ़ारसी भाषा में कविता करना प्रारंभ किया था और इसी फ़ारसी कविता पर ही इन्हें सदा अभिमान रहा। परंतु यह देव की कृपा है कि, इनकी प्रसिद्धि, सम्मान तथा सर्वप्रियता का आधार इनका छोटा-सा उर्दू का ‘दीवान-ए- ग़ालिब’ ही है। इन्होंने जब उर्दू में कविता करना आरंभ किया, उसमें फ़ारसी शब्दावली तथा योजनाएँ इतनी भरी रहती थीं कि, वह अत्यंत क्लिष्ट हो जाती थी। इनके भावों के विशेष उलझे होने से इनके शेर पहेली बन जाते थे। अपने पूर्ववर्तियों से भिन्न एक नया मार्ग निकालने की धुन में यह नित्य नए प्रयोग कर रहे थे। किंतु इन्होंने शीघ्र ही समय की आवश्यकता को समझा और स्वयं ही अपनी काव्यशैली में परिवर्तन कर डाला तथा पहले की बहुत-सी कविताएँ नष्ट कर क्रमश: नई कविता में ऐसी सरलता ला दी कि, वह सबके समझने योग्य हो गई।

नए गद्य के प्रवर्तक

मिर्ज़ा ग़ालिब ने केवल कविता में ही नही, गद्यलेखन के लिये भी एक नया मार्ग निकाला था, जिस पर वर्तमान उर्दू गद्य की नींव रखी गई। सच तो यह है कि, ग़ालिब को नए गद्य का प्रवर्तक कहना चाहिए।' इनके दो पत्र-संग्रह, ‘उर्दु-ए-हिन्दी’ तथा ‘उर्दु-ए-मुअल्ला’ ऐसे ग्रंथ हैं कि, इनका उपयोग किए बिना आज कोई उर्दू गद्य लिखने का साहस नहीं कर सकता। इन पत्रों के द्वारा इन्होंने सरल उर्दू लिखने का ढंग निकाला और उसे फ़ारसी अरबी की क्लिष्ट शब्दावली तथा शैली से स्वतंत्र किया। इन पत्रों में तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विवरणों का अच्छा चित्र हैं। ग़ालिब की विनोदप्रियता भी इनमें दिखलाई पड़ती है। इनकी भाषा इतनी सरल, सुंदर तथा आकर्षक है कि, वैसी भाषा कोई उर्दू लेखक अब तक नहीं लिख सका। ग़ालिब की शैली इसलिये भी विशेष प्रिय है कि, उसमें अच्छाइयाँ भी हैं और कच्चाइयाँ भी, तथा पूर्णता और त्रुटियाँ भी हैं। यह पूर्णरूप से मनुष्य हैं और इसकी छाप इनके गद्य पद्य दोनों पर है।

बेहतरीन शायर

मिर्ज़ा असदउल्ला बेग ख़ान 'ग़ालिब' का स्थान उर्दू के चोटी के शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा। उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फ़ारसी के बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा अरब एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यन्त लोकप्रिय हुए। ग़ालिब की शायरी में एक तड़प, एक चाहत और एक आशिक़ाना अंदाज़ पाया जाता है। जो सहज ही पाठक के मन को छू लेता है।


left|30px|link=ग़ालिब का दौर|पीछे जाएँ ग़ालिब की रचनाएँ right|30px|link=ग़ालिब|आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आनन्द, कलीम दीवान-ए-ग़ालिब, तृतीय संस्करण 2009 (हिन्दी), मनोज पब्लिकेशंस, 110।
  2. स्वर्ग
  3. पहला मानव
  4. अपमानित
  5. गली
  6. आशा
  7. बिखरना
  8. प्रशंसा
  9. अत्याचार की तलवार से घायल
  10. बच्चों का खेल
  11. धर्म
  12. अधर्म
  13. मुस्लिम धर्म स्थल
  14. कलीसा
  15. हिलना

बाहरी कड़ियाँ

हिन्दी पाठ कड़ियाँ 
अंग्रेज़ी पाठ कड़ियाँ 
विडियो कड़ियाँ 
link=#top|center|ऊपर जायें


संबंधित लेख