बकासुर: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:54, 31 May 2016
[[चित्र:Bhima-And-Bakasura.jpg|thumb|300px|भीम और बकासुर]]
- पांचों पांडव तथा कुंती कौरवों से बचने के लिए एकचक्रा नामक नगरी में, छद्मवेश में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। वे लोग भिक्षा मांगकर अपना निर्वाह करते थे। उस नगरी के पास बक नामक एक असुर रहता था। एकचक्रा नगरी का शासक दुर्बल था, अत: वहां बकासुर का आतंक छा गया था। बकासुर शत्रुओं तथा हिंसक प्राणियों से नगरी की सुरक्षा करता था। तथा फलस्वरूप नगरवासियों ने यह नियत कर दिया था कि वहां के निवासी गृहस्थ बारी-बारी से उसके एक दिन के भोजन का प्रबंध करेंगे। बकासुर नरभक्षी था। उसको प्रतिदिन बीस खारी अगहनी के चावल, दो भैंसे तथा एक मनुष्य को आवश्यकता होती थी। उस दिन पांडवों के आश्रयदाता ब्राह्मण की बारी थी। उसके परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री थे। वे लोग निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको बकासुर के पास भेजा जाय। कुंती की प्रेरणा से ब्राह्मण के स्थान पर खाद्य सामग्री लेकर भीमसेन बकासुर के पास गया। पहले तो वह बक को चिढ़ाकर उसके लिए आयी हुई खाद्य सामग्री खाता रहा, फिर उससे द्वंद्व युद्ध कर भीम ने उसे मार डाला। भीमसेन ने उसके परिवारजनों से कहा कि वे लोग नर-मांस का परित्याग कर देंगे तो भीम उनको नहीं मारेगा। उन्होंने स्वीकार कर लिया। पांडवों ने उस ब्राह्मण से प्रतिज्ञा ले ली कि वह किसी पर यह प्रकट नहीं होने देगा कि बकासुर को भीमसेन ने मारा है। [1]
- बालसखाओं के साथ बलराम और कृष्ण जलाशय के तट पर पहुंचे। तट पर पर्वतवत एक बड़ा बगुला बैठा था। वह कंस का मित्र था। उसने कृष्ण को निगल लिया। उसके तालू में कृष्ण ने ऐसी जलन उत्पन्न की कि उसने तुरंत उसे उगल भी दिया। फिर चोंच से कठिन प्रहार करना ही चाहता था कि कृष्ण ने चोंच पकड़कर उसे चीर डाला। उसका संसार से उद्धार हो गया। वह बक नामक असुर था जो बगुले का रूप धर कर वहां गया था। [2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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