शकुनि

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:53, 31 May 2016 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "{{महाभारत2}}" to "")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

thumb|250|शकुनि चौसर खेलते हुए शकुनि महाभारत का मुख्य पात्र है। गांधारी का भाई है और दुर्योधन का मामा है। 'महाभारत' में शकुनि 'सुबलराज' के पुत्र, गान्धारी के भाई और कौरवों के मामा के रूप में चित्रित हुआ है। शकुनि प्रकृति से अत्यन्त दुष्ट था। दुर्योधन ने शकुनि को अपना मन्त्री नियुक्त कर लिया था। पाण्डवों को शकुनि ने अनेक कष्ट दिये। भीम ने इसे अनेक अवसरों पर परेशान किया। महाभारत युद्ध में सहदेव ने शकुनि का इसके पुत्र सहित वध कर दिया।

चारित्रिक विशेषताएँ

गान्धार राज सुबल का पुत्र और गान्धारी का भाई शकुनि जुआ खेलने में यह बहुत ही कुशल था। यह प्रायः धृतराष्ट्र के दरबार में बना रहता था। दुर्योधन की इससे बहुत पटती थी। युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच खेले गये जुए में शकुनि ने दुर्योधन की ओर से जुआ खेला था। यह ऐसा चतुर जुआरी था कि युधिष्ठिर को एक भी दाँव नहीं जीतने देता था। उनका सब कुछ इसने जीत लिया। छलिया भी अव्वल नम्बर का था। ज्यों-ज्यों युधिष्ठिर हारते जाते थे त्यों-त्यों यह उन्हें उकसाता और जो चीज़ें उनके पास रह गई थीं उन्हें दाँव पर लगाने को कहता था।

द्यूत कला में प्रवीण

गान्धारी जैसी पतिव्रता का भाई शकुनि जैसा हो, इसे एक विचित्र बात ही कहना चाहिए। इसने कभी दुर्योधन को ठीक सलाह नहीं दी। ठकुरसुहाती कहना खूब जानता था। इसी से दुर्योधन इसको बहुत मानता था। शकुनि पासों को मानो नचाता था। प्राचीन काल में द्यूत की गिनती कला में होती थी। राजा नल ने अपने भाई से हार जाने और बहुत कष्ट झेलने के बाद यह कला राजा ऋतुपर्ण से सीखी थी। वनवास के समय इस कला को युधिष्ठिर ने भी बृहदश्व से सीख लिया था।

राजनीतिक उद्देश्य

शकुनि का सदा हस्तिनापुर में बना रहना बतलाता है कि जिस राजनीतिक उद्देश्य से गान्धारी का विवाह धृतराष्ट्र से किया गया था। उसी की सिद्धि के लिए शकुनि को हस्तिनापुर में रखा जाता था। जान पड़ता है कि उस समय भी कन्दहार की ओर घोड़े बढ़िया होते और वहाँ के लोग घुड़सवारी में कुशल होते थे। शकुनि का अपने भानजों की भलाई के लिए प्रयत्न करना अनुचित नहीं कहा जा सकता। अपने रिश्तेदारों को लाभ पहुँचाने की चेष्टा कौन नहीं करता? पर उस चेष्टा को थोड़ा-बहुत धर्म और न्याय का भी तो आश्रय होना चाहिए। पाण्डवों ने शकुनि का कुछ नहीं बिगाड़ा था, इसलिए उसे कुछ उनका भी लिहाज़ करना चाहिए था। आखिर वे भी तो उनके भानजे ही होते थे। यदि वह अपने भानजों का सच्चा हितचिंतक था तो उसे ऐसा रास्ता पकड़ना चाहिए था जिसमें कौरवों का भला हो जाता, पर पाण्डवों का सर्वनाश न होता। महाभारत के पात्रों में शकुनि के काम नीचता-पूर्ण ही दीख पड़ते थे। उसने एक भी अच्छा काम नहीं किया। कौरवों-पाण्डवों के गृह-कलह का बहुत कुछ उत्तरदायित्व उसी पर है। यदि वह दुर्योधन की ओर पासे न फेंकता तो फिर खेल खत्म था। कौरवों में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य आदि इसे महत्त्व नहीं दिया। दुर्योधन को तो इसकी अक्षविद्या का भरोसा आधे युद्ध तक बना रहा। उसने द्रोणाचार्य से युधिष्ठिर को पकड़कर ला देने की प्रार्थना की थी। वह चाहता था कि युधिष्ठिर पकड़ लिये जाएँ तो उनको शकुनि मामा फिर जुए में जीतकर वनवास को भेज दे और युद्ध समाप्त हो जाए। शायद उसे पता नहीं था कि अब युधिष्ठिर भी बृहदश्व से अक्षविद्या सीखकर कुशल जुआरी हो गये हैं। जहाँ पर साले की अथवा मामा की तूती बोलती है वहाँ बंटाढार हो जाता है। कहा भी है -

श्यालको गृहनाशय, सर्वनाशाय मातुलः।

महाभारत के युद्ध में शकुनि, उसके भाई और पुत्र आदि सभी मारे गये। शकुनि को सहदेव ने मार गिराया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः