नकुल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m ("नकुल" असुरक्षित कर दिया)
m (Text replacement - "{{महाभारत2}}" to "")
 
(8 intermediate revisions by 5 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पात्र परिचय
{{पात्र परिचय
|चित्र=blankimage.gif
|चित्र=blankimage.png
|वंश-गोत्र=[[चंद्रवंश]]
|वंश-गोत्र=[[चंद्रवंश]]
|कुल=यदुकुल
|कुल=यदुकुल
Line 15: Line 15:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
{{Incomplete}}<br />
'''नकुल''' पाँच [[पांडव|पांडवों]] में से एक थे। पांडवों में नकुल और [[सहदेव]], दोनों [[माद्री|माता माद्री]] के असमान जुड़वा पुत्र थे, जिनका जन्म दैवीय चिकित्सकों '[[अश्विनीकुमार]]' के वरदान स्वरूप हुआ था, जो स्वयं भी समान जुड़वा बंधु थे।
*[[महाभारत]] के मुख्य पात्र हैं।
 
*नकुल [[कुन्ती]] के नहीं अपितु [[माद्री]] के पुत्र थे।  
*'नकुल' का अर्थ है- "परम विद्वता"। [[महाभारत]] में नकुल का चित्रण एक बहुत ही रूपवान, प्रेमयुक्त और बहुत सुंदर व्यक्ति के रूप में हुआ है। अपनी सुंदरता के कारण नकुल की तुलना 'काम' और 'प्रेम' के देवता कामदेव से की गई है।
*नकुल कुशल अश्वारोही था और घोड़ों के संबन्ध में विशेष ज्ञान रखता था।
*अन्य राजकुमारों के समान ही नकुल ने भी [[द्रोणाचार्य]] से शिक्षा ली थी। यह अश्व विद्या में विशेष निपुण थे।
*[[युधिष्ठिर]] के चतुर्थ भ्राता, [[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] के औरस और [[पाण्डु]] के क्षेत्रज पुत्र।
*ये [[युधिष्ठिर]] के चतुर्थ भ्राता, [[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] के औरस और [[पाण्डु]] के क्षेत्रज पुत्र थे।
*इनकी माता का नाम माद्री था।
*नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे।
*इनके सहोदर का नाम [[सहदेव]] था।
*[[अज्ञातवास]] में नकुल [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से [[गाय]] चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे।  
*नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे।  
*[[द्रौपदी]] से इनका भी [[विवाह]] हुआ था। इनकी स्त्री करेणुमती, चेदिराज की कन्या थी।
*अज्ञातवास में ये [[विराट]] के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से गाय चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे।  
*'निरमित्र' और 'शतानीक' नामक इनके दो पुत्र थे।
*इनकी स्त्री करेणुमती, चेदिराज की कन्या थीं।
*नकुल को अभिमान था कि एकमात्र मैं ही सबसे अधिक रूपवान हूँ। इसलिए 'महाप्रस्थान' के समय वे मार्ग में स्वर्ग जाते समय धराशायी हो गए।
*निरमित्र और शतानीक नामक इनके दो पुत्र थे।
 
==मृत्यु==
नकुल को अभिमान था कि एकमात्र मैं ही सबसे अधिक रूपवान हूँ। इसलिए वे मार्ग में स्वर्ग जाते समय धराशायी हो गए।
{| width="100%"
{| width="100%"
|-
|-
|
|
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|-
|
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
|-
|
{{महाभारत}}
{{महाभारत}}
|}
{{पौराणिक चरित्र}}  
{{महाभारत2}}
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:महाभारत]]
[[Category:महाभारत]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:53, 31 May 2016

संक्षिप्त परिचय
नकुल
वंश-गोत्र चंद्रवंश
कुल यदुकुल
पिता पाण्डु
माता माद्री, कुन्ती(विमाता)
जन्म विवरण अश्विनी कुमारों के वरदान से प्राप्त पुत्र नकुल
समय-काल महाभारत काल
परिजन भाई युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, सहदेव, कर्ण
विवाह द्रौपदी, करेणुमती
संतान द्रौपदी से शतानीक और करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई।
महाजनपद कुरु
शासन-राज्य हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ
संबंधित लेख महाभारत

नकुल पाँच पांडवों में से एक थे। पांडवों में नकुल और सहदेव, दोनों माता माद्री के असमान जुड़वा पुत्र थे, जिनका जन्म दैवीय चिकित्सकों 'अश्विनीकुमार' के वरदान स्वरूप हुआ था, जो स्वयं भी समान जुड़वा बंधु थे।

  • 'नकुल' का अर्थ है- "परम विद्वता"। महाभारत में नकुल का चित्रण एक बहुत ही रूपवान, प्रेमयुक्त और बहुत सुंदर व्यक्ति के रूप में हुआ है। अपनी सुंदरता के कारण नकुल की तुलना 'काम' और 'प्रेम' के देवता कामदेव से की गई है।
  • अन्य राजकुमारों के समान ही नकुल ने भी द्रोणाचार्य से शिक्षा ली थी। यह अश्व विद्या में विशेष निपुण थे।
  • ये युधिष्ठिर के चतुर्थ भ्राता, अश्विनीकुमारों के औरस और पाण्डु के क्षेत्रज पुत्र थे।
  • नकुल सुन्दर, धर्मशास्त्र, नीति तथा पशु-चिकित्सा में दक्ष थे।
  • अज्ञातवास में नकुल विराट के यहाँ 'ग्रंथिक' नाम से गाय चराने और घोड़ों की देखभाल का कार्य करते रहे थे।
  • द्रौपदी से इनका भी विवाह हुआ था। इनकी स्त्री करेणुमती, चेदिराज की कन्या थी।
  • 'निरमित्र' और 'शतानीक' नामक इनके दो पुत्र थे।
  • नकुल को अभिमान था कि एकमात्र मैं ही सबसे अधिक रूपवान हूँ। इसलिए 'महाप्रस्थान' के समय वे मार्ग में स्वर्ग जाते समय धराशायी हो गए।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख