माद्री: Difference between revisions

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'''माद्री''' [[महाभारत]] की एक पात्र है। महीपाल [[शल्य]] की बहन माद्री का विवाह [[पाण्डु]] के साथ हुआ था। यह उनकी दूसरी रानी थी। [[पंजाब]] का, [[रावी नदी|रावी]] और [[चिनाब नदी|चिनाब]] के बीच का, भूभाग ही 'मद्रदेश' है। माद्री का वास्तविक नाम नहीं मिलता। माद्री का अर्थ है- 'मद्र देश की'। यह बड़ी सुन्दरी थी। इसको प्राप्त करने के लिए शल्य के पास स्वयं [[भीष्म]] गये थे। और उन्हें बहुत-सा सुवर्ण, आभूषण, रत्न, [[हाथी]] - घोड़े, मणि - मोती और वस्त्र आदि देकर माद्री को [[हस्तिनापुर]] ले गये थे। वहीं पर विवाह-संस्कार हुआ था। कुछ समय माद्री ने बड़ा सुख पाया। इसके बाद एक दुर्घटना हो गई। राजा पाण्डु ने वन में रमण करते हुए मृग के जोड़े पर [[बाण]] छोड़ दिया। असल में वह 'किन्दम' नाम का मुनि था, जो मृग बनकर अपनी स्त्री के साथ विहार कर रहा था। उसने मरते समय पाण्डु को यह शाप दे दिया कि जिस समय तुम स्त्री से सहवास करना चाहोगे उसी समय मर जाओगे।  
'''माद्री''' [[महाभारत]] की एक पात्र है। महीपाल [[शल्य]] की बहन माद्री का विवाह [[पाण्डु]] के साथ हुआ था। यह उनकी दूसरी रानी थी। [[पंजाब]] का, [[रावी नदी|रावी]] और [[चिनाब नदी|चिनाब]] के बीच का, भूभाग ही 'मद्रदेश' है। माद्री का वास्तविक नाम नहीं मिलता। माद्री का अर्थ है- 'मद्र देश की'। यह बड़ी सुन्दरी थी। इसको प्राप्त करने के लिए शल्य के पास स्वयं [[भीष्म]] गये थे। मद्रराज के यहाँ बिना शुल्क लिये बेटी ब्याहने का दस्तूर नहीं था। इस बात को शल्य ने साफ़-साफ़ कह दिया और भीष्म ने भी उनके आचरण को बुरा नहीं बतलाया, उलटे प्रशंसा ही की है। इसके लिए वे पहले से ही तैयार भी थे। तभी तो उनकी भेंट करने को तरह-तरह की पचासों चीज़ें साथ ले गये थे। भीष्म ने उन्हें बहुत-सा सुवर्ण, आभूषण, रत्न, [[हाथी]] - घोड़े, मणि - मोती और वस्त्र आदि देकर माद्री को [[हस्तिनापुर]] ले गये थे। वहीं पर विवाह-संस्कार हुआ था। कुछ समय माद्री ने बड़ा सुख पाया। इसके बाद एक दुर्घटना हो गई। राजा पाण्डु ने वन में रमण करते हुए मृग के जोड़े पर [[बाण]] छोड़ दिया। असल में वह 'किन्दम' नाम का मुनि था, जो मृग बनकर अपनी स्त्री के साथ विहार कर रहा था। उसने मरते समय पाण्डु को यह शाप दे दिया कि जिस समय तुम स्त्री से सहवास करना चाहोगे उसी समय मर जाओगे।  
==पाण्डु का दुख==
==पाण्डु का दुख==
इस शाप के कारण राजा पाण्डु बड़े दुखी रहते थे। दो-दो रानियों के रहते भी वे स्त्री सहवास के सुख से वंचित थे। इस कारण से राज-पाट छोड़-छाड़कर वन में तपस्वी का जीवन बिताने लगे। वहाँ [[कुंती]] ने एक विद्या के प्रभाव से तीन [[देवता|देवताओं]] को बुलाकर उनके द्वारा तीन पुत्र उत्पन्न कर लिये। इसके लिए पाण्डु ने उससे बार-बार अनुरोध किया था। यह देखकर एक बार माद्री ने एकांत में पाण्डु से प्रार्थना की कि यदि कुंती मेरे लिए भी जननी बनने का प्रबन्ध कर दे तो मेरी इच्छा पूरी हो जाय। पाण्डु के कहने पर कुंती ने माद्री से कहा कि तू जिस [[देवता]] को बुलाना चाहे उसका ध्यान कर, मैं मंत्र पढ़ती हूँ। माद्री ने [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमारों]] का ध्यान किया। उन देवताओं से संयोग से उसके दो (यमज) पुत्र - [[नकुल]] और [[सहदेव]] हुए।  
इस शाप के कारण राजा पाण्डु बड़े दुखी रहते थे। दो-दो रानियों के रहते भी वे स्त्री सहवास के सुख से वंचित थे। इस कारण से राज-पाट छोड़-छाड़कर वन में तपस्वी का जीवन बिताने लगे। वहाँ [[कुंती]] ने एक विद्या के प्रभाव से तीन [[देवता|देवताओं]] को बुलाकर उनके द्वारा तीन पुत्र उत्पन्न कर लिये। इसके लिए पाण्डु ने उससे बार-बार अनुरोध किया था। यह देखकर एक बार माद्री ने एकांत में पाण्डु से प्रार्थना की कि यदि कुंती मेरे लिए भी जननी बनने का प्रबन्ध कर दे तो मेरी इच्छा पूरी हो जाय। पाण्डु के कहने पर कुंती ने माद्री से कहा कि तू जिस [[देवता]] को बुलाना चाहे उसका ध्यान कर, मैं मंत्र पढ़ती हूँ। माद्री ने [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमारों]] का ध्यान किया। उन देवताओं से संयोग से उसके दो (यमज) पुत्र - [[नकुल]] और [[सहदेव]] हुए।  

Revision as of 09:47, 9 April 2012

माद्री महाभारत की एक पात्र है। महीपाल शल्य की बहन माद्री का विवाह पाण्डु के साथ हुआ था। यह उनकी दूसरी रानी थी। पंजाब का, रावी और चिनाब के बीच का, भूभाग ही 'मद्रदेश' है। माद्री का वास्तविक नाम नहीं मिलता। माद्री का अर्थ है- 'मद्र देश की'। यह बड़ी सुन्दरी थी। इसको प्राप्त करने के लिए शल्य के पास स्वयं भीष्म गये थे। मद्रराज के यहाँ बिना शुल्क लिये बेटी ब्याहने का दस्तूर नहीं था। इस बात को शल्य ने साफ़-साफ़ कह दिया और भीष्म ने भी उनके आचरण को बुरा नहीं बतलाया, उलटे प्रशंसा ही की है। इसके लिए वे पहले से ही तैयार भी थे। तभी तो उनकी भेंट करने को तरह-तरह की पचासों चीज़ें साथ ले गये थे। भीष्म ने उन्हें बहुत-सा सुवर्ण, आभूषण, रत्न, हाथी - घोड़े, मणि - मोती और वस्त्र आदि देकर माद्री को हस्तिनापुर ले गये थे। वहीं पर विवाह-संस्कार हुआ था। कुछ समय माद्री ने बड़ा सुख पाया। इसके बाद एक दुर्घटना हो गई। राजा पाण्डु ने वन में रमण करते हुए मृग के जोड़े पर बाण छोड़ दिया। असल में वह 'किन्दम' नाम का मुनि था, जो मृग बनकर अपनी स्त्री के साथ विहार कर रहा था। उसने मरते समय पाण्डु को यह शाप दे दिया कि जिस समय तुम स्त्री से सहवास करना चाहोगे उसी समय मर जाओगे।

पाण्डु का दुख

इस शाप के कारण राजा पाण्डु बड़े दुखी रहते थे। दो-दो रानियों के रहते भी वे स्त्री सहवास के सुख से वंचित थे। इस कारण से राज-पाट छोड़-छाड़कर वन में तपस्वी का जीवन बिताने लगे। वहाँ कुंती ने एक विद्या के प्रभाव से तीन देवताओं को बुलाकर उनके द्वारा तीन पुत्र उत्पन्न कर लिये। इसके लिए पाण्डु ने उससे बार-बार अनुरोध किया था। यह देखकर एक बार माद्री ने एकांत में पाण्डु से प्रार्थना की कि यदि कुंती मेरे लिए भी जननी बनने का प्रबन्ध कर दे तो मेरी इच्छा पूरी हो जाय। पाण्डु के कहने पर कुंती ने माद्री से कहा कि तू जिस देवता को बुलाना चाहे उसका ध्यान कर, मैं मंत्र पढ़ती हूँ। माद्री ने अश्विनी कुमारों का ध्यान किया। उन देवताओं से संयोग से उसके दो (यमज) पुत्र - नकुल और सहदेव हुए।

पाण्डु के सती हो जाना

वन में एक बार राजा पाण्डु वसंत ऋतु में माद्री को एकांत में पा उसकी सुन्दरता पर रीझ-उसके बार-बार ऋषि के शाप की याद दिला-दिलाकर रोकने पर भी उससे लिपट गये। इस घटना के होते ही उनके प्राण-पखेरू उड़ गये। माद्री रोती-चिल्लाती रह गई। रोना- चिल्लाना सुनकर वहाँ कुंती पहुँची। उन्होंने इस काम के लिए माद्री की भर्त्सना की। पर उस बेचारी का क्या अपराध था? अंत में वह पाण्डु के साथ सती हुई, दूसरी बात यह है कि आप जिस प्रकार बिना पक्षपात के बच्चों का पालन कर लेंगी उस प्रकार कदाचित मैं न कर सकूँ, इससे मैं अपने बच्चे आप ही को सौंपकर सुख से मर सकूँगी।

कुंती और माद्री

कुंती और माद्री के बीच कैसा क्या पारस्परिक बर्ताव था, इसका विशेष विवरण नहीं मिलता। शाप लगने से पति उदास बना रहता था। उसी चिंता दोनों को रहती थी फिर कुंती की कृपा से संतान-प्राप्ति होने के कारण माद्री उनके निकट कृतज्ञता-पाश में बँधी हुई थी। इसके सिवा कुंती में पक्षपात नहीं था। वे अपने और माद्री के बेटों के साथ एक-सा बर्ताव करती थीं। इसी भरोसे पर माद्री को अपने बालक कुंती को सौंपने में रत्ती-भर भी दुविधा नहीं हुई।

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