राधा (अधिरथ पत्नी): Difference between revisions

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*[[महाभारत वन पर्व]] के अनुसार राधा को कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उसने अनेक यत्न किए थे।
*[[महाभारत वन पर्व]] के अनुसार राधा को कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उसने अनेक यत्न किए थे।
*एक दिन [[गंगा|गंगा जी]] के तट पर [[अधिरथ]] को एक बालक पिटारी में बहता हुआ मिला था।
*एक दिन [[गंगा|गंगा जी]] के तट पर [[अधिरथ]] को एक बालक पिटारी में बहता हुआ मिला था।
*वह बालक प्रातःकालीन [[सूर्य]] के समान तेजस्वी था। उसने अपने अंगों में स्वर्णमय कवच धारण कर रक्खा था। उसका मुख कानों में पड़े हुए दो उज्जवल कुण्डलों से प्रकाशित हो रहा था।  
*वह बालक प्रातःकालीन [[सूर्य]] के समान तेजस्वी था। उसने अपने अंगों में स्वर्णमय कवच धारण कर रक्खा था। उसका मुख कानों में पड़े हुए दो उज्ज्वल कुण्डलों से प्रकाशित हो रहा था।  
*उस बालक को देखकर पत्नी सहित सूत के नेत्रकमल आश्चर्य एवं प्रसन्नता के खिल उठे। उसने बालक को गोद में लेकर अपनी पत्नी से कहा- ‘भीरु ! भाविनी ! जब से मैं पैदा हुआ हूँ, तब से आज ही मैंने ऐसा अद्भुत बालक देखा है। मैं समझता हूँ, यह कोई देवबालक ही हमें भाग्यवश प्राप्त हुआ है। मुझ पुत्रहीन को अवश्य ही [[देवता|देवताओं]] ने दया करके यह पुत्र प्रदान किया है।'
*उस बालक को देखकर पत्नी सहित सूत के नेत्रकमल आश्चर्य एवं प्रसन्नता के खिल उठे। उसने बालक को गोद में लेकर अपनी पत्नी से कहा- ‘भीरु ! भाविनी ! जब से मैं पैदा हुआ हूँ, तब से आज ही मैंने ऐसा अद्भुत बालक देखा है। मैं समझता हूँ, यह कोई देवबालक ही हमें भाग्यवश प्राप्त हुआ है। मुझ पुत्रहीन को अवश्य ही [[देवता|देवताओं]] ने दया करके यह पुत्र प्रदान किया है।'
*ऐसा कहकर [[अधिरथ]] ने वह पुत्र राधा को दे दिया। राधा ने भी कमल के भीतरी भाग के समान कान्तिमान, शोभाशाली  तथा दिव्यरूपधारी उस देवबालक को विघिपूर्वक ग्रहण किया। निश्चय ही दैव की प्रेरणा से राधा के स्तनों से दूध भी झरने लगा। उसने विधिपूर्वक उस बालक का पालन-पोषण किया और उसका नाम [[कर्ण]] रखा।
*ऐसा कहकर [[अधिरथ]] ने वह पुत्र राधा को दे दिया। राधा ने भी कमल के भीतरी भाग के समान कान्तिमान, शोभाशाली  तथा दिव्यरूपधारी उस देवबालक को विघिपूर्वक ग्रहण किया। निश्चय ही दैव की प्रेरणा से राधा के स्तनों से दूध भी झरने लगा। उसने विधिपूर्वक उस बालक का पालन-पोषण किया और उसका नाम [[कर्ण]] रखा।

Latest revision as of 13:55, 29 October 2017

[[चित्र:Radha-and-Adhirath.jpg|thumb|शिशु कर्ण का राधा तथा अधिरथ को मिलना]]


चित्र:Disamb2.jpg राधा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- राधा (बहुविकल्पी)

राधा हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत के उल्लेखानुसार अधिरथ की पत्नी तथा कर्ण की माता थी।

  • महाभारत वन पर्व के अनुसार राधा को कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उसने अनेक यत्न किए थे।
  • एक दिन गंगा जी के तट पर अधिरथ को एक बालक पिटारी में बहता हुआ मिला था।
  • वह बालक प्रातःकालीन सूर्य के समान तेजस्वी था। उसने अपने अंगों में स्वर्णमय कवच धारण कर रक्खा था। उसका मुख कानों में पड़े हुए दो उज्ज्वल कुण्डलों से प्रकाशित हो रहा था।
  • उस बालक को देखकर पत्नी सहित सूत के नेत्रकमल आश्चर्य एवं प्रसन्नता के खिल उठे। उसने बालक को गोद में लेकर अपनी पत्नी से कहा- ‘भीरु ! भाविनी ! जब से मैं पैदा हुआ हूँ, तब से आज ही मैंने ऐसा अद्भुत बालक देखा है। मैं समझता हूँ, यह कोई देवबालक ही हमें भाग्यवश प्राप्त हुआ है। मुझ पुत्रहीन को अवश्य ही देवताओं ने दया करके यह पुत्र प्रदान किया है।'
  • ऐसा कहकर अधिरथ ने वह पुत्र राधा को दे दिया। राधा ने भी कमल के भीतरी भाग के समान कान्तिमान, शोभाशाली तथा दिव्यरूपधारी उस देवबालक को विघिपूर्वक ग्रहण किया। निश्चय ही दैव की प्रेरणा से राधा के स्तनों से दूध भी झरने लगा। उसने विधिपूर्वक उस बालक का पालन-पोषण किया और उसका नाम कर्ण रखा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत वन पर्व |लेखक: साहित्याचार्य पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री पाण्डेय 'राम' |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 1815-1816 |


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