अर्जुन
अर्जुन
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अन्य नाम | पार्थ, सव्यसाची, धनंजय, भारत, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, अजानबाहो |
अवतार | इन्द्र का अंशावतार |
वंश-गोत्र | चंद्रवंश |
कुल | यदुकुल |
पिता | पाण्डु |
माता | कुन्ती, माद्री(विमाता) |
जन्म विवरण | कुन्ती द्वारा इन्द्र का आवाहन करने से प्राप्त पुत्र अर्जुन |
समय-काल | महाभारत काल |
परिजन | भाई युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव, कर्ण |
गुरु | द्रोणाचार्य |
विवाह | द्रौपदी, सुभद्रा, उलूपी, चित्रांगदा, |
संतान | द्रौपदी से श्रुतकर्मा और सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। |
विद्या पारंगत | धनुर्विद्या में पारंगत |
महाजनपद | कुरु |
शासन-राज्य | हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ |
मृत्यु | "मैं एक ही दिन में शत्रुओं को भस्म कर डालूँगा" किन्तु ऐसा किया नहीं, इसी कारण इनकी मृत्यु स्वर्ग जाते समय मार्ग में हो गई। |
संबंधित लेख | महाभारत |
अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरा पुत्र और सबसे अच्छा तीरंदाज था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। जीवन में अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। पांडु की ज्येष्ठ पत्नी वासुदेव कृष्ण की बुआ कुंती थी जिसने इन्द्र के संसर्ग से अर्जुन को जन्म दिया। कुंती का एक नाम पृथा था, इसलिए अर्जुन 'पार्थ' भी कहलाए। बाएं हाथ से भी धनुष चलाने के कारण 'सव्यसाची' और उत्तरी प्रदेशों को जीतकर अतुल संपत्ति प्राप्त करने के कारण 'धनंजय' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
thumb|250px|अर्जुन
Arjuna|left अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इन्द्र से हुए।
जीवन परिचय
जब पाण्डु संतान उत्पन्न करने में असफल रहे तो कुन्ती ने उनको एक वरदान के बारे में याद दिलाया। कुन्ती को कुंआरेपन में महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थीं और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुन्ती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया। इस प्रकार अर्जुन इन्द्र के पुत्र थे।
शस्त्र शिक्षा
द्रोणाचार्य के ये प्रिय शिष्य थे। परशुराम से भी इन्होंने शास्त्रास्त्र विद्या सीखी थी। हिमालय में तपस्या करते समय किरात वेशधारी शिव से इनका युद्ध हुआ था। शिव से इन्हें पाशुपत अस्त्र और अग्नि से आग्नेयास्त्र, गांडीव धनुष तथा अक्षय तुणीर प्राप्त हुआ। वरुण ने इनको नंदिघोष नामक विशाल रथ प्रदान किया। द्रोणाचार्य एक बार शिष्यों के साथ गंगा नहाने गये। ज्यों ही वे जल में उतरे त्यों ही मगर ने उनकी टाँग पकड़ ली। द्रोणाचार्य ने अपने छात्रों की जाँच करने के लिए आवाज़ लगाई कि, "तुम लोग मुझे इस मगर से बचाओ।" अन्य छात्र तो घबराहट के मारे एक-दूसरे की ओर ताकते रह गये, किंतु अर्जुन ने पानी के भीतर डूबे हुए मगर को पाँच बाण मारकर मार डाला और आचार्य की टाँग पर आँच तक न आने दी। इससे प्रसन्न हुए आचार्य ने अर्जुन को प्रयोग और उपसंहार सहित ब्रह्मशिर अस्त्र सिखला दिया।
श्रीकृष्ण का सारथ्य
श्रीकृष्ण के सारथ्य के विषय में एक घटना का उल्लेख इस प्रकार है कि अर्जुन और कर्ण का घमासान युद्ध हो रहा था। वे दोनों एक-दूसरे के अस्त्रों को काट-काटकर अपने अस्त्रज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे। अंत में जब कर्ण की एक भी न चली तब उसने वह बाण निकाला जो सर्प के विष से सुझाया गया था। और चन्दन के बुरादे में रखा रहता था। इसे उसने सुवर्ण के तरकस में अलग रख छोड़ा था। अर्जुन का सिर काटने के लिए इसी को उसने धनुष पर चढ़ाकर ठीक निशाने पर मार दिया और चिल्लाकर कहा कि अर्जुन मारा गया। उस प्रदीप्त बाण को आते देख श्रीकृष्ण ने चटपट लगाम खींचकर घोड़ों को बिठा दिया, जिससे रथ के कुछ नीचे हो जाने से बाण निशाने पर न लगकर अर्जुन के मुकुट को गिराकर निकल गया। अब, अर्जुन ने अपने सफ़ेद दुपट्टे से अलकों को बाँध लिया और श्रीकृष्ण ने लगाम के इशारे से घोड़ों को खड़ा करके झुके हुए रथ को अपनी भुजाओं से उठाकर पहले का जैसा कर लिया। यदि श्रीकृष्ण ने फुर्ती से यह काम न किया होता तो अर्जुन का जीवित बचना कठिन था।
मुख्य बिन्दु
- इन्द्रपुरी में अप्सरा उर्वशी अर्जुन पर मोहित हो गई थी। पर उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहकर बृहन्नला के रूप में विराट की कन्या उत्तरा को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी थी।
- नागकन्या उलूपी से इन्हें इरावत नामक पुत्र प्राप्त हुआ।
- मणिपुर के राजा की कन्या चित्रांगदा से विवाह करके उससे बभ्रुवाहन को जन्म दिया।
- श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा भी अर्जुन की पत्नी थी। जिसके गर्भ से अभिमन्यु पैदा हुआ।
- स्वयंवर में द्रौपदी को जीतने वाले लक्ष्य भेदी के रूप में तो अर्जुन की ख्याति है ही।
- महाभारत युद्ध में कृष्ण अर्जुन के सारथी थे। युद्ध के आरंभ में अपने ही बंधु-बांधवों को प्रतिपक्ष में देखकर अर्जुन मोहाच्छन्न हो गए थे। तब श्रीकृष्ण ने गीता का संदेश देकर उन्हें कर्त्तव्य-पथ पर लगाया।
- महाभारत में पांडवों की विजय का बहुत कुछ श्रेय अर्जुन को है। महाभारत युद्ध के बाद भी अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।
- आधुनिक युग में भारत सरकार द्वारा पराक्रमी अर्जुन के नाम पर ही श्रेष्ठ खिलाड़ियों को प्रतिवर्ष 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है।
[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|thumb|left|महाभारत के युद्ध में अर्जुन को समझाते हुये श्रीकृष्ण]] |
[[चित्र:Vishnu-In-A-Chariot-With-Arjuna.jpg|thumb|250px|left|रथ पर विष्णु और अर्जुन]] |
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