आज़ाद: Difference between revisions
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''''सुखनदाने -''' फार्स', 'निगारिस्ताने-फार्स', 'आबे-हयात', 'नैरंगेख़याल', 'दरबारे-अकबरी', 'कससे-हिंद', 'कायनाते-अरब', 'जानवरिस्तान', 'नज्में आज़ाद' इत्यादि।<ref>सं.ग्रं.-पंडित कैफी: मनशूरात; जहाँ बानू : मुहम्मद हुसेन आज़ाद; मुहम्मद यहया तन्हा: यिरूल-मुसन्नफीन; हामिद हसन कादिरो: दास्तान-तारीखे-उर्दू; अब्दुल्ला, | ''''सुखनदाने -''' फार्स', 'निगारिस्ताने-फार्स', 'आबे-हयात', 'नैरंगेख़याल', 'दरबारे-अकबरी', 'कससे-हिंद', 'कायनाते-अरब', 'जानवरिस्तान', 'नज्में आज़ाद' इत्यादि।<ref>सं.ग्रं.-पंडित कैफी: मनशूरात; जहाँ बानू : मुहम्मद हुसेन आज़ाद; मुहम्मद यहया तन्हा: यिरूल-मुसन्नफीन; हामिद हसन कादिरो: दास्तान-तारीखे-उर्दू; अब्दुल्ला, डॉ.एस.एन.: स्पिरिट ऐंड सब्स्टैंस ऑव उर्दू प्रोज़ अंडर दि इन्फ्लुएँस ऑव सर सैयद।</ref> | ||
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आज़ाद, शमशुल उलमा मौलाना मुहम्मद हुसने (1823-1910 ई.) मौलाना सैयद मुहम्मद बाकर दिल्ली के एक बहुत बड़े विद्वान् और धार्मिक नेता थे जिन्होंने उर्दू अखबार के नाम से 1836 ई. में पहला गंभीर उर्दू समाचार पत्र निकाला। इस पत्रिका में अंग्रेजों के विरोध में विचार प्रकट किए जाते थे। 1847 ई. के आंदोलन में अवसर मिलते ही अंग्रेजों ने मौलाना बाक़र को गोली से उड़ा दिया। आज़ाद उन्हीं के पुत्र थे। पिता ने पुत्र को फ़ारसी, अरबी, पढ़ाई, दिल्ली कालेज में पढ़ने के लिए भेजा, प्रेस का काम सिखाया तथा कविता और भाषा के मर्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए उस समय के प्रसिद्ध कवि शेख मुहम्मद इब्राहिम 'जौक़' के हाथ में सौंप दिया। पिता ने इस प्रकार आज़ाद को ऐसा बना दिया था कि वह संसार में अपनी जगह बना सकें, परंतु 1857 के आंदोलन ने इन्हें बेघर कर दिया और कई वर्ष तक ये लखनऊ, मद्रास और बंबई में मारे मारे फिरते रहे। छोटी छोटी नौकरियाँ की, और मध्य एशिया भी हो आए। 1869 ई. में लाहौर गवर्नमेंट कालेज में अरबी के अध्यापक नियुक्त हुए और वहीं कुछ अंग्रेज और हिंदुस्तानी विद्वानों के साथ मिलकर अंजुमने पंजाब बनाई जिससे नई प्रकार की कविताएँ लिखने की परंपरा आरंभ हुई। 1874 ई. में लाहौर में जो नए मुशायरे हुए उनमें ख्वाजा 'हालो' ने भी भाग लिया और वास्तव में उसी समय से आधुनिक उर्दू साहित्य का विकास आरंभ हुआ। 1885 ई. में 'आज़ाद' ने ईरान की यात्रा की और जब वहाँ से लौटे तब अपना सारा समय और सारी शक्ति साहित्यरचना में लगाने के लिए नौकरी से भी अलग हो गए। 1888 ई. में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई कि आज़ाद की मानसिक दशा बिगड़ने लगी ओर दो एक वर्ष बाद वे बिलकुल पागल हो गए। इसमें भी जब कभी मौज आ जाती, लिखने पढ़ने में लग जाते। 1909 में इनका स्वास्थ्य एकदम नष्ट हो गया और 22 जनवरी, 1910 ई. को ए परलोक सिधार गए।[1]
अपने विस्तृत ज्ञान के सुंदर भावपूर्ण शैली और नवीन विचारो के कारण आज़ाद वर्तमान साहित्य के जन्मदाताओं में गिने जाते हैं। उनकी अनेक रचनाओं में से निम्नलिखित विशेष प्रसिद्ध हैं:
'सुखनदाने - फार्स', 'निगारिस्ताने-फार्स', 'आबे-हयात', 'नैरंगेख़याल', 'दरबारे-अकबरी', 'कससे-हिंद', 'कायनाते-अरब', 'जानवरिस्तान', 'नज्में आज़ाद' इत्यादि।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 361 |
- ↑ सं.ग्रं.-पंडित कैफी: मनशूरात; जहाँ बानू : मुहम्मद हुसेन आज़ाद; मुहम्मद यहया तन्हा: यिरूल-मुसन्नफीन; हामिद हसन कादिरो: दास्तान-तारीखे-उर्दू; अब्दुल्ला, डॉ.एस.एन.: स्पिरिट ऐंड सब्स्टैंस ऑव उर्दू प्रोज़ अंडर दि इन्फ्लुएँस ऑव सर सैयद।
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