एस.एल. भयरप्पा: Difference between revisions

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*'''सांतेशिवारा लिंगणय्या भैरप्पा''' (एस.एल. भयरप्पा) [[कन्नड़ भाषा]] के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार हैं।  
*'''सांतेशिवारा लिंगणय्या भैरप्पा''' (एस.एल. भयरप्पा) [[कन्नड़ भाषा]] के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार हैं।  
*[[मैसूर]], [[कर्नाटक]] के छोटे से गाँव में [[20 अगस्त]], [[1931]] को जन्मे भयरप्पा के अभी तक 22 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनका पहला उपन्यास 'भीमकाया' 1959 में प्रकाशित हुआ।  
*[[मैसूर]], [[कर्नाटक]] के छोटे से गाँव में [[20 अगस्त]], [[1931]] को जन्मे भयरप्पा के अभी तक 22 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनका पहला उपन्यास 'भीमकाया' 1959 में प्रकाशित हुआ।  
*'एसएल भयरप्पा के उपन्यास 'मंद्र' को [[2010]] के 20 वें [[सरस्वती सम्मान]] के लिए चुना गया। [[2002]] में प्रकाशित इस उपन्यास का चयन पिछले दस सालों में बाइस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कृतियों में से किया गया था और [[2007]] में उनका उपन्यास 'अवर्ण' प्रकाशित हुआ है।
*'एसएल भयरप्पा के उपन्यास 'मंद्र' को [[2010]] के 20 वें [[सरस्वती सम्मान]] के लिए चुना गया। [[2002]] में प्रकाशित इस उपन्यास का चयन पिछले दस सालों में बाइस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कृतियों में से किया गया था और [[2007]] में उनका उपन्यास 'अवर्ण' प्रकाशित हुआ है।
* भयरप्पा के सरस्वती सम्मान के लिए चुने गये कन्नड़ उपन्यास 'मंद्र' के [[हिंदी]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं, जो बेहद सफल रहे।
*भयरप्पा के सरस्वती सम्मान के लिए चुने गये कन्नड़ उपन्यास 'मंद्र' के [[हिंदी]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं, जो बेहद सफल रहे।


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Revision as of 12:53, 7 April 2011

thumb|250px|एस.एल. भयरप्पा

  • सांतेशिवारा लिंगणय्या भैरप्पा (एस.एल. भयरप्पा) कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार हैं।
  • मैसूर, कर्नाटक के छोटे से गाँव में 20 अगस्त, 1931 को जन्मे भयरप्पा के अभी तक 22 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनका पहला उपन्यास 'भीमकाया' 1959 में प्रकाशित हुआ।
  • 'एसएल भयरप्पा के उपन्यास 'मंद्र' को 2010 के 20 वें सरस्वती सम्मान के लिए चुना गया। 2002 में प्रकाशित इस उपन्यास का चयन पिछले दस सालों में बाइस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कृतियों में से किया गया था और 2007 में उनका उपन्यास 'अवर्ण' प्रकाशित हुआ है।
  • भयरप्पा के सरस्वती सम्मान के लिए चुने गये कन्नड़ उपन्यास 'मंद्र' के हिंदी और मराठी में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं, जो बेहद सफल रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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