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[[हिन्दू धर्म]] के महान् ग्रंथ '[[बृहदारण्यकोपनिषद]]' में तैंतीस देवताओं का विस्तार से परिचय मिलता है। इनमें से जो [[पृथ्वी]] लोक के देवता कहे गए हैं, उनमें आठ वसु का ही स्मरण किया जाता है। इन्हें ही धरती का देवता भी माना जाता है। [[महाभारत]] के अनुसार आठ वसु ये हैं-  
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अपनी [[गाय]] नंदिनी को चुरा लेने के कारण [[वसिष्ठ]] ने वसुओं को मनुष्य योनि में उत्पन्न होने का शाप दिया था। वसुओं के अनुनय विनय करने पर सात वसुओं के शाप की अवधि केवल एक [[वर्ष]] कर दी। 'द्यो' नाम के वसु ने अपनी पत्नी के बहकावे में आकर उनकी धेनु का अपहरण किया था। अत: उन्हें दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने तथा संतान उत्पन्न न करने, महान विद्वान और वीर होने तथा स्त्रीभोगपरित्यागी होने को कहा। इसी शाप के अनुसार इनका जन्म [[शांतनु]] की पत्नी [[गंगा]] के गर्भ से हुआ। सात को गंगा ने [[जल]] में फेंक दिया, आठवें [[भीष्म]] थे, जिन्हें बचा लिया गया था।<ref>[[महाभारत आदि पर्व]] 99.6-9,29-41</ref>
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चित्र:Disamb2.jpg वसु एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वसु (बहुविकल्पी)

वसु पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवताओं का एक गण है, जिसके अंतर्गत आठ देवता माने गये हैं। 'श्रीमद्भागवत' के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा धर्म की पत्नी 'वसु' के गर्भ से ही सब वसु उत्पन्न हुए थे। महाभारत के प्रसिद्ध चरित्रों में से एक और महाराज शांतनु के पुत्र भीष्म भी आठ वसुओं में से एक थे।

आठ वसु

हिन्दू धर्म के महान् ग्रंथ 'बृहदारण्यकोपनिषद' में तैंतीस देवताओं का विस्तार से परिचय मिलता है। इनमें से जो पृथ्वी लोक के देवता कहे गए हैं, उनमें आठ वसु का ही स्मरण किया जाता है। इन्हें ही धरती का देवता भी माना जाता है। महाभारत के अनुसार आठ वसु ये हैं-

  1. धर
  2. ध्रुव
  3. सोम
  4. विष्णु
  5. अनिल
  6. अनल
  7. प्रत्यूष
  8. प्रभास
  • श्रीमद्भागवत के अनुसार 'द्रोण', 'प्राण', 'ध्रुव', 'अर्क', 'अग्नि', 'दोष', 'वसु' और 'विभावसु' आठ नाम हैं।

कथा

इन आठ वसुओं के बारे में एक विचित्र कथा भी मिलती है। कथा के अनुसार इन आठ वसुओं में सबसे छोटे वसु प्रभास ने एक दिन वशिष्ठ की गायों को लालचवश चुरा लिया। वशिष्ठ ने इनको पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। बाद में आठों वसुओं ने उनसे क्षमा माँगी। उनके क्षमा माँग लेने पर वसिष्ठ ने सात से कहा कि- "तुम पृथ्वी पर जन्म लेने के कुछ ही समय बाद मृत्यु को प्राप्त करोगे, लेकिन प्रभास लंबे समय तक पृथ्वी लोक पर ही रहेगा। इसका ना तो विवाह होगा और ना ही कोई संतान होगी।" यही प्रभास नामक वसु बाद में भीष्म कहलाये, जिन्होंने जीवन भर विवाह ना करने की प्रतिज्ञा की थी। उनकी माता गंगा ने जो सात पुत्र पैदा होते ही गंगा में बहा दिए थे, वह सातों वसु ही थे। केवल प्रभास ही बचा था। अग्नि को प्रथम वसु माना जाता है, क्योंकि अग्नि में हवन के माध्यम से ही सभी देवी-देवताओं को उनका आहार मिलता है। यह वसु ब्रह्माजी के पौत्र माने जाते हैं।

श्रीमद्भागवत के अनुसार-

अपनी गाय नंदिनी को चुरा लेने के कारण वसिष्ठ ने वसुओं को मनुष्य योनि में उत्पन्न होने का शाप दिया था। वसुओं के अनुनय विनय करने पर सात वसुओं के शाप की अवधि केवल एक वर्ष कर दी। 'द्यो' नाम के वसु ने अपनी पत्नी के बहकावे में आकर उनकी धेनु का अपहरण किया था। अत: उन्हें दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने तथा संतान उत्पन्न न करने, महान् विद्वान और वीर होने तथा स्त्रीभोगपरित्यागी होने को कहा। इसी शाप के अनुसार इनका जन्म शांतनु की पत्नी गंगा के गर्भ से हुआ। सात को गंगा ने जल में फेंक दिया, आठवें भीष्म थे, जिन्हें बचा लिया गया था।[1] रामायण में वसुओं को अदिति पुत्र कहा गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदि पर्व 99.6-9,29-41
  2. महाभारत भाग. देवीभाग.

बाहरी कड़ियाँ

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