फ़क़ीर मोहन सेनापति: Difference between revisions

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*आधुनिक [[उड़िया भाषा|उड़िया]] [[साहित्य]] के जनक फकीर मोहन सेनापति का जन्म 1847 ई. में [[उड़ीसा]] के तट पर 'बालेश्वर नगर' में हुआ था।  
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*उनके पिता एक संपन्न व्यापारी थे और फकीर मोहन उनकी एकमात्र संतान।
==संक्षिप्त परिचय==
*परन्तु वे डेढ़ [[वर्ष]] के थे, तभी उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया।  
फ़क़ीर मोहन सेनापति के पिता एक संपन्न व्यापारी थे और फ़क़ीर मोहन उनकी एकमात्र संतान थे। परन्तु वे डेढ़ [[वर्ष]] के थे, तभी उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया। फ़क़ीर मोहन सेनापति की संपूर्ण पैत्रिक संपत्ति [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] ने हथिया ली और बालक को दर-दर की ठोकर खानी पड़ी। शिक्षा भी आरंभिक स्तर से आगे नहीं बढ़ पाई। परन्तु फ़क़ीर मोहन ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वाध्याय से त्रिविध विषयों का अपना ज्ञान बढ़ाते रहे। फिर वे [[साहित्य]] रचना की ओर प्रवृत्त हुए।  
*उनकी संपूर्ण पैत्रिक संपत्ति [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] ने हथिया ली और बालक को दर-दर की ठोकर खानी पड़ी।  
==कार्यक्षेत्र==
*शिक्षा भी आरंभिक स्तर से आगे नहीं बढ़ पाई।
उस समय तक [[उड़ीसा]] में पुस्तकें छापने का छापाखाना नहीं था। फ़क़ीर मोहन ने पहला छापाखाना स्थापित किया और एक '[[पत्रिका]]' का संपादन और प्रकाशन करने लगे। अब उनकी योग्यता की ख्याति देशी रियासतों में भी फैली और कुछ ने उन्हें 'दीवान' के पद पर नियुक्त किया। कुछ दरबारों में साहित्य-सेवा के कारण उन्हें उच्च स्थान प्राप्त हुआ। फ़क़ीर मोहन सेनापति ने अनेक कहानियों और उपन्यासों की रचना की।  
*परन्तु फकीर मोहन ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वाध्याय से त्रिविध विषयों का अपना ज्ञान बढ़ाते रहे।  
==लेखन कार्य==
*फिर वे [[साहित्य]] रचना की ओर प्रवृत्त हुए।  
फ़क़ीर मोहन सेनापति के दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए। उन्होंने मूल [[संस्कृत]] से [[रामायण]], [[महाभारत]], [[उपनिषद|उपनिषद]], [[हरिवंश पुराण]] और [[गीता]] का [[उड़िया भाषा]] में अनुवाद किया। वे आज भी [[उड़िया भाषा|उड़िया]] लेखकों के प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं।  
*उस समय तक [[उड़ीसा]] में पुस्तकें छापने का छापाखाना नहीं था।  
==निधन==
*फकीर मोहन ने पहला छापाखाना स्थापित किया और एक 'पत्रिका' का संपादन और प्रकाशन करने लगे।  
फ़क़ीर मोहन सेनापति का 1918 ई. में निधन हो गया।
*अब उनकी योग्यता की ख्याति देशी रियासतों में भी फैली और कुछ ने उन्हें 'दीवान' के पद पर नियुक्त किया।  
*कुछ दरबारों में साहित्य-सेवा के कारण उन्हें उच्च स्थान प्राप्त हुआ।
*फकीर मोहन सेनापति ने अनेक कहानियों और उपन्यासों की रचना की।  
*उनके दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए।  
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फ़क़ीर मोहन सेनापति आधुनिक उड़िया साहित्य के जनक माने जाते थे। इनका जन्म 1847 ई. में उड़ीसा के तट पर 'बालेश्वर नगर' में हुआ था।

संक्षिप्त परिचय

फ़क़ीर मोहन सेनापति के पिता एक संपन्न व्यापारी थे और फ़क़ीर मोहन उनकी एकमात्र संतान थे। परन्तु वे डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया। फ़क़ीर मोहन सेनापति की संपूर्ण पैत्रिक संपत्ति अंग्रेजों ने हथिया ली और बालक को दर-दर की ठोकर खानी पड़ी। शिक्षा भी आरंभिक स्तर से आगे नहीं बढ़ पाई। परन्तु फ़क़ीर मोहन ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वाध्याय से त्रिविध विषयों का अपना ज्ञान बढ़ाते रहे। फिर वे साहित्य रचना की ओर प्रवृत्त हुए।

कार्यक्षेत्र

उस समय तक उड़ीसा में पुस्तकें छापने का छापाखाना नहीं था। फ़क़ीर मोहन ने पहला छापाखाना स्थापित किया और एक 'पत्रिका' का संपादन और प्रकाशन करने लगे। अब उनकी योग्यता की ख्याति देशी रियासतों में भी फैली और कुछ ने उन्हें 'दीवान' के पद पर नियुक्त किया। कुछ दरबारों में साहित्य-सेवा के कारण उन्हें उच्च स्थान प्राप्त हुआ। फ़क़ीर मोहन सेनापति ने अनेक कहानियों और उपन्यासों की रचना की।

लेखन कार्य

फ़क़ीर मोहन सेनापति के दो उपन्यास ‘छह माण आठ गुंठ’ और ‘लछमा’ विशेष प्रसिद्ध हुए। उन्होंने मूल संस्कृत से रामायण, महाभारत, उपनिषद, हरिवंश पुराण और गीता का उड़िया भाषा में अनुवाद किया। वे आज भी उड़िया लेखकों के प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं।

निधन

फ़क़ीर मोहन सेनापति का 1918 ई. में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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