अभिमन्यु अनत: Difference between revisions
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अभिमन्यु अनत का जन्म [[9 अगस्त]] [[1937]] ई. को 'त्रिओले' में हुआ था। [[मॉरिशस]] निवासी और वहीं पर पले - बढ़े अभिमन्यु अनत ने [[हिन्दी]] साहित्य की श्रीवृद्धि में जो सहयोग किया है, वह प्रशंसनीय है। अभिमन्यु का मूल [[भारत]] की ही मिट्टी है। इनके पूर्वज अन्य भारतीयों के साथ[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा वहाँ की ईख की खेती में श्रम करने के लिए लाए गए थे। मज़दूरों के रूप में गए भारतीय अन्तत: वहीं पर बस गए। मॉरिशस काल-क्रम से अंग्रज़ों के शासन से मुक्त हुआ। भारतीय जो श्रमिक बनकर वहाँ गए थे, उनकी दूसरी - तीसरी पीढ़ियाँ पढ़ी - लिखी और सम्पन्न हैं। उनकी जीवन स्तर बहुत ऊँचा है। अभिमन्यु की भारतीय पृष्ठभूमि ने उन्हें हिन्दी की सेवा के लिए उत्साहित किया और उन्होंने अपने पूर्वजों की मातृभूमि का ऋण अच्छी तरह से चुकाया। [[मॉरिशस]] के महान कथा - शिल्पी अभिमन्यु अनत ने | अभिमन्यु अनत का जन्म [[9 अगस्त]] [[1937]] ई. को 'त्रिओले' में हुआ था। [[मॉरिशस]] निवासी और वहीं पर पले - बढ़े अभिमन्यु अनत ने [[हिन्दी]] साहित्य की श्रीवृद्धि में जो सहयोग किया है, वह प्रशंसनीय है। अभिमन्यु का मूल [[भारत]] की ही मिट्टी है। इनके पूर्वज अन्य भारतीयों के साथ[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] द्वारा वहाँ की ईख की खेती में श्रम करने के लिए लाए गए थे। मज़दूरों के रूप में गए भारतीय अन्तत: वहीं पर बस गए। मॉरिशस काल-क्रम से अंग्रज़ों के शासन से मुक्त हुआ। भारतीय जो श्रमिक बनकर वहाँ गए थे, उनकी दूसरी - तीसरी पीढ़ियाँ पढ़ी - लिखी और सम्पन्न हैं। उनकी जीवन स्तर बहुत ऊँचा है। अभिमन्यु की भारतीय पृष्ठभूमि ने उन्हें हिन्दी की सेवा के लिए उत्साहित किया और उन्होंने अपने पूर्वजों की मातृभूमि का ऋण अच्छी तरह से चुकाया। [[मॉरिशस]] के महान कथा - शिल्पी अभिमन्यु अनत ने हिन्दी कविता को एक नया आयाम दिया है। उनकी कविताओं का [[भारत]] के हिन्दी साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान है। | ||
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शांत, सौम्य व्यक्तित्व के धनी अभिमन्यु अनत मॉरिशस ही नहीं, वरन पूरी हिन्दी जगत के शिरोमणि हैं। मॉरिशस में उनकी छवि विद्रोही लेखक के रूप में होती है। उनकी लेखनी में सदैव आमजन की भावना मुखरित होती है। पद का लालच उन्हें कभी बांध नहीं पाया। अपनी लेखनी को सशक्त बनाने के लिए कई बार उन्होने पद को भी ठोकर मार दी। पच्चीस साल पहले से आजतक के संबंध में मैनें उनके समुद्रतुल्य व्यक्तित्व का सदैव नमन किया। उनके घर के पास स्थित समुद्र का शांत स्वरूप भी उनके व्यक्तित्व में समाहित हो गया है। मॉरिशस में हिन्दी साहित्य और अभिमन्यु एक दूसरे के पूरक हैं। मॉरिशस में प्रेमचंद्र के साथ उनके अध्ययन पर तुलनात्मक अध्ययन पर मुझे कुछ संशय अवश्य हुआ था। जब हमने उनकी पुस्तक ''लाल पसीना'' पढी तो लगा कि प्रेमचंद के साथ अभिमन्यु अनत की तुलना सार्थक है। आज किसी भी भारतीय साहित्यकार के साथ अभिमन्यु अनत का तुलनात्मक अध्ययन कर शोध का प्रारूप दिया जा सकता है। उनकी लेखनी में सदैव मॉरिशस के आमजन की परेशानियों को उकेरा जाता रहा है। उन्हें कभी भी सत्ता का भय आक्रांत नहीं कर पाया। उन्होंने कई बार अपनी लेखनी के माध्यम से सत्ता को चुनौती प्रदान की। भारत में हिन्दी साहित्यकार के रूप में उनके योग्यता को पूरी प्रतिष्ठा नहीं मिलने का मुख्य कारण भारतीय हिन्दी साहित्यकारों की अकर्मण्यता है। साहित्यकारों द्वारा अक्सर प्रवासी लेखकों से परहेज किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दी साहित्य में अभिमन्यु अनत की लेखनी अतुल्य है। भारत की सांस्कृतिक संपन्नता मॉरिशस की तुलना में अधिक है, अत: भारत में प्रतिष्ठा का अपना एक अलग महत्व है। भारत के हिन्दी साहित्यकारों में प्रवासी लेखकों को प्रोत्साहन देने का अभाव है।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/1870/9/196 |title=हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर अभिमन्यु अनत |accessmonthday=10 जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= | शांत, सौम्य व्यक्तित्व के धनी अभिमन्यु अनत मॉरिशस ही नहीं, वरन पूरी हिन्दी जगत के शिरोमणि हैं। मॉरिशस में उनकी छवि विद्रोही लेखक के रूप में होती है। उनकी लेखनी में सदैव आमजन की भावना मुखरित होती है। पद का लालच उन्हें कभी बांध नहीं पाया। अपनी लेखनी को सशक्त बनाने के लिए कई बार उन्होने पद को भी ठोकर मार दी। पच्चीस साल पहले से आजतक के संबंध में मैनें उनके समुद्रतुल्य व्यक्तित्व का सदैव नमन किया। उनके घर के पास स्थित समुद्र का शांत स्वरूप भी उनके व्यक्तित्व में समाहित हो गया है। मॉरिशस में हिन्दी साहित्य और अभिमन्यु एक दूसरे के पूरक हैं। मॉरिशस में प्रेमचंद्र के साथ उनके अध्ययन पर तुलनात्मक अध्ययन पर मुझे कुछ संशय अवश्य हुआ था। जब हमने उनकी पुस्तक ''लाल पसीना'' पढी तो लगा कि प्रेमचंद के साथ अभिमन्यु अनत की तुलना सार्थक है। आज किसी भी भारतीय साहित्यकार के साथ अभिमन्यु अनत का तुलनात्मक अध्ययन कर शोध का प्रारूप दिया जा सकता है। उनकी लेखनी में सदैव मॉरिशस के आमजन की परेशानियों को उकेरा जाता रहा है। उन्हें कभी भी सत्ता का भय आक्रांत नहीं कर पाया। उन्होंने कई बार अपनी लेखनी के माध्यम से सत्ता को चुनौती प्रदान की। भारत में हिन्दी साहित्यकार के रूप में उनके योग्यता को पूरी प्रतिष्ठा नहीं मिलने का मुख्य कारण भारतीय हिन्दी साहित्यकारों की अकर्मण्यता है। साहित्यकारों द्वारा अक्सर प्रवासी लेखकों से परहेज किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दी साहित्य में अभिमन्यु अनत की लेखनी अतुल्य है। भारत की सांस्कृतिक संपन्नता मॉरिशस की तुलना में अधिक है, अत: भारत में प्रतिष्ठा का अपना एक अलग महत्व है। भारत के हिन्दी साहित्यकारों में प्रवासी लेखकों को प्रोत्साहन देने का अभाव है।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/1870/9/196 |title=हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर अभिमन्यु अनत |accessmonthday=10 जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> [[अंग्रेजी भाषा]] को प्राथमिकता देने के पीछे दिखावा प्रवृति को मुख्य कारण मानने वाले अभिमन्यु अनत के साथ लगभग पच्चीस सालों से संपर्क में रहने वाले साहित्यकार [[अशोक चक्रधर]] उन्हें हिन्दी साहित्य की महानिधि मानते हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में 60 से अधिक पुस्तकों के रचयिता श्री अनत का उपन्यास ''लाल पसीना'' कालजयी कृति के रूप में विख्यात हो चुका है। | ||
;मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट' | ;मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट' | ||
उपन्यास के क्षेत्र में अभिमन्यु अनत मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट' है। उनके अभी तक 29 उपन्यास छप चुके हैं। पहला उपन्यास `और नदी बहती रही' सन् 1970 में छपा था तथा उनका नवीनतम उपन्यास `अपना मन उपवन' अभी इसी वर्ष में प्रकाशित हुआ है। उनका प्रसिद्ध उपन्यास `लाल पसीना' सन् 1977 में छपा था जो भारत से गये गिरमिटिया मजदूरों की मार्मिक कहानी है। अब इसका अनुवाद 'फ्रेंच भाषा' में हो चुका है। इस उपन्यास की दो अन्य कडियां भी प्रकाशित हुई जिनके शीर्षक हैं `गांधीजी बोले थे' (1984) तथा `और पसीना बहता रहा' (1993)। भारत से बाहर हिन्दी में इस त्रिखंडी उपन्यास को लिखने वाले वे एकमात्र उपन्यासकार हैं जिनमें भारतीय मजदूरों की महाकाव्यात्मक गाथा का जीवन्त वर्णन हुआ है। `गांधीजी बोले थे' उपन्यास तो अनत ने मेरी प्रेरणा से लिखा जिसका उल्लेख उन्होंने उपन्यास में कर दिया है। अभिमन्यु अनत अपने देश के भूमि पुत्र हैं तथा अनी जातीय परम्परा के राष्ट्रीय उपन्यासकार हैं। मॉरिशस की भूमि, वहां की संस्कृति, वहां के अंचल, वहां की सन्तानें सभी उनकी लेखकीय आत्मा के अंग हैं। वे अपने देश के वर्तमान की त्रासदियों, क्रिया कलापों, औपनिवेशिक दबाव और विसंस्कृतिकरण की दुष्प्रवृत्तियों का बडी यथार्थता के साथ उद्घाटन करते हैं तथा जीवन मूल्यों तथा आदर्शवाद को साथ लेकर चलते हैं।<ref> {{cite web |url=http://evishwa.com/articledetail.php?ArticleId=22&CategoryId=0|title=हिन्दी का प्रवासी साहित्य|accessmonthday=10 जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= | उपन्यास के क्षेत्र में अभिमन्यु अनत मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट' है। उनके अभी तक 29 उपन्यास छप चुके हैं। पहला उपन्यास `और नदी बहती रही' सन् 1970 में छपा था तथा उनका नवीनतम उपन्यास `अपना मन उपवन' अभी इसी वर्ष में प्रकाशित हुआ है। उनका प्रसिद्ध उपन्यास `लाल पसीना' सन् 1977 में छपा था जो भारत से गये गिरमिटिया मजदूरों की मार्मिक कहानी है। अब इसका अनुवाद 'फ्रेंच भाषा' में हो चुका है। इस उपन्यास की दो अन्य कडियां भी प्रकाशित हुई जिनके शीर्षक हैं `गांधीजी बोले थे' (1984) तथा `और पसीना बहता रहा' (1993)। भारत से बाहर हिन्दी में इस त्रिखंडी उपन्यास को लिखने वाले वे एकमात्र उपन्यासकार हैं जिनमें भारतीय मजदूरों की महाकाव्यात्मक गाथा का जीवन्त वर्णन हुआ है। `गांधीजी बोले थे' उपन्यास तो अनत ने मेरी प्रेरणा से लिखा जिसका उल्लेख उन्होंने उपन्यास में कर दिया है। अभिमन्यु अनत अपने देश के भूमि पुत्र हैं तथा अनी जातीय परम्परा के राष्ट्रीय उपन्यासकार हैं। मॉरिशस की भूमि, वहां की संस्कृति, वहां के अंचल, वहां की सन्तानें सभी उनकी लेखकीय आत्मा के अंग हैं। वे अपने देश के वर्तमान की त्रासदियों, क्रिया कलापों, औपनिवेशिक दबाव और विसंस्कृतिकरण की दुष्प्रवृत्तियों का बडी यथार्थता के साथ उद्घाटन करते हैं तथा जीवन मूल्यों तथा आदर्शवाद को साथ लेकर चलते हैं।<ref> {{cite web |url=http://evishwa.com/articledetail.php?ArticleId=22&CategoryId=0|title=हिन्दी का प्रवासी साहित्य|accessmonthday=10 जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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Revision as of 08:06, 20 July 2011
अभिमन्यु अनत का जन्म 9 अगस्त 1937 ई. को 'त्रिओले' में हुआ था। मॉरिशस निवासी और वहीं पर पले - बढ़े अभिमन्यु अनत ने हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में जो सहयोग किया है, वह प्रशंसनीय है। अभिमन्यु का मूल भारत की ही मिट्टी है। इनके पूर्वज अन्य भारतीयों के साथअंग्रेज़ों द्वारा वहाँ की ईख की खेती में श्रम करने के लिए लाए गए थे। मज़दूरों के रूप में गए भारतीय अन्तत: वहीं पर बस गए। मॉरिशस काल-क्रम से अंग्रज़ों के शासन से मुक्त हुआ। भारतीय जो श्रमिक बनकर वहाँ गए थे, उनकी दूसरी - तीसरी पीढ़ियाँ पढ़ी - लिखी और सम्पन्न हैं। उनकी जीवन स्तर बहुत ऊँचा है। अभिमन्यु की भारतीय पृष्ठभूमि ने उन्हें हिन्दी की सेवा के लिए उत्साहित किया और उन्होंने अपने पूर्वजों की मातृभूमि का ऋण अच्छी तरह से चुकाया। मॉरिशस के महान कथा - शिल्पी अभिमन्यु अनत ने हिन्दी कविता को एक नया आयाम दिया है। उनकी कविताओं का भारत के हिन्दी साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान है।
कार्यक्षेत्र
अठारह वर्षों तक हिन्दी का अध्यापन करने के पश्चात तीन वर्षों तक वह युवा मंत्रालय में नाट्य प्रशिक्षक रहे। मॉरीशस के 'महात्मा गांधी इंस्टीटयूट' में भाषा प्रभारी के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद इन दिनों श्री अनत वहीं के 'रवींद्रनाथ टैगोर इंस्टीटयूट' निदेशक पद संभाल रहे हैं। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित श्री अनत के पाठकों की संख्या भारत में भी कम नहीं है। विद्रोही लेखक की छवि धारण कर उन्होंने सदैव हिन्दी के प्रसार की बात की।
व्यक्तित्व
शांत, सौम्य व्यक्तित्व के धनी अभिमन्यु अनत मॉरिशस ही नहीं, वरन पूरी हिन्दी जगत के शिरोमणि हैं। मॉरिशस में उनकी छवि विद्रोही लेखक के रूप में होती है। उनकी लेखनी में सदैव आमजन की भावना मुखरित होती है। पद का लालच उन्हें कभी बांध नहीं पाया। अपनी लेखनी को सशक्त बनाने के लिए कई बार उन्होने पद को भी ठोकर मार दी। पच्चीस साल पहले से आजतक के संबंध में मैनें उनके समुद्रतुल्य व्यक्तित्व का सदैव नमन किया। उनके घर के पास स्थित समुद्र का शांत स्वरूप भी उनके व्यक्तित्व में समाहित हो गया है। मॉरिशस में हिन्दी साहित्य और अभिमन्यु एक दूसरे के पूरक हैं। मॉरिशस में प्रेमचंद्र के साथ उनके अध्ययन पर तुलनात्मक अध्ययन पर मुझे कुछ संशय अवश्य हुआ था। जब हमने उनकी पुस्तक लाल पसीना पढी तो लगा कि प्रेमचंद के साथ अभिमन्यु अनत की तुलना सार्थक है। आज किसी भी भारतीय साहित्यकार के साथ अभिमन्यु अनत का तुलनात्मक अध्ययन कर शोध का प्रारूप दिया जा सकता है। उनकी लेखनी में सदैव मॉरिशस के आमजन की परेशानियों को उकेरा जाता रहा है। उन्हें कभी भी सत्ता का भय आक्रांत नहीं कर पाया। उन्होंने कई बार अपनी लेखनी के माध्यम से सत्ता को चुनौती प्रदान की। भारत में हिन्दी साहित्यकार के रूप में उनके योग्यता को पूरी प्रतिष्ठा नहीं मिलने का मुख्य कारण भारतीय हिन्दी साहित्यकारों की अकर्मण्यता है। साहित्यकारों द्वारा अक्सर प्रवासी लेखकों से परहेज किया जाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि हिन्दी साहित्य में अभिमन्यु अनत की लेखनी अतुल्य है। भारत की सांस्कृतिक संपन्नता मॉरिशस की तुलना में अधिक है, अत: भारत में प्रतिष्ठा का अपना एक अलग महत्व है। भारत के हिन्दी साहित्यकारों में प्रवासी लेखकों को प्रोत्साहन देने का अभाव है।[1] अंग्रेजी भाषा को प्राथमिकता देने के पीछे दिखावा प्रवृति को मुख्य कारण मानने वाले अभिमन्यु अनत के साथ लगभग पच्चीस सालों से संपर्क में रहने वाले साहित्यकार अशोक चक्रधर उन्हें हिन्दी साहित्य की महानिधि मानते हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में 60 से अधिक पुस्तकों के रचयिता श्री अनत का उपन्यास लाल पसीना कालजयी कृति के रूप में विख्यात हो चुका है।
- मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट'
उपन्यास के क्षेत्र में अभिमन्यु अनत मॉरिशस के `उपन्यास सम्राट' है। उनके अभी तक 29 उपन्यास छप चुके हैं। पहला उपन्यास `और नदी बहती रही' सन् 1970 में छपा था तथा उनका नवीनतम उपन्यास `अपना मन उपवन' अभी इसी वर्ष में प्रकाशित हुआ है। उनका प्रसिद्ध उपन्यास `लाल पसीना' सन् 1977 में छपा था जो भारत से गये गिरमिटिया मजदूरों की मार्मिक कहानी है। अब इसका अनुवाद 'फ्रेंच भाषा' में हो चुका है। इस उपन्यास की दो अन्य कडियां भी प्रकाशित हुई जिनके शीर्षक हैं `गांधीजी बोले थे' (1984) तथा `और पसीना बहता रहा' (1993)। भारत से बाहर हिन्दी में इस त्रिखंडी उपन्यास को लिखने वाले वे एकमात्र उपन्यासकार हैं जिनमें भारतीय मजदूरों की महाकाव्यात्मक गाथा का जीवन्त वर्णन हुआ है। `गांधीजी बोले थे' उपन्यास तो अनत ने मेरी प्रेरणा से लिखा जिसका उल्लेख उन्होंने उपन्यास में कर दिया है। अभिमन्यु अनत अपने देश के भूमि पुत्र हैं तथा अनी जातीय परम्परा के राष्ट्रीय उपन्यासकार हैं। मॉरिशस की भूमि, वहां की संस्कृति, वहां के अंचल, वहां की सन्तानें सभी उनकी लेखकीय आत्मा के अंग हैं। वे अपने देश के वर्तमान की त्रासदियों, क्रिया कलापों, औपनिवेशिक दबाव और विसंस्कृतिकरण की दुष्प्रवृत्तियों का बडी यथार्थता के साथ उद्घाटन करते हैं तथा जीवन मूल्यों तथा आदर्शवाद को साथ लेकर चलते हैं।[2]
रचनाएँ
अभिमन्यु अनत की कविताओं में शोषण, दमन और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद की गई है। बेरोज़गारी की समस्या पर भी अनत की दृष्टि गई है। समसामयिक व्यवस्था पर कवि का भावुक हृदय चीत्कार कर उठता है -
जिस दिन सूरज को
मज़दूरों की ओर से गवाही देनी थी
उस दिन सुबह नहीं हुई
सुना गया कि
मालिक के यहां की पार्टी में
सूरज ने ज्यादा पी ली थी।
- अनंत की कविताओं में मॉरिशस के श्रमजीवियों की वेदना उभरती है। 'लक्ष्मी का प्रश्न' शीर्षक कविता में अनत प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़े हो जाते हैं :
अनपढ़ लक्ष्मी पर इतना जरूर पूछती रही
पसीने की कीमत जब इतनी महंगी होती है
तो मजदूर उसे इतने सस्ते क्यों बेच देता है।[3]
- कविता संकलन
- अब तक अनत के चार कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं :
- कैक्टस के दांत
- नागफनी में उलझी सांसें,
- एक डायरी बयान
- गुलमोहर खौल उठा।
- अनत द्वारा संपादित कविता संकलन हैं :
- मॉरिशस की हिन्दी कविता,
- मॉरिशस के नौ हिन्दी कवि।
- नाटक -
- विरोध,
- तीन दृश्य,
- गूँगा इतिहास,
- रोक दो कान्हा,
- देख कबीरा हांसी।
- कहानी संग्रह-
- एक थाली समन्दर,
- खामोशी के चीत्कार,
- इंसान और मशीन,
- वह बीच का आदमी,
- जब कल आएगा यमराज।
- इनके छोटे-बड़े उपन्यासों की संख्या पैंतीस है। कुछ प्रसिद्ध नाम नीचे दिए जा रहे हैं-
- लहरों की बेटी,
- मार्क ट्वेन का स्वर्ग,
- फैसला आपका,
- मुड़िया पहाड़ बोल उठा,
- और नदी बहती रही,
- आन्दोलन,
- एक बीघा प्यार,
- जम गया सूरज,
- तीसरे किनारे पर,
- चौथा प्राणी,
- लाल पसीना,
- तपती दोपहरी,
- कुहासे का दायरा,
- शेफाली,
- हड़ताल कब होगी,
- चुन-चुन चुनाव,
- अपनी ही तलाश,
- पर पगडंडी मरती नहीं,
- अपनी-अपनी सीमा,
- गांधीजी बोले थे,
- शब्द भंग,
- पसीना बहता,
- आसमाप अपना आँगन,
- अस्ति-अस्तु,
- हम प्रवासी।
- इनके उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ है 'लाल पसीना', जिसे महाकाव्यात्मक उपन्यास माना जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर अभिमन्यु अनत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जुलाई, 2011।
- ↑ हिन्दी का प्रवासी साहित्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जुलाई, 2011।
- ↑ मॉरिशस में हिन्दी की सौ साल पुरानी परंपरा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जुलाई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- मॉरिशस में हिन्दी की सौ साल पुरानी परंपरा
- हिन्दी का प्रवासी साहित्य
- हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर अभिमन्यु अनत
संबंधित लेख
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