एस.एल. भयरप्पा: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:30, 8 July 2023
एस.एल. भयरप्पा
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पूरा नाम | सांतेशिवारा लिंगणय्या भयरप्पा |
जन्म | 20 अगस्त, 1931 |
जन्म भूमि | मैसूर, कर्नाटक |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखन |
भाषा | कन्नड़ |
विद्यालय | मैसूर विश्वविद्यालय महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए. (दर्शनशास्त्र) ‘सत्य तथा सौन्दर्य:अंतर्सम्बन्धों का अध्ययन’ विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1975 |
प्रसिद्धि | कन्नड़ साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रवीन्द्र, बंकिमचंद्र, शरतचंद्र, और प्रेमचंद के बाद किसी ने यदि अखिल भारतीय मनीषा और अस्मिता को शब्दांकित किया है, तो वह एस. एल. भयरप्पा ही हैं। |
अद्यतन | 16:58, 8 जुलाई 2023 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
सांतेशिवारा लिंगणय्या भयरप्पा (अंग्रेज़ी: Santeshivara Lingannaiah Bhyrappa, 20 अगस्त, 1931) कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार व साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास 'दाटु' के लिये उन्हें सन 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2023 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया है।
परिचय
मैसूर, कर्नाटक के छोटे से गाँव में 20 अगस्त, 1931 को एस. एल. भयरप्पा का जन्म हुआ। ग्यारह वर्ष की आयु में ही सिर से माता-पिता का साया उठ गया। एस. एल. भयरप्पा बचपन से ही मेधावी विद्यार्थी रहे। मैसूर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय से आपको ‘सत्य तथा सौन्दर्य : अंतर्सम्बन्धों का अध्ययन’ विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित किया गया था। एस. एल. भयरप्पा राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण संस्थान के मैसूर स्थित क्षेत्रीय महाविद्यालय में रीडर भी रहे।
लेखन कार्य
साहित्यिक : ‘धर्मश्री’ (1960) से लेकर ‘मंद्र’ (2002) तक आपके द्वारा रचे गए उपन्यासों की संख्या 19 है। उपन्यास से उपन्यास तक रचनारत रहने वाले भैरप्पा ने भारतीय उपन्यासकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है।[1]
- एस. एल. भयरप्पा के ‘उल्लंधन’ और ‘गृहभंग’ उपन्यास भारत की 14 प्रमुख भाषाओं में ही नहीं, अंग्रेज़ी में भी अनूदित हैं।
- ‘धर्मश्री’ और ‘सार्थ’ उपन्यास संस्कृत में अनूदित हैं।
- ‘पर्व’ महाभारत के प्रति एस. एल. भयरप्पा के आधुनिक दृष्टिकोण का फल है, तो ‘तंतु’ आधुनिक भारत के प्रति आपकी व्याख्या का प्रतीक।
- ‘सार्थ’ में जहाँ शंकारचार्य जी के समय के भारत की पुनर्सृष्टि का प्रयास किया गया है, वहीं ‘मंद्र’ में संगीत लोक के विभिन्न आयामों को समर्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- रवीन्द्र, बंकिमचंद्र, शरतचंद्र, और प्रेमचंद के बाद किसी ने यदि अखिल भारतीय मनीषा और अस्मिता को शब्दांकित किया है, तो वह एस. एल. भयरप्पा ही हैं। उनकी सर्जनात्मकता, तत्त्वशास्त्रीय विद्वत्ता, अध्ययन की श्रद्धा और जिज्ञासु प्रवृत्ति—इन सबने साहित्य के क्षेत्र में उको अनन्य बना दिया है। एस. एल. भयरप्पा के अनेक उपन्यास बड़े और छोटे स्क्रीन को भी अलंकृत कर चुके हैं।
पुरस्कार
- केंद्रीय साहित्य अकादेमी तथा कर्नाटक साहित्य अकादेमी (3 बार) का पुरस्कार
- भारतीय भाषा परिषद का पुरस्कार
कृतियाँ
उपन्यास : धर्मश्री, उल्लंघन, गृहभंग, सार्थ, पर्व, तंतु, गोधूलि, वंशवृक्ष, आधार, मंद्र, दायरे आस्थाओं के, साक्षी, छोर, निराकरण, जिज्ञासा, भित्ति आदि।
उनका पहला उपन्यास 'भीमकाया' 1959 में प्रकाशित हुआ। उनके उपन्यास 'मंद्र' को 2010 के 20वें सरस्वती सम्मान के लिए चुना गया था। 2002 में प्रकाशित इस उपन्यास का चयन पिछले दस सालों में बाइस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित कृतियों में से किया गया और 2007 में उनका उपन्यास 'अवर्ण' प्रकाशित हुआ है। एस. एल. भयरप्पा के सरस्वती सम्मान के लिए चुने गये कन्नड़ उपन्यास 'मंद्र' के हिन्दी और मराठी में अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं, जो बेहद सफल रहे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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