गुरुदत्त सिंघ भूपति

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गुरुदत्त सिंह भूपति अमेठी के राजा थे। ये बंधुल गोत्रीय सूर्यवंशी कुशवाहा क्षत्रिय थे। इनके पिता राजा हिम्मतबहादूर सिंह स्वयं कवि एवं कवियों के आश्रयदाता थे। इस वंश के प्राय: सभी नरेश विद्वान्‌ थे और गुणियों का यथोचित सम्मान करने में रुचि रखते थे ।हिंदी के पोषण में यह राजवंश सदा अग्रगण्य रहा है। इस दरबार में हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ कवि मलिक मुहम्मद जायसी, सुखदेव मिश्र, कालिदास त्रिवेदी, उदयनाथ कवींद्र, दूलह और सवंश शुक्ल को ससम्मान आश्रय प्राप्त था। राजकार्य में अत्यंत व्यस्त रहते हुए भी गुरुदत्त सिंह काव्यनिर्माण में दत्तचित्त रहते थे। ये निर्भीक योद्धा भी थे। अवध के नवाब सआदत खाँ से अनबन हो जाने पर उसने इनका रामनगर का गढ़ घेर लिया। उसके सम्मुख मारकाट करते हुए ये बाहर निकल गए। कुछ ही वर्षों में बड़ी वीरता से उन्होंने पुन: अपने गढ़ पर अधिकार कर लिया।[1]

संवत्‌ 1791 में इन्होंने 'भूपति सतसई' का निर्माण किया। अर्थ एवं भाव रमणीयता की दृष्टि से सतसई परंपरा में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। 'बिहारी सतसई' की होड़ में भूपति ने इसकी रचना की है। कवि के लोकज्ञान, शास्त्रज्ञान तथा काव्यज्ञान का समन्वित रूप इसमें परिलक्षित होता है। इसके अतिरिक्त कंठाभरण, सुरसरत्नाकर, रसदीप, रसरत्नावली नामक ग्रंथ भी इनके रचे हुए बतलाए जाते हैं। इनके नाम से संबंद्ध 'भाषा भागवत' वस्तुत; इनका ग्रंथ नहीं है। यह इटावानिवासी उनायों कायस्थ लेखराज के पुत्र भूपति कवि की रचना है। गुरुदत्त सिंह भूपति का रचनाकाल संवत्‌ 1788 से 1799 तक है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुरुदत्त सिंघ भूपति (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2015।
  2. संग्र्ह ग्रंन्थ - आचार्य रामचंद्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास; खोज विवरण 1926-28, नागरीप्रचारिणी पत्रिका सं० 1978 मनस्वी, सं० 2002।

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