तकषी शिवशंकर पिल्लै

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तकषी शिवशंकर पिल्लै की गिनती मलयालम के अग्रणी श्रेणी के लेखकों में की जाती है। इनका जन्म सन् 1917 ई. में और मृत्यु 1999 ई. में हुई थी। तकषी शिवशंकर ने अपने लेखन के माध्यम से गरीब लोगों की समस्याओं को प्रमुख रूप से समाज के समक्ष रखा था। अपने कहानी संग्रहों में उन्होंने व्यक्ति को अपने समय की विषम परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए प्रस्तुत किया है।

लेखन विषय

तकषी शिवशंकर पिल्लै ने कथा-साहित्य में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि, उन्होंने समाज के उच्च और धनी वर्ग की अपेक्षा कमज़ोर वर्ग के लोगों की समस्याआं की ओर अधिक ध्यान दिया। जब वे लेखन में निर्धन वर्ग को समस्या को सामने रखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि, पूरा समाज ही एक नायक के रूप में काम कर रहा है। उन्होंने अपने 26 उपन्यासों तथा 20 कहानी-संग्रहों में आज के मनुष्य को अपने समय की परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए दिखाया है। उनके उपन्यासों के किसान-चरित्र भाग्य में भरोसा करने वाले नहीं हैं, वे अपने विरूद्ध किए जाने वाले दुर्व्यवहार का मुकाबला करते हैं।

रचनाएँ

मलयालम साहित्य में तकषी शिवशंकर से पूर्व मध्यम वर्ग के लोगों की ही प्रधानता थी। तकषी ने निर्धन वर्ग को अपने कथा-साहित्य का माध्यम बनाकर 'मलयालम साहित्य' की दिशा ही बदल दी। उनका कथा-साहित्य भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी में भी अनूदित हो चुका है। उनके उपन्यासों में ‘झरा हुआ कमल’, ‘दलित का बेटा’, ‘दो सेर ध्यान’, ‘चेम्मीन’, ‘ओसेप के बच्चे’ उल्लेनखनीय है। ‘चेम्मीन’- जो मछुआरों के जीवन पर आधारित है, साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है। इन्हें 1984 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनके इस उपन्यास पर 1996 में एक फ़िल्म भी बनाई गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 351 |


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