आचार्य वामन
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अलंकार शास्त्र के प्रमुख आचार्य और साहित्य की प्रमुख धारा ‘रीति सम्प्रदाय’ के प्रवर्तक आचार्य वामन का समय आठवीं शताब्दी का अंत और नवीं शताब्दी का आरंभ काल माना जाता है। अलंकार शास्त्र पर सूत्र शैली में लिखा हुआ इनका ‘काव्यालंकार सूत्र’ नामक ग्रंथ उपलब्ध है| इन्होंने साहित्य में गुण और अलंकार के भेद को स्पष्ट किया।
वामन रीति की व्याख्या करते हुए वे विशिष्ट पद रचना को रीति मानते हैं। विशिष्ट से उनका अभिप्राय गुणात्मकता से है। इसी कारण रीति सम्प्रदाय को गुण संप्रदाय भी कहते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 778 |
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