झाबरमल्ल शर्मा: Difference between revisions

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'''पंडित झाबरमल्ल शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jhabarmal Sharma'', जन्म: [[1888]] - मृत्यु: [[4 जनवरी]], [[1983]]) [[राजस्थान]] के वयोवृद्ध साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार थे। पं. झाबरमल्ल ने ‘नेहरू वंशावली और राजस्थान’ पर अपनी अन्तिम पुस्तक लिखी थी। अनेक गवेष्णामूलक लेख उन्होंने राजस्थानी हस्तलिखितों पर लिखे। इन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया गया था, [[पद्मभूषण]] उपाधि से अलंकृत किया गया था। पंडित झाबरमल्ल शर्मा [[हिन्दी]] के उन पत्रकारों में थे, जिन्होंने अपने पूर्ववर्ती व समकालीन साहित्यकारों की कीर्ति-रक्षा के लिए अपने जीवन का अधिकांश समय लगाया था। आप उच्चकोटि के पत्रकार होने के साथ [[इतिहास]], [[साहित्य]], [[संस्कृति]] के प्रकाण्ड विद्वान थे।
'''पंडित झाबरमल्ल शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jhabarmal Sharma'', जन्म: [[1888]] - मृत्यु: [[4 जनवरी]], [[1983]]) [[राजस्थान]] के वयोवृद्ध साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार थे। पं. झाबरमल्ल ने ‘नेहरू वंशावली और राजस्थान’ पर अपनी अन्तिम पुस्तक लिखी थी। अनेक गवेष्णामूलक लेख उन्होंने राजस्थानी हस्तलिखितों पर लिखे। इन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया गया था, [[पद्मभूषण]] उपाधि से अलंकृत किया गया था। पंडित झाबरमल्ल शर्मा [[हिन्दी]] के उन पत्रकारों में थे, जिन्होंने अपने पूर्ववर्ती व समकालीन साहित्यकारों की कीर्ति-रक्षा के लिए अपने जीवन का अधिकांश समय लगाया था। आप उच्चकोटि के पत्रकार होने के साथ [[इतिहास]], [[साहित्य]], [[संस्कृति]] के प्रकाण्ड विद्वान् थे।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
पंडित झाबरमल्ल शर्मा का जन्म सन् 1888 में [[राजस्थान]] के खेतड़ी राज्य के समीप जसरापुर ग्राम में पण्डित रामदयालु के यहां हुआ था। इनके [[पिता]] सुप्रसिद्ध [[संस्कृत]] पण्डित और [[आयुर्वेद]] के पीयूषपाणि चिकित्सक थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय में नहीं हुई थी। अपने पिताजी के श्रीचरणों में बैठकर इन्होंने [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 1905-06 में इन्होंने अपने पिताजी के विद्या-गुरू गणनाथ सेन के टोले में जाकर कलकत्ता में रहने लगे और वहां निरंतर स्वाध्याय से ज्ञान की परिधि को विस्तृत कर लिया था।
पंडित झाबरमल्ल शर्मा का जन्म सन् 1888 में [[राजस्थान]] के खेतड़ी राज्य के समीप जसरापुर ग्राम में पण्डित रामदयालु के यहां हुआ था। इनके [[पिता]] सुप्रसिद्ध [[संस्कृत]] पण्डित और [[आयुर्वेद]] के पीयूषपाणि चिकित्सक थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय में नहीं हुई थी। अपने पिताजी के श्रीचरणों में बैठकर इन्होंने [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 1905-06 में इन्होंने अपने पिताजी के विद्या-गुरू गणनाथ सेन के टोले में जाकर कलकत्ता में रहने लगे और वहां निरंतर स्वाध्याय से ज्ञान की परिधि को विस्तृत कर लिया था।
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हिन्दी के प्रख्यात पत्रकार पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र से सम्पर्क के कारण आपका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ और आप 1905 में कलकत्ता से ही प्रकाशित "ज्ञानोदय" पत्र के सम्पादक हो गए। तब आप "मारवाड़ी बन्धु" के सम्पादन-कार्य में भी सहयोग देते थे। [[1909]] में बम्बई से प्रकाशित होने वाले "भारत" साप्ताहिक पत्र के सम्पादक होकर वहां चले गए। उन दिनों "भारत" ही अकेला ऐसा हिन्दी पत्र था, जिसमें पूरे पृष के व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते थे। जब आर्थिक कारणों से "भारत" बन्द हुआ, तब आप अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के आमन्त्रण पर उसके मुखपत्र "मारवाड़ी पत्र" के सम्पादक होकर नागपुर गए। वहां स्वास्थ्य ढुलमुल रहने पर स्वास्थ्य-सुधार के लिए जन्मभूमि जसरापुर लौट आए।
हिन्दी के प्रख्यात पत्रकार पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र से सम्पर्क के कारण आपका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ और आप 1905 में कलकत्ता से ही प्रकाशित "ज्ञानोदय" पत्र के सम्पादक हो गए। तब आप "मारवाड़ी बन्धु" के सम्पादन-कार्य में भी सहयोग देते थे। [[1909]] में बम्बई से प्रकाशित होने वाले "भारत" साप्ताहिक पत्र के सम्पादक होकर वहां चले गए। उन दिनों "भारत" ही अकेला ऐसा हिन्दी पत्र था, जिसमें पूरे पृष के व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते थे। जब आर्थिक कारणों से "भारत" बन्द हुआ, तब आप अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के आमन्त्रण पर उसके मुखपत्र "मारवाड़ी पत्र" के सम्पादक होकर नागपुर गए। वहां स्वास्थ्य ढुलमुल रहने पर स्वास्थ्य-सुधार के लिए जन्मभूमि जसरापुर लौट आए।
===='कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड' की स्थापना====
===='कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड' की स्थापना====
कलकत्ता से सन् [[1914]] में [[जन्माष्टमी]] के पुनीत पर्व पर "कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड" की स्थापना की और यहीं से "कलकत्ता समाचार" दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया। पत्र का सम्पादन स्वयं ही करते थे। जब शर्माजी ने "[[रौलट एक्ट]]" के विरोध में "कलकत्ता समाचार" के माध्यम से आन्दोलन प्रारम्भ किया, तो गवर्नर ने धमकी दी कि अधिक गड़बड़ी करने पर मारवाडियों को वहीं भेज दिया जाएगा, जहां से वे आए हैं। गवर्नर की इस धमकी के विरूद्ध जब शर्मा जी ने "गवर्नर का गुस्सा" शीर्षक से सम्पादकीय अग्रलेख में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब सरकार ने पत्र से दो हज़ार रुपए की जमानत मांग ली। कम्पनी के डायरेक्टरों ने निर्णय किया कि जमानत देकर पत्र नहीं निकालेंगे। प्रकाशन बन्द कर दिया गया। कुछ दिनों बाद एक अन्य उद्योगपति के स्वामित्व में "कलकत्ता समाचार" का प्रकाशन पुन: प्रारम्भ किया। पत्र का सम्पादन झाबरमल्ल शर्मा ही करते रहे। [[1925]] तक "कलकत्ता समाचार" कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।<ref>{{cite web |url=http://jamanadekhega.blogspot.in/2013/01/blog-post_4767.html |title=प्रेरक विभूति पंडित झाबरमल्ल शर्मा |accessmonthday=1 अप्रैल |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिंदी}}</ref>
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==विशेष योगदान==
==विशेष योगदान==
इसके उपरान्त सनातन धर्म के प्रख्यात नेता व्याख्यान वाचस्पति पण्डित दीनदयालु शर्मा की प्रेरणा पर कुंवर गणेशसिंह भदौरिया और पण्डित झाबरमल्ल शर्मा "कलकत्ता समाचार" को सन् 1925 में [[दिल्ली]] ले आए और यहां से वह "हिन्दू संसार" नाम से प्रकाशित होने लगा। सन् [[1926]] में जब "हिन्दू संसार" पर टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री की ओर से अभियोग चलाया गया, तब अपने पत्र में छपी टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री से सम्बन्धित चिट्ठी की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपने अपने ऊपर लेकर व चिट्ठी के लेखक का नाम प्रकट न कर [[पत्रकारिता]] के आदर्श की स्थापना की थी। जब यह अभियोग चला, तब आपके पिता गांव में अस्वस्थ थे। उनकी देखभाल के लिए आप गांव जाकर रहने लगे थे। वहां भी आपने अपने साहित्यिक कार्यो को विराम नहीं दिया और जसरापुर में "इतिहास अनुसन्धान गृह" की स्थापना करके उसके माध्यम से हिन्दी-साहित्य, जनपदीय साहित्य और इतिहास-सम्बन्धी पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करने लगे। इसी अवधि में इन्होंने "[[रामकृष्ण मिशन]]" की एक शाखा "खेतड़ी" में भी विधिवत [[1958]] में स्थापित कर दी।
इसके उपरान्त सनातन धर्म के प्रख्यात नेता व्याख्यान वाचस्पति पण्डित दीनदयालु शर्मा की प्रेरणा पर कुंवर गणेशसिंह भदौरिया और पण्डित झाबरमल्ल शर्मा "कलकत्ता समाचार" को सन् 1925 में [[दिल्ली]] ले आए और यहां से वह "हिन्दू संसार" नाम से प्रकाशित होने लगा। सन् [[1926]] में जब "हिन्दू संसार" पर टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री की ओर से अभियोग चलाया गया, तब अपने पत्र में छपी टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री से सम्बन्धित चिट्ठी की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपने अपने ऊपर लेकर व चिट्ठी के लेखक का नाम प्रकट न कर [[पत्रकारिता]] के आदर्श की स्थापना की थी। जब यह अभियोग चला, तब आपके पिता गांव में अस्वस्थ थे। उनकी देखभाल के लिए आप गांव जाकर रहने लगे थे। वहां भी आपने अपने साहित्यिक कार्यो को विराम नहीं दिया और जसरापुर में "इतिहास अनुसन्धान गृह" की स्थापना करके उसके माध्यम से हिन्दी-साहित्य, जनपदीय साहित्य और इतिहास-सम्बन्धी पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करने लगे। इसी अवधि में इन्होंने "[[रामकृष्ण मिशन]]" की एक शाखा "खेतड़ी" में भी विधिवत [[1958]] में स्थापित कर दी।

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झाबरमल्ल शर्मा
पूरा नाम पंडित झाबरमल्ल शर्मा
जन्म 1888
जन्म भूमि जसरापुर ग्राम, खेतड़ी, राजस्थान
मृत्यु 4 जनवरी, 1983
मृत्यु स्थान जयपुर, राजस्थान
कर्म-क्षेत्र कोलकाता, मुम्बई, नागपुर, दिल्ली, राजस्थान
मुख्य रचनाएँ "राजस्थान और नेहरू-परिवार"
भाषा संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी और बंगला
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (1982)
प्रसिद्धि साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार
विशेष योगदान "इतिहास अनुसन्धान गृह" और 'कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड' की स्थापना
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

पंडित झाबरमल्ल शर्मा (अंग्रेज़ी: Jhabarmal Sharma, जन्म: 1888 - मृत्यु: 4 जनवरी, 1983) राजस्थान के वयोवृद्ध साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार थे। पं. झाबरमल्ल ने ‘नेहरू वंशावली और राजस्थान’ पर अपनी अन्तिम पुस्तक लिखी थी। अनेक गवेष्णामूलक लेख उन्होंने राजस्थानी हस्तलिखितों पर लिखे। इन्हें राष्ट्रीय सम्मान दिया गया था, पद्मभूषण उपाधि से अलंकृत किया गया था। पंडित झाबरमल्ल शर्मा हिन्दी के उन पत्रकारों में थे, जिन्होंने अपने पूर्ववर्ती व समकालीन साहित्यकारों की कीर्ति-रक्षा के लिए अपने जीवन का अधिकांश समय लगाया था। आप उच्चकोटि के पत्रकार होने के साथ इतिहास, साहित्य, संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान् थे।

जीवन परिचय

पंडित झाबरमल्ल शर्मा का जन्म सन् 1888 में राजस्थान के खेतड़ी राज्य के समीप जसरापुर ग्राम में पण्डित रामदयालु के यहां हुआ था। इनके पिता सुप्रसिद्ध संस्कृत पण्डित और आयुर्वेद के पीयूषपाणि चिकित्सक थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा किसी कॉलेज, विश्वविद्यालय में नहीं हुई थी। अपने पिताजी के श्रीचरणों में बैठकर इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी और बंगला आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 1905-06 में इन्होंने अपने पिताजी के विद्या-गुरू गणनाथ सेन के टोले में जाकर कलकत्ता में रहने लगे और वहां निरंतर स्वाध्याय से ज्ञान की परिधि को विस्तृत कर लिया था।

पत्रकारिता की झुकाव

हिन्दी के प्रख्यात पत्रकार पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र से सम्पर्क के कारण आपका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ और आप 1905 में कलकत्ता से ही प्रकाशित "ज्ञानोदय" पत्र के सम्पादक हो गए। तब आप "मारवाड़ी बन्धु" के सम्पादन-कार्य में भी सहयोग देते थे। 1909 में बम्बई से प्रकाशित होने वाले "भारत" साप्ताहिक पत्र के सम्पादक होकर वहां चले गए। उन दिनों "भारत" ही अकेला ऐसा हिन्दी पत्र था, जिसमें पूरे पृष के व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते थे। जब आर्थिक कारणों से "भारत" बन्द हुआ, तब आप अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के आमन्त्रण पर उसके मुखपत्र "मारवाड़ी पत्र" के सम्पादक होकर नागपुर गए। वहां स्वास्थ्य ढुलमुल रहने पर स्वास्थ्य-सुधार के लिए जन्मभूमि जसरापुर लौट आए।

'कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड' की स्थापना

कलकत्ता से सन् 1914 में जन्माष्टमी के पुनीत पर्व पर "कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड" की स्थापना की और यहीं से "कलकत्ता समाचार" दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया। पत्र का सम्पादन स्वयं ही करते थे। जब शर्माजी ने "रौलट एक्ट" के विरोध में "कलकत्ता समाचार" के माध्यम से आन्दोलन प्रारम्भ किया, तो गवर्नर ने धमकी दी कि अधिक गड़बड़ी करने पर मारवाडियों को वहीं भेज दिया जाएगा, जहां से वे आए हैं। गवर्नर की इस धमकी के विरुद्ध जब शर्मा जी ने "गवर्नर का गुस्सा" शीर्षक से सम्पादकीय अग्रलेख में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब सरकार ने पत्र से दो हज़ार रुपए की जमानत मांग ली। कम्पनी के डायरेक्टरों ने निर्णय किया कि जमानत देकर पत्र नहीं निकालेंगे। प्रकाशन बन्द कर दिया गया। कुछ दिनों बाद एक अन्य उद्योगपति के स्वामित्व में "कलकत्ता समाचार" का प्रकाशन पुन: प्रारम्भ किया। पत्र का सम्पादन झाबरमल्ल शर्मा ही करते रहे। 1925 तक "कलकत्ता समाचार" कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।[1]

विशेष योगदान

इसके उपरान्त सनातन धर्म के प्रख्यात नेता व्याख्यान वाचस्पति पण्डित दीनदयालु शर्मा की प्रेरणा पर कुंवर गणेशसिंह भदौरिया और पण्डित झाबरमल्ल शर्मा "कलकत्ता समाचार" को सन् 1925 में दिल्ली ले आए और यहां से वह "हिन्दू संसार" नाम से प्रकाशित होने लगा। सन् 1926 में जब "हिन्दू संसार" पर टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री की ओर से अभियोग चलाया गया, तब अपने पत्र में छपी टिहरी-गढ़वाल के गृहमंत्री से सम्बन्धित चिट्ठी की सम्पूर्ण जिम्मेदारी आपने अपने ऊपर लेकर व चिट्ठी के लेखक का नाम प्रकट न कर पत्रकारिता के आदर्श की स्थापना की थी। जब यह अभियोग चला, तब आपके पिता गांव में अस्वस्थ थे। उनकी देखभाल के लिए आप गांव जाकर रहने लगे थे। वहां भी आपने अपने साहित्यिक कार्यो को विराम नहीं दिया और जसरापुर में "इतिहास अनुसन्धान गृह" की स्थापना करके उसके माध्यम से हिन्दी-साहित्य, जनपदीय साहित्य और इतिहास-सम्बन्धी पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य करने लगे। इसी अवधि में इन्होंने "रामकृष्ण मिशन" की एक शाखा "खेतड़ी" में भी विधिवत 1958 में स्थापित कर दी।

रचनाएं एवं संपादित पुस्तकें

उनकी अनेक स्वरचित रचनाएं व संपादित पुस्तकें हैं। जीवन के अन्तिम दिनों में प्रकाशित "राजस्थान और नेहरू-परिवार" विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस ग्रन्थ का विमोचन तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के करकमलों द्वारा 26 मई 1982 को प्रधानमंत्री-निवास में हुआ था। जहां "राजस्थान मंच, दिल्ली" ने 1977 में एक विशालकाय "अभिनन्दन ग्रन्थ" समर्पित किया था, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पंडित झाबरमल्ल शर्मा की हिन्दी-सेवाओं का स्मरण कर एक विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया था।

सम्मान एवं पुरस्कार

भारत सरकार द्वारा सन् 1982 में "पद्म भूषण" से सम्मानित किया था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रेरक विभूति पंडित झाबरमल्ल शर्मा (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अप्रैल, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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