चन्द्रबली पाण्डेय: Difference between revisions
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==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
चन्द्रबली का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[आज़मगढ़ ज़िला|आज़मगढ़ ज़िले]] के एक गाँव में हुआ था। चन्द्रबली ने हिन्दी की उच्च शिक्षा [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] से प्राप्त की। आचार्य [[रामचन्द्र शुक्ल]] के आप प्रिय शिष्य थे। विश्वविद्यालय की परिधि से बाहर रहकर हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में इनका प्रमुख स्थान है। हिन्दी के साथ [[अंग्रेज़ी]], [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[अरबी भाषा|अरबी]] तथा [[प्राकृत]] भाषाओं के ज्ञाता चन्द्रबली पाण्डेय के सम्बन्ध में भाषा शास्त्री [[डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी]] की यह उक्ति सटीक है कि, 'पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।' आजीवन अविवाहित रहकर चन्द्रबली ने हिन्दी की सेवा की थी। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए चन्द्रबली ने कभी चेष्टा नहीं की थी। चन्द्रबली पाण्डेय द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 है। | चन्द्रबली का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[आज़मगढ़ ज़िला|आज़मगढ़ ज़िले]] के एक गाँव में हुआ था। चन्द्रबली ने हिन्दी की उच्च शिक्षा [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] से प्राप्त की। आचार्य [[रामचन्द्र शुक्ल]] के आप प्रिय शिष्य थे। विश्वविद्यालय की परिधि से बाहर रहकर हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में इनका प्रमुख स्थान है। हिन्दी के साथ [[अंग्रेज़ी]], [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], [[अरबी भाषा|अरबी]] तथा [[प्राकृत]] भाषाओं के ज्ञाता चन्द्रबली पाण्डेय के सम्बन्ध में भाषा शास्त्री [[डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी]] की यह उक्ति सटीक है कि, 'पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।' आजीवन अविवाहित रहकर चन्द्रबली ने हिन्दी की सेवा की थी। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए चन्द्रबली ने कभी चेष्टा नहीं की थी। चन्द्रबली पाण्डेय द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 है।<ref>{{cite book | last =लीलाधर | first =शर्मा | title =भारतीय चरित कोश | edition = | publisher =शिक्षा भारती | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =[[हिन्दी]] | pages =265 | chapter = }}</ref> | ||
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[[काशी]] की प्रसिद्ध विद्या-विभूति पं. चंद्रबली पाण्डेय यद्यपि विश्वविद्यालय सेवा से नहीं जुड़े थे, पर विश्वविद्यालय परिसर में ही अपने मित्र मौलवी महेश प्रसाद के साथ रहते थे। बाद में वे डॉ. ज्ञानवती त्रिवेदी के बँगले पर आ गये थे। पं. शान्तिप्रियजी और पं. चंद्रबली पाण्डेय आज़मगढ़ के विद्या रत्न थे और आजमगढ़ के [[राहुल सांकृत्यायन]] को अपने जनपद के पं. चंद्रबली पाण्डेय, पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र और पं. शांतिप्रिय द्विवेदी की विद्या-साधना का सहज गर्व था। अपनी जीवन यात्रा में राहुल सांकृत्यायन जी ने अपनी भावना प्रकट की है। हैदराबाद हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पं. चंद्रबली पाण्डेय थे।<ref name="NKNA">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=नेह के नाते अनेक |लेखक=कृष्ण बिहारी मिश्र |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=17 |url=http://books.google.co.in/books?id=0iytgF7fQAQC&pg=PA18&lpg=PA17&dq=%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80+%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF#v=onepage&q=%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&f=false नेह के नाते अनेक|ISBN=}} </ref> | |||
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Revision as of 09:29, 22 January 2013
चन्द्रबली पाण्डेय
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पूरा नाम | चन्द्रबली पाण्डेय |
जन्म | 25 अप्रॅल, 1904 |
जन्म भूमि | आज़मगढ़ ज़िला, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 24 जनवरी, 1958 |
पति/पत्नी | आजीवन अविवाहित |
मुख्य रचनाएँ | उर्दू का रहस्य, भाषा का प्रश्न, राष्ट्रभाषा पर विचार, हिन्दी गद्य का निर्माण आदि |
भाषा | हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी और अरबी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | चन्द्रबली पाण्डेय द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
चन्द्रबली पाण्डेय (अंग्रेज़ी: Chandrabali Pandey, जन्म-25 अप्रॅल, 1904 - मृत्यु- 24 जनवरी, 1958) हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन, संवर्धन और संरक्षण के लिए समर्पित थे।
जीवन परिचय
चन्द्रबली का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के एक गाँव में हुआ था। चन्द्रबली ने हिन्दी की उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के आप प्रिय शिष्य थे। विश्वविद्यालय की परिधि से बाहर रहकर हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में इनका प्रमुख स्थान है। हिन्दी के साथ अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी तथा प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता चन्द्रबली पाण्डेय के सम्बन्ध में भाषा शास्त्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी की यह उक्ति सटीक है कि, 'पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।' आजीवन अविवाहित रहकर चन्द्रबली ने हिन्दी की सेवा की थी। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए चन्द्रबली ने कभी चेष्टा नहीं की थी। चन्द्रबली पाण्डेय द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 है।[1]
प्रमुख रचनाएँ
पाण्डेय जी की प्रमुख रचनाएँ हैं, जो इस प्रकार है:-
- उर्दू का रहस्य
- तसव्वुफ़ अथवा सूफ़ीमत
- भाषा का प्रश्न
- राष्ट्रभाषा पर विचार
- कालिदास
- केशवदास
- तुलसीदास
- हिन्दी कवि चर्चा
- शूद्रक
- हिन्दी गद्य का निर्माण
आज़मगढ़ के विद्या-रत्न
काशी की प्रसिद्ध विद्या-विभूति पं. चंद्रबली पाण्डेय यद्यपि विश्वविद्यालय सेवा से नहीं जुड़े थे, पर विश्वविद्यालय परिसर में ही अपने मित्र मौलवी महेश प्रसाद के साथ रहते थे। बाद में वे डॉ. ज्ञानवती त्रिवेदी के बँगले पर आ गये थे। पं. शान्तिप्रियजी और पं. चंद्रबली पाण्डेय आज़मगढ़ के विद्या रत्न थे और आजमगढ़ के राहुल सांकृत्यायन को अपने जनपद के पं. चंद्रबली पाण्डेय, पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र और पं. शांतिप्रिय द्विवेदी की विद्या-साधना का सहज गर्व था। अपनी जीवन यात्रा में राहुल सांकृत्यायन जी ने अपनी भावना प्रकट की है। हैदराबाद हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पं. चंद्रबली पाण्डेय थे।[2]
रहने का कबीरी अंदाज़
पं. चंद्रबली पाण्डेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पट्ट शिष्य थे। ब्रह्मचारी शिष्य को शुक्लजी अपने साथ ही रखते थे। पुत्रवत वात्सल्य पोषण देते हुए अंतरंग नैकट्य से शुक्लजी ने पाण्डेय जी के विद्या-व्यक्त्तित्व का आधार रचा था। पाण्डेय जी की हिंदी निष्ठा, लोगों की नज़र, दुराग्रह की सीमा को स्पर्श करती थी। हिंदी के पक्ष में वे कभी भी किसी से भी लोहा लेने को तैयार रहते थे। उनमें न तो लोकप्रियता की भूख थी और न पद प्रभुता की स्पृहा। इसलिये कबीरी अंदाज़ में किसी अनौचित्य और स्खलन पर तीखी टिप्पणी करते उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता था। विद्या व्यापार को किसी प्रकार की छूट देना उन्हें क़तई मंजूर नहीं था। शुक्लजी उनके ज्ञान के प्रतिमान थे। शुक्लजी के पाठ पर पढ़कर और उसके अंतरंग नैकट्य में रहकर कठोर परिश्रम से उन्होंने विद्या-संस्कार अर्जित किया था। उनका निकष बड़ा कठोर था। इसलिये आचार्य केशवप्रसाद मिश्र और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जैसे पण्डितों की निष्पत्तियों पर, विवेक के आग्रह से, प्राय: प्रश्नचिह्न खड़ा करते रहते थे।[2]
निधन
चन्द्रबली पाण्डेय का निधन 24 जनवरी, 1958 ई. में हो गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 265।
- ↑ 2.0 2.1 नेह के नाते अनेक |लेखक: कृष्ण बिहारी मिश्र |पृष्ठ संख्या: 17 |लिंक:- नेह के नाते अनेक
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