गिरिराज किशोर: Difference between revisions
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गिरिराज किशोर का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुज़फ्फरनगर]] में हुआ। ये उपन्यासकार के अलावा एक सशक्त कथाकार हैं, नाटककार और आलोचक भी हैं। कहानीकार के रूप में भी इन्होंने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की है। | गिरिराज किशोर का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुज़फ्फरनगर]] में हुआ। ये उपन्यासकार के अलावा एक सशक्त कथाकार हैं, नाटककार और आलोचक भी हैं। कहानीकार के रूप में भी इन्होंने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की है। | ||
==शिक्षा व कार्यक्षेत्र== | |||
गिरिराज किशोर का जन्म [[8 जुलाई]], [[1937]], उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में हुआ था। उन्होंने शिक्षा 'मास्टर ऑफ सोशल वर्क', [[1960]], में समाज विज्ञान संस्थान, [[आगरा]] से प्राप्त की थी। आई.आई.टी. [[कानपुर]] में [[1975]] से [[1983]] तक रजिस्ट्रार के पद पर रहे और वहाँ से कुल सचिव के पद से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। [[1983]] से [[1997]] तक 'रचनात्मक लेखन एवं प्रकाशन केन्द्र' के अध्यक्ष रहे। [[साहित्य अकादमी]], [[नई दिल्ली]] की कार्यकारिणी के भी सदस्य रहे। | |||
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गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। | गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। वर्तमान में गिरिराज जी स्वतंत्र लेखन तथा कानपुर से निकलने वाली [[हिंदी]] त्रैमासिक पत्रिका 'अकार' त्रैमासिक के संपादन में संलग्न हैं। | ||
==प्रसिद्धि== | |||
लेखक की शुरुआती दौर में लिखी गयी किसी मशहूर कृति की छाया से बाद की रचनायें निकल नहीं पातीं। गिरिराज जी का लेखन इसका अपवाद है और इनकी हर नयी रचना का क़द पिछली रचना से के क़द से ऊंचा होता गया। देश के इस प्रख्यात साहित्यकार को 'कनपुरिये' अपना खास गौरव मानते हैं। अपनी विनम्रता, सौजन्यता के लिये जाने जाने वाले गिरिराज जी मानते हैं - | |||
सख्त से सख्त बात शिष्टाचार के आज घेरे में रहकर भी कही जा सकती है।हम लेखक हैं।शब्द ही हमारा जीवन है और हमारी शक्ति भी ।उसको बढ़ा सकें तो बढ़ायें,कम न करें।भाषा बड़ी से बड़ी गलाजत ढंक लेती है।<ref>{{cite web |url=http://kanpurnama.blogspot.com/2008/05/blog-post_07.html|title=गिरिराज किशोर जी से बातचीत|accessmonthday=12जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | |||
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;प्रकाशित कृतियां - उपन्यासों के अतिरिक्त दस कहानी संग्रह, सात नाटक, एक एकांकी संग्रह, चार निबंध संग्रह तथा महात्मा गांधी की जीवनी 'पहला गिरमिटिया'प्रकाशित हो चुका है। | |||
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*आठ लघु उपन्यास अष्टाचक्र के नाम से दो खण्डों में । | |||
*पहला गिरमिटिया - गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीकी अनुभव पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यास। | |||
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बच्चों के लिए एक लघुनाटक ' मोहन का दु:ख' | |||
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#एक जनभाषा की त्रासदी, | |||
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इनका उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। [[1991]] में प्रकाशित इस कृति को [[1992]]] में ही [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार प्राप्त हुआ। | इनका उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। [[1991]] में प्रकाशित इस कृति को [[1992]]] में ही [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार प्राप्त हुआ। [[महात्मा गांधी]] के [[अफ़्रीका]] प्रवास पर आधारित ‘पहला गिरमिटिया’ भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ, पर ‘ढाई घर’ औपन्यासिक क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। [[राष्ट्रपति]] द्वारा [[23 मार्च]] [[2007]] को 'साहित्य और शिक्षा' के लिए '[[पद्मश्री]]' पुरस्कार से विभूषित किया गया था। [[उत्तर प्रदेश]] के 'भारतेन्दु पुरस्कार' नाटक पर, 'परिशिष्ट' उपन्यास पर 'मध्यप्रदेश साहित्य परिषद' के 'वीरसिंह देव पुरस्कार', 'उत्तर प्रदेश हिंदी सम्मेलन' के 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक' तथा 'ढाई घर' उ.प्र.के लिये [[हिंदी संस्थान]] के 'साहित्य भूषण' पुरस्कार से सम्मानित किये गये। | ||
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Revision as of 14:22, 18 July 2011
गिरिराज किशोर (8 जुलाई,1937) गिरिराज किशोर का जन्म उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में हुआ। ये उपन्यासकार के अलावा एक सशक्त कथाकार हैं, नाटककार और आलोचक भी हैं। कहानीकार के रूप में भी इन्होंने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की है।
शिक्षा व कार्यक्षेत्र
गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई, 1937, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में हुआ था। उन्होंने शिक्षा 'मास्टर ऑफ सोशल वर्क', 1960, में समाज विज्ञान संस्थान, आगरा से प्राप्त की थी। आई.आई.टी. कानपुर में 1975 से 1983 तक रजिस्ट्रार के पद पर रहे और वहाँ से कुल सचिव के पद से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। 1983 से 1997 तक 'रचनात्मक लेखन एवं प्रकाशन केन्द्र' के अध्यक्ष रहे। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की कार्यकारिणी के भी सदस्य रहे।
- प्रतिभा सम्पन्न लेखक
गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। वर्तमान में गिरिराज जी स्वतंत्र लेखन तथा कानपुर से निकलने वाली हिंदी त्रैमासिक पत्रिका 'अकार' त्रैमासिक के संपादन में संलग्न हैं।
प्रसिद्धि
लेखक की शुरुआती दौर में लिखी गयी किसी मशहूर कृति की छाया से बाद की रचनायें निकल नहीं पातीं। गिरिराज जी का लेखन इसका अपवाद है और इनकी हर नयी रचना का क़द पिछली रचना से के क़द से ऊंचा होता गया। देश के इस प्रख्यात साहित्यकार को 'कनपुरिये' अपना खास गौरव मानते हैं। अपनी विनम्रता, सौजन्यता के लिये जाने जाने वाले गिरिराज जी मानते हैं - सख्त से सख्त बात शिष्टाचार के आज घेरे में रहकर भी कही जा सकती है।हम लेखक हैं।शब्द ही हमारा जीवन है और हमारी शक्ति भी ।उसको बढ़ा सकें तो बढ़ायें,कम न करें।भाषा बड़ी से बड़ी गलाजत ढंक लेती है।[1]
रचनाएँ
- प्रकाशित कृतियां - उपन्यासों के अतिरिक्त दस कहानी संग्रह, सात नाटक, एक एकांकी संग्रह, चार निबंध संग्रह तथा महात्मा गांधी की जीवनी 'पहला गिरमिटिया'प्रकाशित हो चुका है।
- कहानी संग्रह -
- नीम के फूल,
- चार मोती बेआब,
- पेपरवेट,
- रिश्ता और अन्य कहानियां,
- शहर -दर -शहर,
- हम प्यार कर लें,
- जगत्तारनी एवं अन्य कहानियां,
- वल्द रोज़ी,
- यह देह किसकी है?
- कहानियां पांच खण्डों में 'मेरी राजनीतिक कहानियां'
- 'हमारे मालिक सबके मालिक'
- उपन्यास
इनके द्वारा लिखित उपन्यास इस प्रकार हैं-
- लोग (1966),
- चिड़ियाघर (1968),
- यात्राएँ (1917),
- जुगलबन्दी (1973),
- दो (1974),
- इन्द्र सुनें (1978),
- दावेदार (1979),
- यथा प्रस्तावित (1982),
- तीसरी सत्ता (1982),
- परिशिष्ट (1984),
- असलाह (1987),
- अंर्तध्वंस (1990),
- ढाई घर (1991),
- यातनाघर (1997),
- पहला गिरमिटिया (1999)।
- आठ लघु उपन्यास अष्टाचक्र के नाम से दो खण्डों में ।
- पहला गिरमिटिया - गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीकी अनुभव पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यास।
- नाटक -
- नरमेध,
- प्रजा ही रहने दो,
- चेहरे - चेहरे किसके चेहरे,
- केवल मेरा नाम लो,
- जुर्म आयद,
- काठ की तोप।
- लघुनाटक
बच्चों के लिए एक लघुनाटक ' मोहन का दु:ख'
- लेख/निबंध -
- संवादसेतु,
- लिखने का तर्क,
- सरोकार,
- कथ-अकथ,
- समपर्णी,
- एक जनभाषा की त्रासदी,
- जन-जन सनसत्ता।
पुरस्कार
इनका उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992] में ही साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। महात्मा गांधी के अफ़्रीका प्रवास पर आधारित ‘पहला गिरमिटिया’ भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ, पर ‘ढाई घर’ औपन्यासिक क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 को 'साहित्य और शिक्षा' के लिए 'पद्मश्री' पुरस्कार से विभूषित किया गया था। उत्तर प्रदेश के 'भारतेन्दु पुरस्कार' नाटक पर, 'परिशिष्ट' उपन्यास पर 'मध्यप्रदेश साहित्य परिषद' के 'वीरसिंह देव पुरस्कार', 'उत्तर प्रदेश हिंदी सम्मेलन' के 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक' तथा 'ढाई घर' उ.प्र.के लिये हिंदी संस्थान के 'साहित्य भूषण' पुरस्कार से सम्मानित किये गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गिरिराज किशोर जी से बातचीत (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12जुलाई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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