मोहनलाल विष्णु पंड्या: Difference between revisions
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उन्होंने आजीवन [[हिंदी साहित्य]] के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणें के द्वारा पृथ्वीराज रासो को जाली ठहराया तब उसके खंडन में इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी। इनका कहना था कि रासो में दिए गए संवत् ऐतिहासिक संवतों से जो 90-91 वर्ष पीछे पड़ते हैं उसका कोई विशेष कारण रहा होगा। इसके प्रमाण में इन्होंने रासो का यह दोहा उद्धत किया - | उन्होंने आजीवन [[हिंदी साहित्य]] के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणें के द्वारा पृथ्वीराज रासो को जाली ठहराया तब उसके खंडन में इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी। इनका कहना था कि रासो में दिए गए संवत् ऐतिहासिक संवतों से जो 90-91 वर्ष पीछे पड़ते हैं उसका कोई विशेष कारण रहा होगा। इसके प्रमाण में इन्होंने रासो का यह दोहा उद्धत किया - | ||
'''"एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद। | '''"एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद। | ||
तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद" | तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद"'''।। | ||
'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए इन्होंने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित विक्रम संवत् को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका , फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय हुई अवश्य। रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये इन्होंने 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका' में कुछ लेख भी लिखे थे। | 'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए इन्होंने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित विक्रम संवत् को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका , फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय हुई अवश्य। रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये इन्होंने 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका' में कुछ लेख भी लिखे थे। |
Revision as of 10:26, 22 September 2015
जन्म
मोहनलाल विष्णु पंड्या का जन्म संवत् 1907 विक्रमी में हुआ था। भारतेंदु कालीन हिंदी सेवियों में इनका प्रमुख स्थान है।
योगदान
उन्होंने आजीवन हिंदी साहित्य के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणें के द्वारा पृथ्वीराज रासो को जाली ठहराया तब उसके खंडन में इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी। इनका कहना था कि रासो में दिए गए संवत् ऐतिहासिक संवतों से जो 90-91 वर्ष पीछे पड़ते हैं उसका कोई विशेष कारण रहा होगा। इसके प्रमाण में इन्होंने रासो का यह दोहा उद्धत किया - "एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद। तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद"।।
'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए इन्होंने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित विक्रम संवत् को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका , फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय हुई अवश्य। रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये इन्होंने 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका' में कुछ लेख भी लिखे थे।
लेखक
अपने इन्हीं लेखों के कारण ये नागरीप्रचारिणी सभा से प्रकाशित होनेवाले 'पृथ्वीराज रासो' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए। रासो का बाईस खंडो में इन्होंने संपादन किया है। रासों के संपादन में बाबू श्यामसुंदर दास और कृष्णदास इनके सहायक थे। सभा के द्वारा ये अच्छे इतिहासज्ञ और विद्वान के रूप में ख्यात हो गए थे। इसके अतिरिक्त ये अच्छे पत्रकार भी थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा संपादित 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' नामक पत्रिका का प्रकाशन जब रूकने जा रहा था तब आपने उसे अपने योग्यश् में लेकर सँभाला। आपने संपादन काल में इन्होंने उसका नाम 'मोहन चंद्रिका' रख दिया था।
मृत्यु
इनका देहावसान संवत् 1969 वि. (4 सितंबर, 1912) में मथुरा में हुआ था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मोहनलाल विष्णु पंड्या (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2015।
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